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अनावृत्तिः
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अनियत
अनावृत्तिः (स्त्री०) मोक्ष, मुक्ति।
कहते हैं। यह प्रथम भावना है, इस संसारी जीव का शरीर अनावृष्टिः (स्त्री०) वर्षा का अभाव। आवृष्टिर्वर्षणम्, तस्य ही विनश्वर है, तो फिर उससे सम्बन्ध रखने वाली भोगोपभोग अभावः अनावृष्टिः । (धव०पु०१३, वृ० ३३६)
की साधन भूत इतर वस्तुओं में टिकाऊपन हो ही कैसे सकता अनाशंसा (स्त्री०) इच्छा का अभाव। सर्वेच्छोपरमः।
है, ऐसे विचार करने का नाम अनित्यानुप्रेक्षा है। अनासक्त (वि.) नि:स्पृह, आसक्ति रहित। (जयो० वृ० अनित्यनयं (नपुं०) सद्भावानित्य-पर्यायार्थिक नय। २/१२)
अनित्यभावना (स्त्री०) अनित्यानुप्रेक्षा। अनासाद्य (वि०) निःस्पृह। (सम्य० ११६) रत्नत्रयमनासाद्य यः । अनित्य-स्वभावः (पुं०) क्षणभंगुर स्वभाव। अस्थिर परिणाम, साक्षात् ध्यातुमिच्छति।
०चंचल प्रवृत्ति, चपल भाव। अनास्वादित (वि०) आस्वादन रहित। (जयो० वृ० १६/३०) अनित्यकैता (वि०) क्षणस्थिति। (जयो० २६/८९) अनाश्रमिन् (वि०) आश्रम की कमी।
अनिदा (स्त्री०) वेदना विशेष, विवेक के अभाव में उत्पन्न वेदना। अनाश्रव (वि०) [नञ्+आ+श्रु+अच्] जो न सुने। ०अनसुनी अनिद्र (वि०) निद्रा रहित, जागृत। (जयो० २८/२) करने वाला।
अनिद्रालु (वि०) अनालस्य, सावधान, जागृत। (जयो० २८/२) अनास्रव (वि०) उदासीनता, तटस्थता।
अनिधत्त (नपुं०) कर्म प्रदेशाग्र का अपकर्षण। अनाहत (वि०) आघात रहित, अक्षत।
अनिन्द्रियं (नपुं०) मन, जो इन्द्रिय का विषय न हो। अनिन्द्रियं अनाहार (वि०) उपवास करने वाला।
मनो। अनाहारः (पुं०) औदारिकादि तीन शरीरों के योग्य पुद्गलों को अनिन्द्य (वि०) अप्रशंसनीय, अवंदनीय, प्रशंसा रहित। (जयो० नहीं ग्रहण करना।
१/१२) अनाहारक (वि०) विग्रहगति को प्राप्त, तीन शरीर, तथा छह | अनिन्दित (वि०) प्रशस्त, समुचित, यथेष्ठ। (जयो० ५/५६)
पर्याप्तियों के योग्य पुद्गल स्वरूप आहार न ग्रहण करने अनिबद्ध (वि०) सार्वजनिक, प्रकाशित, अस्थिर, चंचल। वाला।
अनिबन्धनं (नपुं०) निरावरण, निराकरण। णमो अनाहुतिः (स्त्री०) होम न होना, आहूति न देना।
अमिय-सव्वीणमापत्तेरनिबन्धनम्। (जयो० १९/८१) अनाहूत (वि०) अनिमन्त्रित, अनामन्त्रण।
अनिभृत (वि०) सार्वजनिक, प्रकाशित, अस्थिर, चंचल। अनिकाचित (वि०) उत्कर्षण, अपकर्षण, संक्रमण, उदीरणा। | अनिमित्त (वि०) निष्कारण, निराधार, आकस्मिक, बिना अनिकेत (वि०) [न+निकेत] गृहहीन, अनगार।
प्रयोजन। (जयो० १५/६२) केचिच्छशं केचिदितः कलङ्क अनिगीर्ण (वि०) निगला न गया, अगुप्त, अच्छादित।
वदन्तु हीन्दोनिमित्तमङ्कम्। अनिध्नन्न (वि०) बन्धोदय न होना। (सम्य० १२१)
अनिमित्तं (नपुं०) पर्याप्त कारण का अभाव। अनिचार (वि०) आचार विहीन।
अनिमेषः (पुं०) ०मत्स्य, ०मीन का नाम, सफर नामक अनिच्छु (वि०) [नास्ति इच्छा यस्य] [नञ्+इच्छुक्] इच्छा मच्छली, बृहन्मीनभावमवापेति। (जयो० ५/७३)
रहित, नि:स्वार्थ। आख्याति विख्यातिमनिच्छुरेव। (जयो० | अनिमेषः (पुं०) अनिमेष नमक देव, निमेषरहित देव। अनिमेष
२७/२२) अनिच्छुरेव सन् नि:स्वार्थः। (जयो० वृ० २७/२२) निमेषरहिता देवा। (जयो० ११/७४) अनित्य (वि०) ०क्षणभंगुर, ०अशाश्वत, नश्वर, ०आकस्मिक, अनिमेषः (पुं०) मत्स्य नामकदेव। (जयो० ११/७४) अनिमेष
अस्थिर, चंचल, अनिश्चित, ०अनियमित। अनित्यो हशैव पश्यति। (समु० २/७) देव एकटक से देखता है प्रतिक्षण विनाशी। (स्यावाद मंजरी)
अनिमेष (वि०) टकटकी लगाए, बिना पलक झपके। अनिमेष अनित्य (वि०) वस्तु तत्त्व विवेचन की शैली, स्याद्वाद की हशैव पश्यति। (समु० २/७)
अनेकान्त शैली में सामान्य विशेष, सत-असत्, अनिमेष-दृष्टि: (स्त्री०) निर्निमेष दृष्टि, स्थिर दृष्टि। नित्य-अनित्य आदि दृष्टियां होती हैं। पर्याय की अपेक्षा अनिमेष-लोचनं (नपुं०) स्थिर दृष्टि, अचपलता रहित नयन। अनित्य। (वीरो० १९/२१) अनित्य नाम भावना/अनुप्रेक्षा अनियत (वि०) अनियंत्रित, अनिश्चित, संदिग्ध, कारणरहित, का भी है। जिसके अनित्य भावना या अनित्यानुप्रेक्षा भी आकस्मिक, नश्वर।
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