Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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ज्येष्ठत्व
४२०
ज्वालामुखी
ज्येष्ठत्व (वि०) गुरुत्व को प्राप्त, श्रेष्ठता युक्त। 'महत्त्वमनुष्ठानेन ज्योत्स्नाप्रियः (पुं०) चकोर पक्षी। वा श्रेष्ठत्वम्
ज्योत्स्नावृक्षः (पुं०) दीपाधार, दीपस्तम्भ। ज्येष्ठ-कन्या (स्त्री०) बड़ी पुत्री, बड़ी लड़की।
ज्योत्स्निका (स्त्री०) चन्द्रिका, चांदनी। (जयो० १५/६१) ज्येष्ठतात: (पु०) बड़े भाई, ताऊ, दाऊ।
ज्योतिस्नी (स्त्री०) चांदनी रात। ज्येष्ठभ्रातृः (पु०) बड़ा भाई, ताऊ, दाऊ।
ज्यौतिषिकः (पुं०) [ज्योतिष ठक] गणक, दैवज्ञ, निमित्तज्ञाता। ज्येष्ठमातृ (स्त्री०) बड़ी माता, ताई।
ज्योतिषी। ज्येष्ठवर्णः (पुं०) सर्वोच्च वर्ण, सवर्ण, उत्तम कुल। ज्योत्स्नः (पुं०) शुक्ल पक्ष। ज्येष्ठवृत्तिः (स्त्री०) पूज्य प्रवृत्ति।
ज्वर (अक०) संताप होना, बुखार होना, रुग्ण होना। ज्येष्ठव्यापारः (पुं०) उत्तम व्यवसाय।
ज्वरः (पुं०) [ज्वर+घञ्] ताप, बुखार दर्पज्वर, मदनज्वर, शीतज्वर। ज्येष्ठश्वश्रुः (स्त्री०) बड़ी साली, जिठसास।
ज्वरपरिहारः (पु०) ज्वर नियन्त्रण ओं ही अहं णमो अरहताणं ज्येष्ठसुखं (नपुं०) उत्तम सुख। (जयो० वृ० १०७/७४)
णमो जिणाणं हाँ, ही, हूँ हौ ह्वः अ सि आ उ सा ज्येष्ठी (स्त्री०) जेठमास की पूर्णिमा।
अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झौं झी स्वाहां एवं जपित्वा ज्यो (सक०) परामर्श देना, सलाह देना।
यन्त्रप्रक्षालनोदकस्य शिरसि धारणेन ज्वरपरिहार: स्यात्। ज्योतिः (स्त्री०) प्रभा, कान्ति, आभा। तज्जयतु परं ज्योतिः (जयो० वृ० १९/५८) समं समस्तैरनन्तपर्यायैः। (सम्य० १५३)
ज्वरप्रतिकारः (पुं०) ज्वर परिहार, ज्वर निरोधक औषधि। ज्योतिर्मयः (वि०) [ज्योतिस्+मयट्] प्रभा युक्त, कान्तिमय, ज्वरयुक्त (वि०) ज्वर से पीडित। नक्षत्र सहित, तारामंडल सहित।
ज्वराग्निः (स्त्री०) ज्वर की ताप। ज्योतिरीश: (पु०) ज्योतिर्विद् ज्योतिमान। ज्योतिषामीशस्तस्य
चरिन् (वि०) ज्वराक्रान्त, ज्वर से पीड़िता (सुद० ९१) कान्तिमतो ज्योतिर्विदो' (जयो० ७० ६/६८)
ज्वरी (वि०) ज्यरयुक्त। ज्योतिष (वि०) [ज्योतिस्+अच] गणित/फलित ज्योतिष। ।
ज्वल् (सक०) १. चमकना, प्रदीप्त होना, दहकना, जलना। कान्तिमान् (जयो० वृ० ६/८८) ज्योतिषां रवि-चन्द्रादीनां
(सम्य० १०३) २. देदीप्यमान होना, प्रकाश करना। श्रुतिरिवास्ति' (जयो० वृ० ५/५२)
ज्वलत् (वि०) दह्यमान। (जयो० २७/६०) ज्योतिषः (पुं०) दैवज्ञ, गणक।
ज्वलनं (नपुं०) जलना, दहकना. चमकना। ज्योतिषविद्या (स्त्री०) ज्योतिर्विज्ञान।
ज्वजम्भलः (पुं०) नारंगी। (सुद० १/१९) ज्योतिषी (वि०) [ज्योतिः इव कायति] १. ग्रह, तारा, नक्षत्र,
ज्वलनः (पुं०) अग्नि, आग। दैवसम्बिद, दैवज्ञ। (समु० २/१५)
ज्वलंत (वि०) जलता हुआ। ज्योतिःशास्त्रं (नपुं०) निगमशास्त्र, (जयो० वृ० २/५८)
ज्वलन (वि०) चमकता हुआ, दहकता युक्त। निमित्तशास्त्र (वीरो० २/८)
ज्वलनमुद्रा (स्त्री०) कमलाकार बैठना। ज्योतिस् (नपुं०) [द्योतते द्युत्यते वा द्युत् इसुन्] १. प्रभा,
ज्वरात (वि०) ज्वर से पीड़ित। कान्ति, दीप्ति, आभा, प्रकाश। २. विद्युत, बिजली, ज्योति।
ज्वलित (वि०) [ज्वल्+क्त] दग्ध, जला हुआ, प्रदीप्त, भासित।
ज्वलित काष्ठं (नपुं) उत्सुक जलते हुए काष्ठ। (जयो० वृ० ७/७९) ३. नक्षत्र, ग्रह, तारा।
ज्वलितान्तर (वि०) भीतरी भाग से जला, अन्तर में दग्ध। ज्योतिष्कः (पुं०) देव, प्रकाश युक्त विमान में उत्पन्न।
'वेर्मयूखैज्वलितान्तराणाम्' (वीरो० १२/१९) द्योतयन्ति प्रकाशयन्ति जगदिति ज्योतीषि विमानानि, सेषु भवा ज्योतिष्काः।
ज्वालः (पुं०) प्रकाश, दीप्ति, प्रभा।
ज्वालनं (पुं०) प्रकाश, प्रभा, कान्ति, अग्नि। ज्योत्स्ना (स्त्री०) [ज्योतिरस्ति अस्याम्-ज्योतिस्+न] चांदनी,
ज्वाला (स्त्री०) लौ, अग्निशिखा, दीप्ति। (सुद० २/१७) चन्द्रकला, (जयो० १२/१२९) चन्द्रप्रभा, चन्द्रमा का
(वीरो० १२/७) प्रकाश (दयो० ११०) सञ्जीविनीव सा शक्तिर्विषा ज्योत्स्नेव
ज्वालामुखी (वि०) लावा स्थान। मे विधोः। (दयो० ११०)
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