Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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mata येन स', गृहीताऽयमनः, ' माश्यगोमुहिये हि मागोमुग्विने = माकानिपक्ष्ममानि, गोमुगितानि गोगुग्यापाराणि-मापानि 7 तानि गोमुखितानि तै-उदररक्षा भत्तारोमानेोग्याकरिः 'पल' फरक पहिकेति प्रमिट' 'गिहादि असिस्टीहि । निमामि• असिपष्टिमि', कोशरहिष्कतः खङ्ग, 'अंसग तोहि' असगतस्तसन्चस्थितस्तगीर', 'सनीवहिं धन्हि' सनी नुभिः कोटयारोपितमत्यचनुमि', 'ममुस्विति गरे' समुत्सितः शरैः-तूणीरसाशान्निाकाशितणः, 'समुहारियाहि दीहार्डि' समुल्लालि ताभि दीहामि समुच्छास्तिः शस्तपिशेपे 'ओमारियार्टि' आम्बरिनाभिःनादितागि ' उम्पटियाहिं ' उपण्टिकामि =विशाल बटाभि 'डिप्पतूरेडि गिमहादि असिलट्टी असगह तोणेहि मजीवेटिं घहिं, समुक्खि त्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहिं दीहारि, ओसारियाहिं उमपटयाहिं डिप्प तृरेहिं बजमाणेहिं मत्या२ उस्पिट्टी सीरणाये चोरकलकल रव समुदरव भूय करेमाणे) चोरपल्ली से वह किम तरह की स्थिति में निकला-यही यात सूत्रकार इन पक्तियों में कर रहे है-वे करते है कि जब वह अपनी चोरपल्ली में से निकला तो उस समय उसने अपने शरीर पर कवच को सन्नित करके कशाधन से अच्छी तरह बाध रखा था " गृही तायुधाहरण "आयुध और प्रहरण उसके दोनों हाथों में थे। रीछ के रोम से युक्त गोमुसाकार पहिका से, भ्यान से पारिर खेंची हुई तलवारों से, कधो पर लटकते हुए भायोतृणीरों-से ज्यापर चढे हुए धनुषों से, तूगीर से निकाले गये बाणों से ऊपर उछालेगये शास्त्र विशेषों से,
(सण्णद्ध जाव गहियावहपहरणे माइयगोमुहिएहि फलएहि णिकदाहि भसिलट्ठीहि असगएहि तोणेहि सजीवेहि धणूहि समुक्सित्तेहि सरेहि समुल्ला लियाहि दिहाहि ओसारियादि उपरियाहि हिप्पतूरेहि वजमाणेदि महया २ उकिट्ठसीहणाये चोरकलकलरव समुदरव भूय करेमाणे)
ચાર૫લીમાથી તેઓ કેવી રીતે બહાર નીકળ્યા એ જ વાત સૂત્રકાર આ પક્તિઓમાં સ્પષ્ટ કરી રહ્યા છે તેઓ કહે છે કે જયારે તે પોતાના ચારપનીમાથી નીકળે ત્યારે તે પોતાના શરીર ઉપર કવચ ધારણ કરીને तेने ४५ धनथी सारीश पाधी सयु तु "गृहितायुधप्रहरण આયુધ અને પ્રહરણ તેના બંને હાથોમાં હતા રીંછના રમી યુક્ત ગણું ખાકાર પદિકાથી, મ્યાનમાથી બહાર કાઢેલી તવારોથી ખભા ઉપર લટ કતા શીરથી, જયા ઉપર ચઢેલા ધનથી, તુરીરમાથી કા માં આવેલા ખાથી, ઉપર ફેકવામાં આવેલા શસ્ત્ર વિશેથી, જ