Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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साधर्मपाल ससय ' उपाश्रयम् उपपय मिनिक पर गंप्रेक्ष्य पन्ये मादर्भुतममा, ताया रजन्या यायमलनिय उगि निगोपासिकानामार्गाणामन्तिा प्रति , निजामति, प्रतिनिधम्म पाठिएर 'मार्यय-गगभगमन्यमुपायपमुपसपय..
खलु विहरति-आन्त समा ____तवः खल्ल ता गुरुमारिका भार्या ' गोष्टिया' गप्पष्टिका अपवार .. रहिता-उपगला अविनयमगीति यान ' अनिवाग्यिा' अनिवार्या दुर्निवारा 'सच्छदई स दमति:-नास्त्रिधर्मानुगेधरहितमा, अमीन-पुनः पुन - ईस्तो धावति-प्रक्षालयनि गायत् स्थान पागण्या मानेपेधिती या जलेनाम्युक्ष्य - घेतयति-स्थानादिक करोतीत्यर्थः । तत्रापि च खल पार्यन्या, पार्धम्यविहारिणी, श्रय मे चली जाऊ इस प्रकार का उमने विचार फिया (महिला) ऐसा विचार फरके (करल पा० गोवालियाण अजाण) दूसरे ही दिनप्रातः काल जर सूर्योदय रोगया-तप वह गोपालिका आर्या के (अतियाओ) पास से (पउिनिस्वमित्ता) निकल कर-(परिपक) भिष, दूसरे (ज्यस्सय) उपाश्रय फो (उयसपज्जिताण विएरइ) प्राप्तकर, वहा रहने लगी-अर्थात् दुसरे उपाश्रय में चली आई। (तण्ण सा सूमालिया'अज्जा अणोहहिया अनिवारिया सच्छदमई अभिरखण अभिक्खण हत्थे धोवेद जाव चेण्ड) घरा घर सुकुमारिका आर्या विना, किसी रोक टोक के स्वच्छद पनकर रहने लगगई। वहाँ उसे-का रोकने वाला रहा नहीं सो जो मन में आया वह करने लगगई-इस, तरह वह चोरित्र धर्म के भाव से रहित यन गई । पार २ अपने हाथों को धोती यावत् स्थान, शय्या, और स्वाध्याय की भूमि को धोकर वा गोलियाण अज्जा) पार हिपसे सवारे न्यारे सूय य पाभ्ये। त्यारे त मापालिका आयांना (अतियाओ) पाथी (पडिनिक्समित्ता) नीतीन (पडिएक) मीन ( उवस्सय ) Gपाश्रयने ( उयसपजिलाण विहरइ ) भगवान त्या २७१! aail, मीn 6श्रयमा ती ही (त एण सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया अनिवारिया सच्छदमई अभिक्खण इत्थे धोवेइ जाव चेएइ) त्या તે સુકુમારિકા આય કેઈપણ જાતની રોક ટોક વગર સ્વચ્છ તાપૂર્વક રહેવા લાગી ત્યાં તેને કેઈ રેક-ટોક કરનાર હતું નહિ એટલે જે પ્રમાણે તેની ઈચ્છા થતી તે પ્રમાણે જ તે આચરતી હતી આ રીતે તે ચારિત્ર ધર્મના ભાવથી રહિત બની ગઈ વાર વાર તે પિતાના હાથને ધોતી હતી યાવત્ સ્થાન, પથારી અને સ્વાધ્યાયના સ્થાનને ધોઈને ત્યા પિતાનું સ્થાન નક્કી કરતી હતી