Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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६८८ दिनलि, दिया, ''उनमार गृहीमा वाम अग्रामिराम-जनावरामरहि वाम् अटीमनुमरिएपश कान | न पल निरा नस्यामामिकाया माया तहाए 'हया-पिपासमा गमि गा विदिमामा' विस्मतदिग्भागा पूर्वारिदिशारिरिकल. सर सिंगहा गोरपाटीम् ' आपल' अस
मा: 'राचेर' अन्तरामपालगा' कारगताम्मौ चोरो मृत्यु प्राप्तवान् । अस्य शावरित न्यावावयम् , शानेनु-उपयोगि चरित तारन्मार भगवतोपदिष्टम् । ____अध चिलाताप्टान्तेन भगवान नियादीत समोध्य प्रतियोधयति - एका मेर' एपमेय-अमेन कारगर समकाउमो' आयुन्तः यमणाः ! 'जाव पन्य इए समाणे' या माजितः सनस्योऽस्माक निर्मन्यो वा निबन्धी वा आचार्यों पाध्यायानां समीपे मवजितः मन् । इमस्स' अस्य 'ओरालियसरीरस्स' औदारिम्हारीरस्य वान्तासवस्य याद पिवसनधर्मरय 'रणहेउ ' वर्णहेतु कान्तिविशेगमाप्त्यर्थम् , यानन्-'हाउ ' पहेतु सौन्दर्यायर्थम् , 'वबहेउ' से बाहर किया और उठाकर सुममा दारिका के मस्तक को काट डाला। उस फटे हुए मस्तक को लेकर फिर निर्जन अटवी में प्रवेश कर गया। उस अरवी में पिपासा से व्याकुल होकर वह पूर्णदि दिशाओ के विवेक से रहित हो गया-इस तरह वह पुनः चश से पीछे चापिस अपनी सिंहगुहा नामकी चोर पट्टी में नहीं आ सका-और वीव ही में पोल कलित बन गया। इनका अशिष्ट चरित्र प्रधान्तर से जान लेना चाहिये। यहाँ तो भगवान ने जितना चरित्र इसका उपयोगी जाना तनाही उपदिष्ट किया है ।-(एषामेव समणाउसो जाव पन्च इए समाणे इमस्त ओरालियसरीरस्स वतासवत जाव विद्धसण धम्मस्स वपणहे जाच आहार आहारेई से ण इहलोए चेव बट्टण सम નાખ્યું તે કપાએલા માથાને લઈને તે નિજ ન-ભયકર અટવીમાં પેસી ગયો અટવીમા તે તરસથી વ્યાકુળ થઈને પૂર્વ વગેરે દિશાઓના વિવેકથી રહિત થઈ ગયો અને આ પ્રમાણે તે ફરી ત્યારથી તે પોતાની સિંહગુડા નામની ચાર પલીમાં કોઈ પણ દિવસે પાછા આવી શકે નહિ અને વચ્ચે જ મૃત્યુ પામ્યા તેનું બાકીનું ચરિત્ર બીજા થથમાથી જાણી લેવું જોઈએ, અહીં તે ભગવાને જેટલું ચરિત્ર તેનું ઉપયુક્ત જાણ્યું તેટલુ કહ્યુ છે.
(एमामेव समणाउसो ! जार पचहए समाणे इमस्स ओरालियसरीरस्स वतासरस्स जान विद्धसणधम्मस्स वष्णहेउ जाव आहार