Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1162
________________ २०० marateme निर्गता यावत् भगान्त पर्युपास्ते । तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'राई' राशि:रात्रिनाम्नी देवी चमरचवायां राजधान्याम् , एर यया काली तथैव-आगता, नाटयविधिमुपदर्य प्रतिगता।' मते नि' हे भदन्त ! इति सम्बोध्य भगवान् गौतमः 'पुन्चभवपुच्छा ' पूर्वभवपन्छा रात्रि देव्या पूर्वभर पुन्छति । भगवान् माह-एव खलु हे गौतम । तस्मिन् काले तस्मिन् समये आमलाल्पा नगरी, आम्रशालपन चैत्यम् , जितश राना, रामिर्गाधापतिः, रात्रिश्रीर्मार्या, वयो। तेण काळेण तेण समएणं राई देगी चमरचचा रायहाणी एव जहा काली-तहेव आ गया नविहि उवदसेत्ता पडिगया) प्रभु का आगमन सुनकर नगर निवासिनी समस्त जनता उन प्रभु के दर्शन करने और उनसे धर्मोपदेश सुनने के लिये उस गुणशिलक उद्यान में आई। प्रभु ने सब को धर्म का उपदेश दिया। सयने प्रभु की पयुपासना की। उस काल में और उस समय में रात्रिनाम की देवी चमरचचाराजधानी में रहती थी-जैसे वहां काली देवी रहती थी। सो वह भी प्रभु का आगमन सुनकर वहा आई। वहां आकर उसने नाटय विधि दिखलाई-और दिखलाकर फिर वह वहा से वापिस अपने स्थान पर चली गई। ( भते त्ति भगव गोयमा! पुश्वभवपुच्छा-एव खल्ल गोयमा! तेण कालेण तेण समाण आमलकप्पा णयरी अबसाल चणे चेहए-जियसत्तू राया-राई गाहावई, रायसिरी भारिया, राई चमरचचाए रायहाणीए एव जहा काली-तहेत्र आगया नट्टविहिं उवदसेत्ता पडिगया) પ્રભુનું આગમન સાંભળીને નગરના બધા નાગરિકને તે પ્રભુના દર્શન કરવા માટે તેમજ તેમની પાસેથી ધર્મોપદે સાભળવા માટે તે ગુણશિલક દ્વદ્યાનમાં આવ્યા પ્રભુએ બધાને ધર્મનો ઉપદેશ આપે બધાએ પ્રભુની પણું પાસના કરી તે કાળે અને તે સમયે રાત્રિ નામે દેવી ચમચ ચા રાજધાનીમા કાલી દેવીની જેમ રહેતી હતી તે પ્રભુનું આગમન સાભળીને ત્યાં આવી ત્યાં આવીને તેણે નાટયવિધિ બતાવી અને બતાવીને તે ત્યાંથી પાછી જતી રહી (भते चि भगव गोयमा ! पुयभवपच्छा-एव खलु गोयमा ! तेणं कालेण तेण समएण आमलकप्पा णयरी अवसालपणे चेइए-जियसत्तू राया-राई गाहावई, रायसिरी भारिया, राई दारिया, पासस्स 'दारिया

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