Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनगारधर्मामृतवर्षिणी टो० स० १६ द्रौपदीचरितनिरूपणम्
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दोवइ देवी ण णजइ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किन्नरेण वा किं पुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा णीया वा अवस्खित्ता वा १, इच्छामि णं ताओ । दोवईए देवीए सव्वओ समता मग्गणगवेसणं कय, तएण से पडुराया कोडुंवियपुरिसे सहावे सद्दावित्ता एवं व्यासी- गच्छह णं तुभे देवाणुपिया । हत्थिणाउरे नयरे सिघाडगतिय चउक्वचच्चर महापहप हेसु महया सद्देण उग्घोसेमाणा २ एवं बयासी एवं खलु देवाणुप्पिया 1 जुहिहिस्सरपणो आगासतलगसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी ण जड़ केणइ देवेण वा दाणवेण वा किन्नरेण वा किपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा नीया वा अवक्खित्ता वा तं जो णं देवाणुप्पिया । दोवइए देवीए सुई वा जाव पवित्ति वा परिकहेइ तस्स णं पडुराया विउल अत्थसपयाणं दाणं दलयइ तिक्हु घोसणं घोसावेहर एयमाणत्तिय पञ्चपिणह, तरणं ते कोडुवियपुरिसा जाव पच्चपिणंति, तणं से पड़राया दोवईए देवीए कत्थइ सुइ वा जाव अलभमाणे कोंती देवीं सद्दावेइ सदावित्ता एवं वयासी - गच्छह णं तुम देवापिया | वारवइ णयरिं कण्हस्स वासुदेवस्स एयमट्ट णिवेदेहि कप णं पर वासुदेवे दोवइए भग्गणगवेसणं करेजा अन्ना न नज्जड दोवइए देवीए सुतीं वा खुती वा पवतीं वा उवलभेज्जा, तणसा कोंती देवी पडुरण्णा एव बुत्ता समाणी जाव पडिसुणेइ पडिणित्ता पहाया कय्वलिकम्मा हत्थिखध
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