Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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winter arrest
"मायादिविधाने च वातोक्तन्यायाधिते ।
द्रव्यादिभेदतो यो धर्म पत्रात पत्र हि "|| हारिद्राष्टकम् य - जिनमतिमाया दर्शन न चापमेन गानामिति पन्नाधा भक्तपान न करने तेपामित्याहुस्तनिर्मूलम्
अहोरानन्येषु माथुरल्पेषु जिनमतिमादर्शनादेरनुक्तलात् । शृणु तादोरात्र
कृत्य माधुनाम्~~
नेवाले है अतः अयोग्य को दीक्षा दान की तरह जब इन्द्रादिक के पूजन की तरह यह प्रतिमापूजन आगमोक्त व्याय से निराकृत होने से धर्म का व्याघात करनेवाला है ऐसा विश्वास करना चाहिये । तथाच अनुमानप्रयोगोऽय-प्रतिमापूजा वर्मव्यापानपती आगमोक्ल्याप निराकृ तत्वात् अयोग्यप्रव्रज्या दोन्चत इन्द्रादिपूजन पहा । इस अनुमान में दिया गया हेतु असित नही है क्यो कि " माज्यादिनिधाने च शस्त्रोक्तन्या यवाधिते - द्रव्यादिभेदतो ज्ञेयो धर्मव्यायात एव हि " दृष्टान्त में इस हेतु का इस लोक द्वारा कथित प्रकार से सद्भाव पाया ही जाता है।
जो यह कहा जाता है कि जिनमनमा के दर्शन चन्दन किये बिना साधुओं को आहार पानी करना कल्पनीय नहीं है-अत. उसका दीन वन्दन करना साबुओ के लिये आवश्यक है वह बिलकुल निर्मूल हैकारण कि दिनरात साधी जितने भी साबुओं के कल्प है उन में इस बात का कही भी कथन किया हुआ नही मिलता है - दिनरात मधी साधुओं के ये कृत्य है—
દીક્ષાની જેમ અથવા તેા ઇન્દ્ર વગેરેની પૂજાની જેમ આ પ્રતિમાપૂજન આગમ કથિત ન્યાયથી નિરાકૃત હાવા ખદલ ધર્મો નાશ કરનારૂ છે આમ માની જ सेवु ले " तथा च अनुमानप्रयोगोऽय प्रतिमापूजा धर्मव्याधातवती आगमो क्तन्यायनिराकृतत्वात् अयोग्य प्रव्रज्यादानात् इन्द्रादिपूजनयद्वा । या अनुमानभा आपेस हेतु असिद्ध नथी, आशु -प्रब्रज्यादिविधाने च शास्त्रोक्त न्यायवाधिते - द्रव्यादिभेदतो ज्ञेयो धर्मव्याघात एव हि । दृष्टातभा भा हेतुना था ૐ જે કથિત પ્રકાર છે તેના સદ્ભાવ મળે છે
જે એમ કહેવામા આવે છે કે જીન પ્રતિમાના દર્શન કર્યાં વગર સાધુ એને આહાર પાણી કરવુ ચેાગ્ય નથી એથી તેના દર્શન વન્દન કરવા સાધુ એના માટે આવશ્યક છે તે સાવ ખેાટી વાત છે. કેમકે દિવસ અને રાત્રિને લગતા સાધુએને માટે જેટલા કપ છે તેમા આ વાતનુ કથન કયાયે નથી દિવસ અને રાત્રિના સાધુઓના આ નીચે લખ્યા મુજખ ત્યા