Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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| সাগমখায় आर्तध्यानध्यायामि । ततः ब सागरेटी गुमारिकागा रिफाया अन्ति के एतमर्थ श्रुतता, सागर सागर गुमारिकाया पिता, तोवोपा गच्छति, उपागलग त सागरदनसमय नियति । ततस्तदनन्तर स सागरदत्ता सार्यवाहो दासवेटयामन्ति के पसर्ग श्रुत्ला निशम्य आशुरप्तानीघ्र क्रोधाविष्टः सन यत्र जिनदत्तस्य गार्यवाहस्य गृह संयोपागछति, उपागत्य जिनदत्त सार्थबाइमेग्मगादीव-दे देवानुमियाय सतु पय युक्तम्-उमिन या प्राप्त फुलमर्यादामनुप्राप्त ना कुलातुरप-गुलयोग्यतावासमा कुलमहरा-कुलगाम्यापन्न वा, यत् सलु सागरो दारसः मुमारिका रिकामदीपा-निर्दोपा पतित्रता गई कि वे चले गये है हम विचार से में अपरतमनः सारप होकर आर्त योन-चिता-मे पड़ रही है। इस प्रकार सुकुमारिका की बात सुनकर वह दामचेटी बहुत सोच विचार करके वहा से सागरदत्त के पास आई । ( उबागच्छिता सागरदत्तस्स ण्यम निवेण्ड-तण्ण से मागरदत्ते दासचेडीए अतिए ण्यमट्ट मोच्चा निसम्म आसुरत्त जेणेच जिणदत्तस्स सत्यवाहस्स गिहे तेणेच उचागच्छद-उवाच्छित्ता जिणदत्त एव वयासी) वहाँ आफर उसने सगरदत्त से इस बात का कहा- इस तरह दासचेटी के मुग्व से इस घोत को सुनकर और उस हृदय में धारण कर सागरदत्त बहुत अधिक-युद्ध हुआ और उसो समय जहा जिनदत्त सायचार का घर था वहा गया । वहा जाकर उसने जिनदत्त से इस प्रकार कहा-(किण्ह देवाणुप्पिया ! एव जूत्त वा पत्त वा कुलाणुरूव वा कुलसरिस वा जन्न सागरदारए सूमोलिय મન સંકલ્પ થઈને આતંદયાન-ચિંતા-મા પડી છે આ રીતે સમારકાની વાત સાભળીને તે દાસ ચેટી ખૂબજ વિચાર કરીને ત્યાથી સાગરદત્તની પાસે ગઈ
उवागच्छित्ता सागरदत्तस्य एयमह निवेएइतएण से सागरदत्ते दासचेडाए अतिए एयम सोचा निसम्म आसुरुत्ते जेणेन जिणदत्तस्स सत्थवाहस्स गिई तेणे उपागच्छइ-मागच्छित्ता जिणदत्त एव पयासी)
ત્યા આવી ને તેણે સાગરદત્તને આ વાત કરી આ રીતે દાસ ચેટીના મુખથી બધી વિગત સાભળીને અને તેને હૃદયમાં ધારણ કરીને સાગર દત્ત અત્યત ગુસ્સે થયો અને તરત જ ક્યા જિનદત્ત સાર્થવાહનું ઘર હતુ ત્યા ગમે ત્યાં જઈને તેણે જિનદત્ત સાથે વાહને આ પ્રમાણે કહ્યું કે
(किण्ण देवाणुप्पिया ! एव जुत्त वा पत्त वा कुलाणुख्त्र वा कुलसरिस वा जन्न सागरदारए ममालिथ दरियं अदिवदोस पइय विपनहाय इहमागओ वहहि खिज्जणियाहि य रुदृणियाहि य उवालभइ)