Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 434
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानसमयः ४२३ ज्ञानसमयः (पुं०) ज्ञानसमय, संशय, विमोह और विभ्रम ११/३३४) 'ज्ञानभावनायां नित्ययुक्तता ज्ञानोपयोगः' रहित, निश्चयात्मक बोध, ज्ञानागम। ज्ञानिन् (वि०) [ज्ञान इनि] बुद्धिमान्, प्रज्ञावंत, विज्ञ, ज्ञानसरोवरः (पुं०) ज्ञान तडाग, ज्ञान-ध्यानरत। स्नानं ज्ञानसरोवरे । प्रतिभाशाली। 'न हि किञ्चिदपि निसर्गादगोचरं ज्ञानिनां भवति' यतिपतेर्वासासि सर्वा दिशः। (मुनि० २०) (वीरो० ४/३४) 'प्रकुरु ज्ञानि भ्रातः' (सुद० ११४) ज्ञानसाधनं (नपुं०) आत्मज्ञान का साधन। ज्ञानी (स्त्री०) वेत्ता, प्रतिभाशाली। (सुद० ४/११) सच्चिदानन्दज्ञानस्वरूप (पुं०) ज्ञानवान् युक्त आत्मा, सचेतनात्मा का मात्मानं ज्ञानी ज्ञात्वाऽङ्गतः पृथक्। लक्षण। सचेतनाचेतनभेद भिन्नं ज्ञानस्वरूपं च रसादिचिह्नम्। ज्ञानीचित्तः (पुं०) विज्ञहृदय। (जयो० २६/७७) (वीरो० १४/२५) ज्ञानकता (वि०) ज्ञान में तन्मयता। (भक्ति० २९) ज्ञानस्वभावः (पुं०) ज्ञानात्मक परिणाम। ज्ञानकविलोचनं (नपुं०) ज्ञानमात्र से अवलोकना (वीरो० ४/३६) ज्ञानाकारः (पुं०) ज्ञान स्वरूप। ज्ञापक (वि०) [ज्ञा+णिच्+ण्वुल] संकेतक, सूचना देने वाला। ज्ञानाचारः (पु०) वस्तु के यथार्थ स्वरूप की परिणति। ज्ञापकः (पुं०) शिक्षक, अध्यापक। ज्ञानात्मन् (वि०) सर्वविद, सर्वज्ञायक। (वीरो० १३/२८) ज्ञापकं (नपुं०) व्यञ्जनात्मक नियम। ज्ञानातिचारः (पुं०) ज्ञान में दोष। ज्ञापनं (नपुं०) [ज्ञा+णिच् ल्युट्] सूचना, संदेश, प्रसारण, घोषणा। ज्ञानादरः (पुं०) ज्ञानी, वेत्ता। (जयो० २७/४५) ज्ञापय् (सक०) संकेत करना, सूचित करना। ज्ञापयामास ज्ञानाधारः (पुं०) ज्ञानाश्रय, आत्माधीन। (जयो० १०५) ज्ञानाधीनः (पुं०) ज्ञानाश्रय। ज्ञापित (वि०) [ज्ञा+णिच्+क्त] सूचित, घोषित, उद्घोषित ज्ञानानुत्पादः (पुं०) मूर्ख, मूढ। किया गया। ज्ञानामूर्तिः (वि०) शुद्धात्म का अनुभव। ज्ञाप्य (वि०) जानने योग्य, ज्ञानयोग्य। (जयो०२/६५) 'ज्ञाप्यज्ञानान्तर्गत (वि०) ज्ञान के अन्दर। यज्ज्ञानान्तर्गत भूत्वा त्रैलोक्यं माप्यमथ हाप्यमप्यदः' गोष्यदायते। (दयो० २/३) ज्ञायक (वि०) जानने वाला, त्रैकालविषयक ज्ञाता। 'ज्ञायको ज्ञानाराधना (स्त्री०) जीवादि तत्त्वों का अधिगम, श्रुतज्ञान का ज्ञो वा' (जैन०ल० ४७७) (सम्य० १५२) निरतिचार पालन। ज्ञायकशरीरं (नपुं०) तीन काल विषयक ज्ञाता का शरीर, सशरीर ज्ञानार्णवः (पुं०) ज्ञानार्णव नामक ग्रन्थ, जिसके प्रणेता शुभचंद्र सिद्ध शिलागतशरीर, निषीधिकागत शरीर-'ज्ञातुर्यच्छरीरं हैं। (जयो० २८/४८) त्रिकालगोचरं तत् ज्ञायकशरीरम्' (स०सि० १/५) ज्ञानार्णवोदयः (पुं०) ज्ञानार्णव नामक ग्रन्थ का उदया ज्ञानार्णवस्य | ज्ञायक शरीर-अर्हन् (पुं०) अर्हत्-प्राभूत के ज्ञाता के त्रिकाल ज्ञानसमुद्रस्स उदयाय शुभचन्द्रता शोभनचन्द्रमस्त्वन् आसीत्। सम्बंधी शरीर। ज्ञानार्णवोदयासीदमुष्य शुभचन्द्र ता। योगतत्त्व- ज्ञायकशरीद्रव्यकृतिः (स्त्री०) त्यक्त शरीर वाले कृति प्राभूत समग्रत्वभागजायत सर्वतः।। (जयो० २८/४८) के ज्ञाता का शरीर। ज्ञानामृतं (नपुं०) ज्ञानात्म रूप अमृत। ज्ञानामृतं भोजनमेकस्तु | ज्ञेय (वि०) जानने योग्य, ज्ञान योग्य, ज्ञाप्य। (जयो० २८/३९) सदैव कर्मक्षपणे मनस्तु। (सुद० १२७) सामान्य-विशेषात्मक वस्तु। (सम्य० १५२) 'यदस्ति ज्ञानावरणं (नपुं०) ज्ञान के आवारक कर्म। ज्ञानाच्छादन, वस्तूदितनामधेयं ज्ञेयम्' (वीरो० २०/१९) जो कोई भी (तत्त्वार्था मूल० ८/४, वृ० १२३) वस्तु है, वह ज्ञेय है। * आवियतेऽनेनावृणोतीति वावरणं, ज्ञानस्यावरणं ज्ञानावरणम्। | ज्ञेयाकारः (पुं०) प्रतिबिम्ब के आकार से परिणत, ज्ञानावरणीयं (नपुं०) ज्ञान के आवरक कर्म, ज्ञानाच्छादन। । ज्ञानयोग्य-आकृति। 'ज्ञानमावृणोतीति ज्ञानावरणीयम्' (धव० १३/२०६) ज्ञेयात्मन् (पुं०) ज्ञेय स्वरूप। ज्ञानावरणीय-वेदना (स्त्री०) ज्ञानाच्छादन की रूप कर्म द्रव्य। ज्ञानोपयोगः (पुं०) सम्यग्ज्ञान की प्रवृत्ति रूप उपयोग। साकार झ पदार्थ विषयक उपयोग। 'सागारो णाणोवजोगो' (धव० झः (पुं०) चवर्ग का चौथावर्ण, इसका उच्चारण स्थान तालु है। For Private and Personal Use Only

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