Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
/जृम्भ
४१९
ज्येष्ठ
जुभ/जुम्भ (अक०) उबासी लेना, जम्भाई लेना, विस्तार | जैनधर्मानुयायिनी (वि.) जैनधर्म का अनुयायी। (वीरो०
करना, खिलना. मुकुलित होना। 'करद्वयं कुड्मलतामया- १५/३१) सीत्तयोर्जजृम्भे मुदपां सुराशिः। (सुद० २/२५)
जैनवचस् (पुं०) जिन वचन, तीर्थंकर वाणी। (जयो० २४/६१) जृम्भः (पुं०) जमुहाई, उबासी लेना। खुलना, मुकुलित होना। जैनवचनं (नपुं०) जिन वचन, जैनदर्शन, जिनवाणी, जैनसिद्धान्त ज़म्भावती (वि०) जम्भाई लेती हुई।
(हितसंपादक १) जम्भिणी (वि.) जमुहाई लेती हई। (जयो० १५/८२) । जैनवाक् (नपु०) जिनवाणी। (जयो० वृ० ३/१०) जृम्भित (वि०) परिवर्धनमान, विकसित होती हुई। जैनसिद्धान्तः (पुं०) जिनवचन, जैनदर्शन, विरागी वचन। 'जम्भजृम्भित-कोमलभावं' (जयो० १४/१८)
(जयो० १०/७७) जेत (वि०) जीतने वाला। (सुद० २/१३)
जैनसेननः (पुं०) जिनसेनाचार्य, महापुराण कर्ता। (सुद० ८२) जेतृ (वि०) [जि+तृच्] विजयी, विजेता, जयनशील। (जयो० जैनी (वि०) जैनमतानुयायी।
१७/१०) इन्द्रियाणि विजित्यैव जगज्जेतृत्वमाप्नुयात्। (वीरो० जैनी (स्त्री०) नाम विशेष। भूत्वा परिव्राट् स गतो महेन्द्रस्वर्ग ८/२७)
ततो राजगृहेऽपकेन्द्रः। जैन्या भवामि स्म च विश्वभूतेस्तुक् जेतृत्व (वि०) विजयी, विजेता।
विश्वनन्दी जगतीत्यपूते।। (वीरो० ११/११) जेता (वि०) विजेता, विजयी (जयो० २/१२७)
जैनेन्द्रव्याकरणं (नपुं०) संस्कृत व्याकरण का एक प्रसिद्ध जेतुः -विजयी (सुद०१/२)
ग्रन्था (जयो० वृ० १५/३५) जेन्ताकः (पुं०) शुष्क-उष्ण स्नान।
जैमिनि: (पु०) ऋषि। जेमनं (नपुं०) [जिम्+ ल्युट्] भोजन। (जयो० वृ० १२/११३)
जैवातुक (वि.) [जीव्+णिच+आतकन] दीर्घजीवी। जेमनपात्रं (नपुं०) भोजन की इच्छा, खाने की इच्छा। 'अयि जैवातुकः (पुं०) १. चन्द्रमा, शशि। २. कपूर, ३. पुत्र।
चेतसि जेमनोतिचार: सकलव्यञ्जनमोदनाधिकारः। जैवेयः (पुं०) [जीवस्य गुरोः अपत्यम्-जीव ढक्] एक उपाधि (जयो० १२/११५)
वृहस्पति के पुत्र कच को उपाधि। जैत्र (वि०) [जेतृ+अण] विजयी, विजेता।
जैह्यं (नपुं०) [जिह्य ष्यञ्] धोखा, टेढ़ापन, झूठा व्यवहार। जैन: (पुं०) जैन धर्मानुयायी, जिनमत का अनुयायी। जैनानां
जोङ्गटः (पुं०) दोहद। सासादन शायामिव सम्यग्दर्शनस्यापवादधारायाम्। (दयो०
जोमः (पुं०) उमंग, उत्साह। जैनकीर्तनं (नपु०) जिनदेव को अर्चना। (जयो० २/६०)
जोषः (पुं०) [जुष्+घञ्] १. तूष्णीपूर्वक सरोष, चुप्पी। २. जैनकीर्तनकला (स्त्री०) जिनार्चन की शोभा (जयो० २/६०)
प्रसन्नता, आनन्द, उत्साह, उमंग। (जयो० ८/२५) ३. इच्छानुसार। जैनतत्त्वं (नपुं०) जिन मत में प्रतिपादित सप्त तत्त्व, वैचारिक दृष्टि।
जोषा/जोषित् (स्त्री०) [जुष्यते उपभुज्यते-जुष्+घञ्-टाप् जैनदर्शनं (नपुं०) जिनमत द्वारा प्रतिपादित स्याद्वाद-अनेकान्त
जुष्इति] नारी, स्त्री। का वचन। (हित संपादक १)
जोषिका (स्त्री०) [जुष्+ण्वुल+टाप्] स्त्री, नारी। जैनधर्मः (पुं०) जिनमत, जैन विचारक, जैन दृष्टि, जैन
ज्या (स्त्री०) [ज्या+अङ्कटाप्] धनुष की डोरी। १. सीधी विचारधारा, जैन समुदाय। विबुधैः समितस्य जैनधर्मकृपया
रेखा, एक-दूसरे अंश को मिलाने वाली रेखा। २. पृथ्वी सम्भवताच्च नर्मशर्म। (जयो० १२/९९) जातीयतामनुबभूव
भूमि, ३. जननी। च जैनधर्म: विश्वस्य यो निगदितः कलितुं सुशर्म आगारवर्तिषु
ज्यांशः (पुं०) धनुषगुण। (जयो० वृ० १०/११३) यतिष्वपि हन्त खेदस्तेनाऽऽश्वभूदिह तमां गणगच्छ भेद।
ज्यानिः (स्त्री०) [ज्या+नि] बुढ़ापा। १. क्षय, २. छोड़ना,
त्यागना। ३. नदी, दरिया। (वीरो० २२/१८) जैनधर्मप्ररोहार्थ (वि०) जैनधर्म के प्रचार हेतु खारवेलोऽस्य
ज्यायस् (वि०) १. बड़ा, वयस्क, २. श्रेष्ठतर, योग्यतर,
महत्तर बृहत्तर। राज्ञी च नाम्ना सिंहयश तु जैनधर्मप्ररोहार्थं प्रक्रमं भूरि
ज्येष्ठ (वि०) [प्रशस्यो वा+इष्ठन्] (जयो० १५/७४) १. चक्रतुः।। (वीरो० १५/३२)
अतिशयेन प्रशस्यं श्रेष्ठं च प्रशंस्य श्रा, ज्या च' प्रशस्यस्थाने जैनधर्मानुयाभित्व (वि०) जैनधर्म के अनुयायी होने वाले।
ज्या इत्यादेशौ। जेठा, बड़ा, २. श्रेष्ठतम, उत्तमतर, प्रमुख, (वीरो० १५/३४)
प्रथम, मुख्य, उच्चतम। गुरु-(जयो० २२/१७) १: जेठ मास।
For Private and Personal Use Only
Page Navigation
1 ... 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438