Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ताधर्मया अपि च-" पूयाए फायदो, पडिगठो सो उ किंतु जिणपूया ।
सम्मत्तमुद्भिदेउ, ति भापणीया उणिवा ॥१॥ छाया-पूजाया कायपधः प्रतिगष्ट सान्तुि जिनपूना । सम्यक्त्वशुद्धिहेतु-रिति भावनीया त निरपया ॥१॥ समेतदुत्सूनमरूपणम्---श्रूयतां प्राचन तार--
दो हाणाइ अपरियागिता आया णो केलिपनत्त धम्म लमेज्न सगयाए । त जहा-आरभे चेत्र परिग्गहे चेन । दोहाणाइ अपरियाणित्ता आया णो केवल वोहिं युज्झिज्जा। त जहा-आर मे चेव परिग्गहे चेर ।। (म्या २ ठा १3.)इति " पूयाए कायरहो पडिकुट्टो सो उ किंतु जिणपूपा । सम्मत्तसुद्धिहउ, त्ति भावणीया उणिरवजा ॥१॥ इस प्रकार की उत्सूत्र प्ररूपणा द्वारा भ्रम में ही डालते रहते हैं। हमें तो धुद्धि पर तरस आता है कि वे क्या नही इस सिद्धान्त को समझने की चेप्टा करते है कि-"दोहाणाइ अप रियाणित्ता आया णो केवलिपण्णत्त धम्म लभेज सवणयात जहाआरभे चेव परिगाहे चेव । दोहाणाइ अपरियाणित्ता आया णो केवल बोधि वुझिज्जा त जहा-आरभे चेव परिग्गहे चेय (स्था २ ठा १३.) ये दो धनधान्य आदि रूप परिग्रह और प्राणातिपात आदि रूप आरभ स्थान अनर्थ के कारण है । जप तक आत्मा परिज्ञा से इन्हें जान कर और प्रत्याख्यान परिज्ञा से इनका परित्याग नही कर देती है तब वह ब्रममदत्त की तरह केवलि द्वारा कथित धर्म के सननेका अधिकारी नही हो सकती है और न इन दोनों के त्याग किये विना वक्र सम्यस्त्व की वहो पडिकुटो सोउ किं तु जिणपूया। सम्मत्तसुद्धिहेउ, त्ति भावणीया उपर चज्जा ॥ १ ॥ मा तनी सूत्र ३५६ : अभभा. नामा राम । અમને તે તેમની બુદ્ધિ ઉપર દયા આવે છે કે તેઓ આ સિદ્ધાંતને સમ जवानी रोशिश भ नडि ४२ता जाय १ मत “दो द्वाणाइ अपरियाणिता
याणो केवलिपण्णत्त धम्म लभेज्ज सवणयाए । त जहा-आर भे चेर परिग्गहे चेव । दो द्वाणाइ अपरियाणित्ता आया णो केवलिकोधि चुज्झिज्जा त जहाआर मे चेव परिग्गहे चेव (स्था० २ ठा० १०) मा मे धन धान्य कार રૂપ પરિગ્રહ અને પ્રાણાતિપાત વગેરે રૂ૫ આર ભ સ્થાન અનર્થના કારણે છે
જ્યા સુધી આત્મા જ્ઞ પરિજ્ઞા વડે એમને જાણીને અને પ્રત્યાખ્યાન પરિઝાવડે એમને પરિત્યાગ કરતી નથી ત્યા સુધી તે બ્રહ્મદત્તની જેમ ફેવલિવડે કથિત ધર્મને સાભળવા માટે અધિકારી (યોગ્ય પાત્ર) ગણાઈ રે” નથી અને તે બનેને જ્યાં સુધી ત્યાગ કરે નહિ ત્યા સુધી તે સમ્સ'