Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पादपीठात् 'पोरा' प्रयागेदनि-मातरति, प्रत्यारपत्रातोर्य पाउयातो' पादुके 'मोरयह ' अरमुभति रित्याति, मुस्त्या तीरामिपुरी सतीमाता एपदानि 'अणुग उड' अनुगच्छति-सम्पुसं गायति, अनुगम्य वाम जानु 'अवे' अश्चति उभी रंगेति, अनिता-उपत्य दक्षिण जानु धरणितले 'निष्टु' नित्य-म्यापयित्या 'तिनो 'नि कसा त्रिवारम् ' मुद्राण' मृन-गस्त घरणितले निवेशयनि-लगति, निश्य ईमि प चुग्णमइप स्वत्यानमतिम्रतीक शिरोनामयति, मत्यानम्य 'पडपटियथभियानो' टिमत्रुटित स्तम्भिते कटके करभूपणे तुत्रिते पाहुभूषणे तैः स्तम्मिा पाटये 'भुयाओ' भुजे 'साहरइ ' सहरति एकत्रीकरोति, सह-य करयल जार पहु' करतलपरि गृहीत गिर आप मस्त केलं का मादी- नमोत्धुग' इत्यादिनमोऽस्तु खलु अदम्प यारद् सिदिगतिनामधेय स्थान सम्माप्तेभ्यः, नमोऽस्तु से उठी-और उठकर वह पादपीट से होकर नीचे आई-नीचे आकर उसने दोनों पादुकाओं को पैरों में से उतार दिया। उतार कर फिर वह तीर्थकरराधिष्ठित दिशा की ओर मात आठ पद आगे गई। वहा आकर उसने अपने चाम जानु को ऊंचा किया-या कर के फिर दक्षिण जानु को नीचे धरणीतल में रवा-रखकर फिर तीन यार अपने मस्तक का नीचे भूमिपर लगाया-लगाकर फिर वह कुछ झुकी-शिर को नीचेनवाया। बाद में कटक और प्रदित से भ्रपित भुजाओं को एकत्रित किया-एकत्रित करके फिर उसने उन दोनों हाथोंगी अजलि बनाई-आर उसे मस्तक पर आदक्षिण प्रदक्षिण कर इस प्रकार कहो (नमोत्थुण अरहताणं जाय सपताण नमोत्थुण समणस्स भगवओ महावारस्त ઉપર થઈને નીચે આવા નીચે આવીને તેણે બને પાદુકાઓને પગમા ઉતારી દીધી ઉતારીને તે તીથ કર જે દિશા તરફ વિરાજમાન હતા તે દિર તરફ સાત-આઠ ડગલા આગળ ગઈ ત્યાં જઈને તેણે પિનાના ડાબા ઢીચર્સ - ઊંચો કર્યો ઉચે કરીને પછી તેણે જમણા ઢીચણને નીચે પૃથ્વી ઉપર ટેકવ્યા ટેકવીને તેણે ત્રણ વખત પિતાના મ તને નીચે પ્રથ્વી ઉપર ટેક, ટેકાન તે થોડી મી-મસ્તકને નીચે નમાવ્યું ત્યારપછી તેણે કટક અને ગુટિલ વિભૂષિત ભુજાઓને ભેગી કરી, ભેગી કરીને તેણે તેઓ બનેની અ જલિ બનાવી અને તેને મસ્તક ઉપર આદક્ષિણ પ્રક્ષિણ-પૂર્વ 4 ફેરવીને આ પ્રમાણે કહ્યું,
(नमोत्थुण अरहताण जाव सपत्ताण नमोत्युण समणस्स भगा म वीरस्म जान सपाविउकामस्र वदामिण भगवत तत्थगय ह गया .. म भगत