Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनगारधामृत पपिणी टी० भ० १६ सुकुमारिकाचरितवर्णनम् २०६ ' से ' तस्य शयनीयं तगोपागच्छति उपागत्य सागरदारकस्य पार्श्व ( निवज्जई) निपीदति-स्वपिति । ततः खलु स सागरदारका सुकुमारिकाया दारिकाया 'दुच्चपि ' द्वितीयवारमपि इममेतद्रूपम् पूर्वोक्तमकारसम् अगस्पर्श प्रतिसवेदयति यावद्-अकामकोऽपस्वपशो मुहतमात्र सतिष्ठति, ततः खलु स सागरदारका सुकुमारिका दारिका मुखप्रसुप्ता ज्ञात्वा शयनीयात् गग्यात उत्तिष्ठति, उत्थाय वासगृहस्य-शयनगृहस्य द्वार 'विद्दाडेड' घिाटयति = उद्घाटयति विघाटय 'मारामुक्के चित्र काए' मारामुक्त इव काफ:-मायन्ते माणिनो यस्या सा मारा मणुरत्ता पति पासे अपस्समाणी तलिमाउ उद्वेइ उद्वित्ता उवागच्छह ) वह सागरदारक उस सुकुमारिका दारिका को सुखसे सोई हुई जानकर उस सुकुमारिका दारिका के पास से उठ बैठा-और उठकर जहां अपनी शय्या थी वहां चला गया। वहां आकर उस पर पड़ गया इतने मे ही एक मुहर्त के बाद वह पति में अनुरक्त धनी हुई पतिव्रता सुकुमारिका दारिका जग गई और अपने पास पति को न देखकर अपने पलग से उठ बैठी । उठकर यह जहा सागरदारक का पलग था वहा गई। (उवागच्छित्ता सागरस्स पासे णुवज्जइ ) वहा जाकर वह उसके पास सो गई । (तएण से सागरदारए सुमालियाए दारियाए दुच्चपि इम एयारूवं अगफासं पडिसवेदेइ जाव अकामए अवसव्वसे मुहत्त मित्त सचिट्टइ, तएण से सागरदारए सूमालिय दारिय सुहपसुत्त पडियुद्धा समाणी पइन्चया पइमणुरत्ता पत्तिपासे अपस्समाणी तलिमाउ उद्वेइ उद्वित्ता आगज्छद)
તે સાગર દારક તે સુકુમારિકા દારિતાને સુખેથી સૂતેલી જાણીને તેની “પાસેથી ઉઠશે, અને ઉઠીને જ્યા પિતાની સચ્ચા હતી ત્યાં જ રહ્યો ત્યા જઈને તે તેની ઉપર પડી ગયે એટલામાં એક મુહૂર્ત પછી પતિમા અનુરકત બનેલી પતિવ્રતા સંકમારિક દારિકા જાગી ગઈ અને પિતાની પાસે પતિ ન જેતા પિતાની શયા ઉપરથી ઉઠી અને બેઠી ગઈ ત્યારપછી તે ઉઠીને જ્યા સાગર ६॥२४शल्या ती त्या ७ (वागछित्ता सागरस्स पासे णुवज्जइ) सां જઈને તે તેના પડખામાં સૂઈ ગઈ
__ (तएण से सागरदारए सूमालियाएदारियाए दुच्चपि इम एयारून अंगफासं __पडिसवेदेइ जाय कामए अवसबसे मुहुत्तमित्त सचिट्टइ,तएण से सागरदारए समा
लिगरियं मुहपसुत्त जाणिवा सयगिज्जाओ उद्देइ,उद्वित्ता वासयरस्स दार विहा.