Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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माता remee r -wormeramananengere.
टीका-'तपण से हत्या गल गयो पानदेयः शैम्भिक पुरुष शब्दयति, गटयिता मादी-गाय त्या देशानुपिय ! समाया सुधर्माया सामुदाय' सामुदायिक मेरि गाउय, नगरस पौम्बिक पुरुष फरतर० गद्-मस्त केनिया गान् गस्य वामदेवस्पतमर्थ प्रतिशणोति, मतिश्रुत्य योगमाया गुणांया 'मामुइया' सामुदायिकी भेरी तगोपागच्छति, उपागन्य मादागिणी भरी माना गदेन वाटयति, पन महाशब्दो भवति, नधा मेरी नायनि मेत्यर्थ., ततस्तदनन्तर खलु तस्या _ 'ताण से कण्हे यासुदे त्यादि ।
टीका-(तण्ण इसके पाद (से करे वासुदेवे) उन कृष्ण वासुदेवन (कोइयियपुरिस साह ) अपने कौटुम्पिक पुरुप को बुलाया, धुला कर ( एव वयासो) उनसे ऐसा कहा-(गच्छर तुम देवाणुपिया। समाग सुहम्माए मामुदाहय भेरि तालेहि ) हे देवानुप्रिय तुम सुधमा ममामें जाओ और यहा जाफर सामुदाय की भेरी को यजाभो (तण्ण से कोषिष पुरिसे करयल जाव कण्हस्त वासुदेस्स एयम पाड सुणेइ, पडिसुणित्ता जेणे सभाए सुरम्माए सामुदाझ्या भेरी तेणव उवागच्छद, उबागत्तिा सामुदाय भेरि मत्या सद्देण तालेह ) इस प्रकार की कृष्ण वासुदेव की आज्ञा को उस पुनप ने पड़े विनय के साथ अपने दोनों हाथों को मस्तक पर रखकर स्वीकार कर लिया और स्वीकार करके फिर वह सुधर्मा सभा मे जहा यह सामुदायिकी भरा था वा आया। वहा आकर उसने उस सामुदायिकी भेरी को इसतरह 'तपण से कण्हे वासुदेवे' इत्यादि
थ-(तएण) त्या२पछी (से कण्हे वासुदेवे) -वासुदेव (कोड बिय पुरिस सहावेइ) पोताना श्री ५३पान मा भने मोलाचीन (एव षयासी) भने म प्रभा उखु -( गच्छह ण तुम देवाणुप्पिया! सभाए मुहम्माए सामुदाइय भेरि तालेहि) वानुप्रिय ! तमे सुधर्मा सलाम! मा मन त्याने सामुदायि: लेश १॥ (तएण से कोडु बियपुरिसे कर यल जाव कण्हस्स वासुदेवस्त ण्यममद पडिसुणेइ पडिसुणित्ता जेणेर समाए सुहम्माए सामुदाइया मेरी तेणे आगच्छइ उबागठित्ता सामुदाइय भेरि महया २ सद्देण तालेइ)- सतनी शु-पासुवनी माज्ञान त ३षे पूना न पो मने
ને મૂકીને સ્વીકારી લીધી, સ્વીકાર કર્યા પછી તે ત્યાંથી ** ભેરી હતી ત્યાં જઈને તે માટે અવાજ
408 (तएण ताए
ल्या सु
થાય
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