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डमरक (वि०)
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णगण
डमरक (वि०) प्रताड़न करने वाला, झगड़ने वाला। डी (सक०) उड़ाना, भगाना। डमरु (नपुं०) एक वाद्य विशेष, डुगडुगी एक हाथ में पकड़ डीन (भू०क०कृ०) उड़ा हुआ।
कर हिलाने पर डुग-डुग शब्द निकलता है। यह बीच में डीनं (नपुं०) पक्षी उड़ान। पतला और दोनों ओर एक सा गोल, चर्म से आच्छादित, डुण्डुभः (पुं०) विषहीन सर्प दोनों ओर रस्सियों के बंध से युक्त, उन्हीं रस्सियों से | डुलिः (स्त्री०) कछवी, छोटा कूर्म। अग्रभाग में गांठ होती है, जो हाथ की मुट्ठी से बीच में | डोमः (पुं०) एक आदिवासी जाति।
पकड़कर जब हिलाया जाता है, सब डुगडुग शब्द निकलता है। डमरुकमुद्रा (स्त्री०) आसन की एक स्थिति। डम्ब (सक०) फेंकना, भेजना, आदेश देना, देखना।
ढ डम्ब (वि०) अनुकरण करना, तुलना करना।
ढः (पुं०) टवर्ग का चतुर्थ वर्ण, इसका उच्चारण स्थान मृर्द्धा है। डम्बर (वि०) [डम्ब्+अरन्] १. प्रसिद्ध, विख्यात। २. समवाय, ढक्का (स्त्री०) [ठक इति शब्देन कायति] ढोल, नक्कार,
संग्रह, संचय, समूह, ढेर। ३. सादृश, समानता, ४. नगाढा-भेरी, (जयो० २२/६१) अहंकार, गर्व।
ढक्काढक्कारः (पुं०) ढक्का की आवाज, भेरी का प्रचण्ड डम्भ (सक०) इकट्ठा करना, एकत्रित करना, संग्रह करना। गर्जन। (जयो० ३/१११) डयनं (नपुं०) १. उड़ान, २. पालकी, ढोली।
ढक्कानिनादः (पुं०) युद्धवादित्र का घोष। (जयो०८/६२) डवित्थः (पु०) काठ का बारहसिंहा।
ढड्ढरं (नपुं०) उच्च स्वर से उच्चारण। डाकिनी (स्त्री०) पिशाचिनी, भूतनी।
ढामरा (स्त्री०) हंसनी। डाकृतिः (स्त्री०) [डाम् कृ+क्तिन्] घण्टी बजनें की ध्वनि। ढालं (नपुं०) १. म्यान, कवच, आवरण। २. एक अध्याय। डामर (वि०) [डमर+अण] १. डरावना, भयावह, भयानक। ढालिन् (पुं०) ढालधारी योद्धा। २. दंगा करने वाला।
ढुण्ढिः (पुं०) गणपति। डायस्थितिः (स्त्री०) बन्ध स्थिति का एक रूप, जहां स्थिति ढोल: (पुं०) ढोल, मृदङ्ग, बड़ी ढपली।
स्थान में स्थित होकर उसी प्रकृति की उत्कृष्ट स्थिति को बांधना। ढोंक् (सक०) जाना, पहुंचना। डालिमः (०) दाडिम, अनार।
ढोंकन (नपुं०) भेंट, उपहार। डाहलः (पुं०) एक देश विशेष। डिङ्गरः (पुं०) १. सेवक, २. ठग, धूर्त। डिण्डिमः (पुं०) [डिडीति शब्दं नाति डिण्ड+मा+क] एक
ण: (पुं०) टवर्ग का पञ्चम वर्ण, इसका उच्चारण स्थान मूर्धा छोटा ढोल। ढिंढोरी-'जिनवन्दनवेदिडिण्डिमः' (वीरो० ७/६)
है। प्राकृत भाषा में इसका प्रयोग मिलता है। जो 'न' को डिण्डिममानक प्रस्थान भेरी (जयो० १३/४)
'ण' के रूप में परिवर्तित होता है। डिण्डीरः (पुं०) १. कवच, २. झाग।
आचार्य ज्ञानसागर के जयो० दय महाकाव्य के १९वें सर्ग डिमः (पुं०) दश प्रकार के रूपकों के भेद में एक भेद।
में मन्त्रविधि के साथ 'ण' का प्रयोग है। 'णमोत्थु' डिम्बः (पुं०) [डिब्+घञ्] १. छोटा बच्चा, २. दंगा, ३.
(जयो० १९/७६) णमो परमोहि जिणाणं (जयो० २१/६०) पिण्ड, ४. अण्डा।
णः (पुं०) णकार, ज्ञान-वेदिरङ्गुलिमुद्राया बुधेः संस्कृतभूतले डिम्बयुद्धं (नपुं०) छोटी लड़ाई।
णकारो निर्णये ज्ञाने इति च विश्वलोचनः। (जयो० २६/४४) डिम्बिका (स्त्री०) [डिम्ब् ण्वुल टाप्] १. कामुक। स्त्री २. बुलबला।
णकारः (पुं०) 'ण' वर्ण। णकारी निर्णय ज्ञाने इति विश्व डिम्भः (पुं०) [डिम्भ्+अच्] छोटा बालक। १. शेरनी का
(जयो० २६/४४) शावक।
णगण (पुं०) एक गण मात्रिक गण। डिम्भकः (पुं०) १. छोटा बालक। २. जानवर का शावक।
ण
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