Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
પ્રંટ.
ámeredeunted सन्तीदेवानागारास यावन् प्रतिशृगोवि= पाण्यनुपस्था सीपरोलिना
मस्ति
कुरुनाम
हस्तिनापुर मानिर्गत्य कम्य देशस्य येनापती नगरी, यीबा द्यान=पत्रान्पस्थानादागतानां
वि
नम्, कोपरगति, जगत्य हस्तिन्ात्मत्यात प्रत्ययवरवि, मत्प चौडम्बरपुरपान यति लामीछत खल यूथ है
"
(तरण मा कोती देवी परावृत्ता ममाशी जान पडिसुणेड, पडिणिसा, पाया कलिकम्मा एरिया रयिणावर मंझ मज्शेण निमच्छड णिगच्छित्ता करुनणवय मज्झ मज्येण जेणेव सुर जणचण जेणेव पारवई घरी जेणेव अग्गुजाणे तेणे उपागच्छ उवा गच्छत्ता हसिनाओ पच्चोरहरु, पच्चोमरिता कोयियपुरिसे सहा वेह, सावित्ता एव चासी ) इस के बाद पालुराजा द्वारा इस प्रकार कही गई कुती देवी ने पाडुराजा की आज्ञा को स्वीकार कर लिया और स्वीकार कर के उसने स्नान किया - काक आदि पक्षियों के लिये अन्न देने रूप चलि कर्म किया। बाद में वह हाथी के ऊपर बैठकर हस्तिनापुर नगर के बीच से होकर निकली - freest ar कुरुदेश के बीच से होती हुई जहाँ सौराष्ट जनपद था और उसमें भी जहा द्वारावती नगरी थी वहा पर भी जहाँ वह अग्रउद्यान था कि जिसमें बाहर से आये हुए पथिक विश्राम के लिये ठहर जाते थे वहां गई। वहा जाकर
-
(तरण सा कोंती देवी पडुरण्णा एव चुत्ता समाणी जाव पडणे, पडिणिता, पहाया कयनलिकम्मा हस्थिसवरगया हत्थिणाउर मज्झ मज्झेण निगच्छ, णिच्छित्ता कुरुजाणवय मज्न मज्झेण जेणेव सुरजणवप जेणेव धारवई जयरी जेणेव अग्गुज्जाणे तेणेव उपागच्छ, आगच्छत्ता हत्यिवधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता कोडु बियपुरिसे सहावेइ, सावित्ता एव वयासी ) ત્યારપછી પાંડુરાજા વડે આ પ્રમાણે આજ્ઞાપિત થયેલી કુતીદેવીએ પાડુરાજાની આજ્ઞાને સ્વીકારી લીધી અને સ્વીકારીને તેણે સ્નાન કર્યું કાગડા વગેરે પક્ષીએ ને અન્નભાગ અર્પીને લિમ કર્યું ત્યારપછી તે હાથી ઉપર સવાર થઈને હસ્તિનાપુર નગરની વચ્ચે થઈને નીકળી નીકળીને તે કુદેશની વચ્ચે થઈને જ્યા સૌરાષ્ટ્ર જનપદ હતું અને તેમા પણ જ્યા અગ્ર ઉદ્યાન -तेमा હતુ કે જેમા મહારથી માવનારા પથિકા વિશ્રામ માટે