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शुभाशीष/श्रद्धांजलि
साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ "श्रमण संस्कृति के पुरोधा" । विद्वत प्रसवनी विन्ध्यभूमि में सागर जिले के शाहपुर (मगरोन) में पुष्पित और समस्त दिगम्बर जैन समाज के मनोभावों में पल्लवित साहित्य मनीषी श्री डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
वास्तव में अभिनंदनीय था। पण्डित जी साहब का स्मृति ग्रंथ प्रकाशित होना गौरव | शाली एवं स्तुत्य प्रयास है।
आपका व्यक्तित्व सरलता और सादगी का अनुपम भण्डार था। संसार की सरकती सरिता में सब कुछ बह रहा है। स्थिरता के नाम पर केवल जन्म का मरण ही है, इस मरण एवं जन्म को रोकने हेतु जिनागम का स्वाध्याय और उसका आचरण ही एक मात्र उपाय है। पंडित जी ने जीवन विकास के साथ ही मानव मूल्य के पुरोधा बनकर आचार्य प्रणीत शास्त्रों का आलोड़न किया एवं अपनी सरल शैली द्वारा स्वयं को सचेत करते हुए
स्वाध्याय प्रेमियों को समझाया, छात्रों को उज्ज्वल भविष्य के लिए ज्ञान के नित नये आयाम दिये, अर्धशतक से भी अधिक श्री गणेश दिग. जैन संस्कृत महाविद्यालय में समर्पित रहकर ज्ञान दान दिया । डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ने आपकी कृति "जैन पूजाकाव्य" विषय पर आपको पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की । ज्ञान दान के द्वारा छात्रों को संस्कारित किया। वे छात्र आज विद्वानों के रूप में समाज में अलंकृत हैं। पंडित जी का स्मृति ग्रंथ प्रकाशन सरस्वती की प्रभावना है आप जैसे भद्र परिणामी विद्वान विरले ही होते हैं। दिवंगत मनीषी को आर्शीवाद तथा सम्पादक मंडल को मेरा आर्शीवाद :
- आर्यिका विजय श्री
शुभाशीष डॉ. पं. दयाचंद्र जी साहित्याचार्य विद्वत जगत के मनीषी विद्वान थे। आपने अग्रिम पंक्ति में कदम से कदम मिलाकर विद्वत परम्परा को गौरवान्वित किया है। जिन्हें गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय ने विद्वत रत्न से एवं डा.सर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ने पी.एच.डी. में डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की है।
डॉ. पं. दयाचंद्र जी साहित्याचार्य सागर प्रभु भक्ति में लीन रहकर गुरूओं के आदर सत्कार में सदा अग्रणी रहते थे। आप संस्कृत महाविद्यालय में 20 वर्षो तक प्राचार्य पद | पर रहे। अपने जीवन के वर्ष 1951-2005 का स्वर्णिम समय जैन आगम, धर्म, दर्शन, | सिद्धांत आगम के साथ साहित्य के पठन पाठन में व्यतीत किया। ____ आप गोम्मटसार कर्मकाण्ड के रसिक थे। जिन्हें कि अष्टकर्म की प्रकृतियाँ यूं ही मुंह
जवानी याद थी। जो कि उनकी व्याख्या करने में कुशल थे , सिद्धहस्त थे। | पं. जी द्वारा भारत वर्ष के विभिन्न नगरों में पर्युषण पर्व की सभाओं में, धर्म पिपासु
बंधुओं को धर्मोपदेश प्रदान किया गया । आपने जीवन के अंतिम क्षणों में साधना रूपी मंदिर पर मोराजी प्रांगण में भगवान बाहुबली स्वामी के चरणों की छत्रछाया में 12 फरवरी 2006 को णमोकार मंत्र की मांगलिक ध्वनि सुनते हुये शुभ मरण रूपी कलशारोहण किया, पंडित जी साहब के स्मृति ग्रन्थ की स्मृति समाज के लिए एक धरोहर रहेगी। सभी विद्वान बंधुओं एवं कार्यकर्ताओं के परिश्रम के लिए साधुवाद।
ऐलक निश्चय सागर
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