Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1164
________________ ८०८ तापका निर्गता यावत् भगवन्तं पर्युपास्ते । तस्मिन् काले तस्मिन् समये ' राई ' रात्रि:रात्रिनाम्नी देवी चमरचचाया राजधान्याम्, एवं यथा काली तथैत्र आगता, नाविधपद प्रतिगता । ' भते चि ' हे भदन्त । इति सम्बोध्य भगवान् गौतमः ' पुन्वभव पुच्छा ' पूर्वभवपृच्छा रात्रि देव्या पूर्वभव पृच्छति । भगवान् माह-एन खलु हे गौतम । तस्मिन् काले तस्मिन् समये आमलकल्पा नगरी, आम्रशालान चैत्यम् जितशत्रू राजा, रात्रिर्गाथापतिः, रात्रिश्रीर्भार्या तयोः , तेण काळेण तेण समरण राई देवी चमरचचाए रामहाणीत एव जहा काली - तहेव आ गया नहविरिं वदसेत्ता पहिगया) प्रभु का आगमन सुनकर नगर निवासिनी समस्त जनता उन प्रभु के दर्शन करने और उनसे धर्मोपदेश सुनने के लिये उस गुणशिलक उधान में आई । प्रभु ने सब को धर्म का उपदेश दिया। सबने प्रभु की पर्युपासना की। उस काल में और उस समय में रात्रिनाम की देवी मरचचाराजधानी में रहती थी जैसे वहां काली देवी रहती थी। सो वह भी प्रभु का आगमन सुनकर वहा आई । वहा आकर उसने नाटय विधि दिखलाई - और दिखलाकर फिर वह वहा से वापिस अपने स्थान पर चली गई । ( भते त्ति भगव गोयमा ! पुग्वभवपुच्छा-एव खलु गोयमा ! तेण काळेण तेण समण्ण आमलकप्पा जयरी अबसाल वणे चेहए - जियसत्तू राया - राई गाहावई, रायसिरी भारिया, राई चमरचचाए रायहाणीए एव जहा काली - तत्र आगया नहविर्हि उवदसेत्ता पडिगया ) પ્રભુનુ આગમન સાભળીને નગરના બધા નાગરિકજને તે પ્રભુના દર્શન કરવા માટે તેમજ તેમની પાસેથી ધર્મોપદેશ સાભળવા માટે તે ગુણુશિલક ઉદ્યાનમાં આવ્યા પ્રભુએ બધાને ધર્મને ઉપદેશ આપ્યા બધાએ પ્રભુની પયુ પાસના કરી તે કાળે અને તે સમયે રાત્રિ નામે દૈવી ચમનચચા રાજ ધાનીમા કાલી દેવીની જેમ રહેતી હતી તે પ્રભુનુ આગમન સાભળીને ત્યા માવી ત્યા આવીને તેણે નાટયવિવિધ પતાવી અને બતાવીને તે ત્યાથી પાછી જતી રહી (भते त्ति भगव गोयमा ! पुव्वभवपृच्छा-एव खलु गोयमा ! तेण कालेन तेण समरण आमलकप्पा गयरी अवसारणे चेइए - जियसत्तू राया - राई गाहावई, रायसिरी भारिया, राई दारिया, पासरस " दारिया ア

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