Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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चतुरिन्द्रियः
३७८
चन्द्रकला
चतुरिन्द्रियः (वि०) चार इन्द्रिय वाला जीव। (वीरो० १९/३५) चतुर्वर्ग (वि०) चार समूह। (जयो०१/२४) धर्म, अर्थ, काम
और मोक्षा (जयो० १/३) चतुर्वर्ण (वि०) १. चार वर्णों वाला। २. चार प्रकार के
अक्षरात्मक वर्ण। (वीरो० ३/९) ३. ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य
शूद्रा' (जयो० १/२४) चतुर (वि०) चार प्रकार का। (दयो० २/१) चतुर्विश (वि०) चौबीस, संख्या विशेष। चतुर्विंशति (स्त्री०) चौबीस, संख्या विशेष। (भक्ति०१८) चतुविंशतिक (वि०) चौबीस संख्या सहित। चतुविंशतिस्त: (पुं०) चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन। चतुर्विध (वि०) चार प्रकार का। चतुर्वेद (वि०) चारों वेद वाला। चतुर्षष्टि (स्त्री०) चौंसठ। (वीरो० ३/३०) चतुष्क (वि०) चार से युक्त, चार के समूह वाला। चतुष्टकं
चतुष्पथयुक्तम्। चतुष्कगल (वि०) गले के चार गुण। १. गान-गीत चातुर्य।
(जयो० ११/४८) २. कवित्व-कल्पनाशीलत्व। ३.
मृदुता-माधुर्य। सत्य-सत्यनिष्ठा। चतुष्कपूरणं (नपुं०) चौक पूरना। (जयो० १०/९१) चतुष्क-चक्रं (नपुं०) चार चक्र, चार संख्या चार पहिया।
(जयो० १०/४५) चतुष्कयुक्त (वि०) चारा समूह युक्त। (वीरो० १३/३) चतुष्चक्रं (नपुं०) चार चक्र। (जयो०८/५) चतुष्टय (वि०) चार से युक्त, चार संख्या सहित। (सुद० ) चतुष्ट्य (वि०) चार का समूह, चार संख्या। 'पौरुषं भवति । तच्चतुष्यम्' (जयो० २/१०) चतुष्ट्यी (वि०) चार से युक्त। श्रीमुक्त्यर्थचतुष्टयीमिति। (मुनि०
३२) चतुष्पथ (वि०) चौराहा, समन्तमार्ग। चतुष्पथक (वि०) चौराहा, समन्तमार्ग। (भक्ति० १४) (वीरो०
१२/३५) श्री चतुष्पथक उत्कलिताय। (जयो० ४/७) चत्वारः पन्थानो यस्य नरकगत्यादयो भवन्ति। (जयो० वृ०
२५/४२) चतुष्पादः (पुं०) चार पैर, चौपाया। (दयो० वृ० ३) चत्वरं (नपुं०) [चत्+ष्वरच्] १. चौराहा, आंगन, गोलाकृति,
२. मङ्गलमण्डप। चत्वरगः (पुं०) चौराहा। (जयो० २/१३३)
चत्वरपूरणं (नपुं०) मण्डल पूरना, रांगोली करना। (जयो०
२६/४) सर्वतश्चत्वरस्य मंगल-मंडलस्य पूरणे त्वरा शीघ्रता।
(जयो० वृ० २६/४) चत्वारिंशत् (स्त्री०) चालीस, संख्या विशेप। चत्वाल: (पुं०) हवन कुण्ड। चद् (अक०) बोलना, प्रार्थना करना। चदिरः (पुं०) १. चन्द्र, २. कर्पूर। चल (अव्य०) नहीं, न केवल, भी नहीं। चन्दः (पुं०) [चन्द्+णिच् अच्] १. चन्द्रमा, २. कपूर। चन्दनः (नपुं०) [चन्द्। णिच्+ ल्युट्] चन्दन तरु, एक सुगन्धित
पदार्थ। (जयो० ९/५५) (जयो० ११४४) (सुद० ३/७) कालागुरु मलयगिरेश्चन्दनमथ नन्दनमपि (सुद० ७१)
कृष्णागुरुचन्दनकर्पूरादिकमय (सुद० ७२) चन्दनरसचर्चित (वि०) चन्दन, रस से लिपटा हुआ। (वीरो०
१२/१६) सुगन्धियुक्त रस से लिपटा हुआ। चन्दनगिरी: (पुं०) मलयपर्वत। चन्दनः (पुं०) चन्दन तरु, सुगन्धित वृक्ष चन्दन। चन्दनता (वि०) मलयसुगन्धपना। (वीरो०१४/४५) चन्दनदुजः (पुं०) चन्दन वृक्ष, चन्दन तरू। (मुनि० ७) चन्दनद्रुमः (पुं०) चन्दन वृक्षा खदिरादिसमाकीर्ण चन्दनद्रुमववने।
(सुद० १२८) चन्दनलेपः (पुं०) चन्दन का लेपा कुङ्कमैणमचन्दनलेपान्।
(जयो० ५/६१) चन्दनादिः (पुं०) मलय पर्वत। चन्दनोदकं (नपुं०) चन्दन का जल। चन्दिरः (पुं०) [चन्द्+किरच्] १. हस्ति, हाथी। २. चन्द्रमा। चन्दोदयः (पुं०) चन्द्र का उदय। (वीरो० २/१५) चन्दोपल: (पुं०) चन्द्रकान्त मणि। निशासु चन्द्रोपलाभित्ति।
(वीरो० २/१५) चन्द्रः (पुं०) [चन्द्र+णिच्+रक्] १. चन्द्रमा, २. चन्द्रग्रह,
कपूर। (दयो० १/१८) ओषधिपति (जयो० १८/१८) 'द्वितीयाचन्द्रोऽष्टमीचन्द्रो (जयो० १/५५) * कुमुद-बन्धु-(जयो० वृ० ९/५१) * सुधाकर--(जयो० वृ० ५/६७) * रजनीश-(जयो० वृ० ५/६७) * सितांशु- (जयो० वृ० १५/५१)
* रजनीकर-(शीतरश्मि ३/१५) चन्द्रकला (स्त्री०) चन्द्र किरण। (जयो० ३/६४) (सुद०
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