Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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गुरुक
३६०
गुल्गुलर
गुरुक (वि०) [गुरु कन्] भारी, वजनी।
गुरुलाघवं (नपुं०) अत्यधिक महत्त्व, विशिष्ट मूल्य। गुरुकार: (पुं०) उपासना, पूजा।
गुरुवर्गः (पुं०) शिक्षक गण, पूज्यवृंद। गुरुक्रमः (पुं०) उपदेश, शिक्षाक्रम।
गुरुवर्गाश्रितमोहः (पुं०) पूज्यवंद के आश्रित मोह 'जननीगुरुक्तिः (स्त्री०) बृहस्पतिमत, गुर्वी उतिर्यस्याः सा जनकादि सम्भूतश्चासौ मोहः' (जयो० १३/२०) गुरुतरप्रशंसनीय चार्वाक मत। (जयो० ५/४३)
गुरुवर्तिन् (पुं०) गुरु के समीप रहने वाला ब्रह्मचारी। गुरुजनः (पु०) श्रेष्ठ पुरुष, श्रद्धेय व्यक्ति, पूजनीय व्यक्ति। गुरुवर्तुलः (पुं०) श्रेष्ठ वर्तुलाकार, उत्तम गोलाकार। (जयो० गुरुगर्जित (वि०) अत्यधिक चिंघाड, तीव्र गर्जना। (जयो० ११/७) 'कलत्रचक्रे गुरुवर्तुले दकृ।' 'गुर च वर्तुलञ्च ८/२३)
गुरुवर्तुलं तस्मिन् प्रशस्तगोलाकारे' (जयो० वृ० ११/७) गुरुगौरवः (पुं०) अपना गौरव, निज सम्मान।
गुरुवाक् (नपुं०) पितृ आदि का कथन। गुरुणां पित्रादीनामाज्ञागुरुगौरवास्पदः (पुं०) जन्मदाता के गौरव पूर्ण स्थान, पितृस्थान। कारिणी (जयो० ५/९९)
(जयो० २४/४२) गुरुर्जन्मदाता तस्य गौरवास्पदं स्थानम्' गुरुवासरः (पुं०) बृहस्पतिवार, गुरुवार। (जयो० वृ० २४/४२)
गुरुवासिन् (पुं०) गुरु के समीप रहने वाला, ब्रह्मचारी। गुरुतर (वि०) १. उन्नत, बोझिल। 'गुरुतर-कार्येऽहं विचरामि' गुरुवृत्तिः (स्त्री०) उत्तम आचरण, गुरु का आचरण।
(सुद० ९२) कुचो गुरुतरो जातौ (जयो० १४/४१) २. | गुरुशुक्लता (वि०) १. बृहस्पति और शुक्र का सदभाव। २. श्रेष्ठतर, दुर्भरतर (जयो० १५/९६)
अत्याधिक शुक्लता, सफेदी की अधिकता। 'यस्यारिभावे गुरुतरकार्यः (पुं०) कठिन से कठिन कार्य।
गुरुशुक्लतास्ति' (जयो० १५/६९) 'गुरुर्ब्रहस्पतिः शुक्लश्च' गुरुतरप्रतिबिम्बः (पुं०) श्रेष्ठ प्रतिबिम्ब। (जयो० १५/९६) "भृगुस्तयोर्भावः गुरुशुक्लता यद्वा गुर्वी शुक्लता धवली गुरुताप्रकाशिन् (वि०) गौरवशाली। 'गुरुतां प्रकाशयन्ति तान् भावोऽस्ति किता" (जयो० १५/६९) गौरवप्रकाशकान्। (जयो० २/७१)
गुरुस्थानं (नपुं०) उन्नत स्थान, श्रेष्ठ स्थान। उपनीतः पुनर्भव्यो गुरुत्व (वि०) गुरुता, भारीपन, बड़कपन।
गुरुस्थानमिवालिभिः। (जयो० १०/८५) गुरुदेवः (पुं०) बृहस्पति, ब्रह्मा, गुरुदेव। (जयो० ३) गुर्व (वि०) साधुता, श्रेष्ठ। (सम्य० ९२) गुरुदक्षिणा (स्त्री०) शिक्षक वृत्ति।
गुवाभिज्ञ (वि०) श्रेष्ठता का ज्ञापक। (सभ्य० ९२१) गुरुदैवतः (पुं०) पुष्य नक्षत्र।
गुर्विणी (स्त्री०) गर्भवती स्त्री। गुरुद्रोहः (पुं०) पूज्य के प्रति विद्रोह। कृत्येऽस्मिस्तु महानेवं | गुर्वी (वि०) गभीरार्थवती (जयो० २०/८१) 'अर्थातिशयेन गुर्वी गुरुद्रहो भविष्यति। (जयो० ७/४२)
गभीगावती' (जयो० वृ० २०/८१) 'स्त्रीमात्रसृष्टावियमेव गुरुपदः (नपुं०) गुरु चरण, सच्चे गुरु की समीपता। गुर्वी' (जयो० ११/८४) २. गुरुभाव, उत्कृष्ट भाव, उन्नत ____ 'गुरुपदयोर्मदयोगं त्यक्त्वा ' (सुद० ९६)
विचार। (जयो० वृ० १५/६९) ३. बड़ी, महत्। 'रेरवैकिका गुरुपादः (पुं०) गुरु चरण, अध्यापक चरण। 'प्रसङ्गप्राप्तैरस्माकं नैव लघुर्न गुर्वी' लध्व्याः परस्या भवति स्विदुर्वी गुर्वी
गुरुपादैरूक्तम्' (दयो० १/१०) समुदित नेत्रवतीति प्रभवति समीक्ष्याथ लघुस्ततीयां वस्तुस्वभावः सुतरामितीयान्।। (वीरो० गुरुपाद-पसद् भावधृता। (सुद० ८२)
१९/५) गुरुपादपः (पुं०) उन्नत वृक्ष, उत्तम लता।
गुर्वीक (वि०) गुरु सेवक, पृथिवी सेवक, जमींदार, कृषि गुरुपूर्णिमा (स्त्री०) गौतम जन्म दिन, शिक्षक पूर्णिमा। (वीरो० पण्डित। गुर्वीक: गुरुणां सेवकः धराजीविकश्च (जयो० १३/३८)
२८/९४) बर्धमानादनंभ्राज एवं गौतमचातकः
गुलावं (नपुं०) गुलाब पुष्प। (वीरो० १३/४) लेभे सूक्तामृतं नाम्ना साऽऽषष्ठी गुरुपूर्णिमा।।
गुलुच्छः (पुं०) गुच्छ, गुल्म, समूह। गुरुभम् (नपुं०) पुष्यनक्षत्र।
गुल्गुलर (स्त्री०) नैवेद्य विशेष, मूलतः आटे में गुड़ मिलाकर गुरुमर्दल: (पुं०) मृदंग।
तला हुआ मीठा भुजिया। अत्रत्यविस्मापन दैवतायार्पितापि गुरुरत्नं (पुं०) पुखराज।
नासा खलु गुल्गुलाया। (जयो० ११/६२)
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