Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तामा उपागत्य करतलपरिगृहीतदशनख शिरआपते मस्तकेऽतलि कन्या, एवम्यक्ष्य माणमकारेण, आदिपु:-एर खड हे तात ! जय माणन निर्षिपया पियार मम देशाद् पहिनिगताः आज्ञप्ता: कृष्णोऽस्मान् देशाद् यहि निगन्तुमानतानि त्यर्थः । ततः खलु पाण्ड राजा तान् पत्र पाण्डवार एमादीत-' कहग' कथ केन कारणेन खल हे पुत्र ! यय कर्णन निर्षिपया आशमा ? ततः खलु ते पञ्च पाण्डवाः पाण्डु राजानम् एवमहा-एर खलु हे तात! पगममरकङ्कातः प्रति निटत्ता लवणसमुद्र 'दोनिनोयणसय सहस्साइ 'द्वियोजनशतसहस्राणि द्विलक्ष योजनपरिमित 'बीइवत्ता' व्यतित्रनिता:-उल्लहिताः । ततः खलु स कप्पो आगए (उयोगच्छिता) चहा आफर (जेणेव पट्ट) वे जहा पांड राजा थे (तेणेच उवागच्छति ) वहां गये ( उचागचित्ता) वरा जाकर (करयलकण्व वयासी) उन्हों ने अपने २ दोनों हाथों को जोड़कर उनसे इस प्रकार कहा-(ण्व खलु ताओ!) हे पिताजी ! सुनो-(अम्हे कण्हे ण णिन्धिसया आणत्ता) हमलोगों को कृष्ण वासुदेव ने देश से निकल जने को कहा है (तरण पडराया पच पडये एव चयासी) तव पाडु राजा ने उन पाचों पाडवो से इस प्रकार कहा-(करपण पुत्ता तुम्मे कण्हेण वासुदेवेण णिविसया आणत्ता) हे पुत्रो किम कारण को लेकर कृष्ण वासुदेव ने तुमलोगों को देश से याहिर निकल जाने को कहा है (नएण ते पच पडवा पडुराया एव वयासी) तर उन पांचो पाडवों ने पाड रोजा से इस प्रकार कहा-(एव खलु ताओ ! अम्हे अमरककाओ पडि णियत्ता लवणसमुद्द दोन्नि जोयणसयसहस्साइ वीइयत्ता) हे तात!
गच्छित्ता ) त्या भावाने (जेणेच पडू) ते या पाइ रात त ( तेणेव उवागच्छति) त्या गया (उवागच्छिता) त्या धन (करयल० एव वयासी) તેમણે પિતપતાના અને હાથ જોડીને તેમને આ પ્રમાણે વિનતી કરી કે (एव खलु ताओ) 8 पिता | सामणी, (अम्हे कण्हेण णिव्विसया आणत्ता) कृत्वामुवे अभने शिथी माता २९पानी याज्ञा माथी छ (तएण पडु राया पच पडवे एव वयासी) त्यारे पाई शत पाये पायोने - प्रभारी छु 8-( कहण्ण पुत्ता तुभे फण्हेण वासुदेवेण णिव्विसया आणत्ता ) 3 पुत्र। કૃષ્ણ વાસુદેવે શા કારણથી તમને દેશમાથી બહાર જતા રહેવાની આજ્ઞા આપી छ ? (तएण ते पच पडवा पडुराया एव वयासी ) त्यारे व पाय 43पोमे पा ने मा प्रभारी छु -( एव सलु ताओ । अम्हे अमरककाओ पडि णियत्ता लवण-समुद्द दोन्नि जोयणसयसहस्साइ वीइवइचा) 3 ' सामना,