Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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छविभाक्
३९८
छिछी
छविभाक् (वि०) छवि धारक, छविं शोभा विभर्ति। (जयो० छान्दस् (वि०) [छन्दस्+अ चा] १. वेदज्ञ, वेदाध्ययनशील, ११/१३)
२. छन्दोबद्ध रचना, छन्दशास्त्र। छन्द एव छान्दसं छन्दशास्त्र छविरविकलरूप (वि०) निर्विकारता, निर्दोष मुद्रा। (सुद० (जयो० वृ० २/५३) ७५)
छायविधिः (स्त्री०) छाया विधि। प्रतिभाति गिरीश्वरः स च छविलाञ्छित (वि०) प्रभा से चिह्नित, कान्ति से परिपूर्ण। सफलच्छायविधिं सदाचरन्। (वीरो०७/१९) (जयो० १८/१०३)
छाया (स्त्री०) १. कान्ति, प्रभा, प्रणाली, प्रतिमूर्ति, प्रवृत्ति। छह -संख्या विशेष, षट्। (भक्ति० ९)
सौन्दर्य लावण्य। (जयो० ३/११३, २२/४८) छाया छाग (वि०) बकरा, अज। (वीरो० १/३१)
कान्तिर्धर्माभावा- २. छप्पर, छत, (जयो० २२/८२) ३. छागं (पुं०) बकरी का दूध।
परछाई, छदि, छांह, छांव। स्वल्पपपल्लवच्छाया (सुद० छागभोजनं (नपु०) भेड़िया।
११२) ४. पुद्गल का एक गुण (तस०५/२४) 'छाया छागणः (पुं०) कंडा, करीष, उपले।
प्रकाशावरणनिमित्ता' छाया प्रकाश का आवरण है। छाया छागमुखः (पुं०) कार्तिकेय।
तमोरूपा सा छन्ना प्रलुप्ता भवति (जयो० वृ० ११४९) छागल (वि०) बकरी से प्राप्त होने वाला।
५. मनुष्य का प्रतिबिम्ब। ६. वर्णादिविकार। छयति छिनत्ति छागलः (पुं०) बकरा। (जयो० २६/१०३)
वाऽऽतपमितिछाया। ७. प्रतिच्छन्दमात्रा। छिद्यते, छाणश: (पुं०) छोंक, बधार।
छिनत्त्यात्मनमिति वा छाया। छात (वि०) विभक्त, काटा गया।
छायागतिः (स्त्री०) छाया का गमन। छात्र: (पुं०) [छत्रं गुरोर्वेगुण्यावरणं शीलमस्य-छत्र+ण] विद्यार्थी, | छायाग्रहः (पुं०) दर्पण, शीशा। शिष्य, अध्ययनशील व्यक्ति।
छायाछादित (वि०) छाया से प्रवारित, (जयो० १४८९) छात्रकर्मन् (नपुं०) छात्र क्रिया, छात्रकर्त्तव्य।
छायातनयः (पुं०) सूर्यपुत्र शनि। छात्रखण्डं (नपुं०) छात्र समूह।
छायातरुः (पुं०) सघन छाया वाला वृक्ष। छात्रगण्डः (पुं०) श्लोक का प्रारंभिक पद, काव्य का एक छाया द्वितीय (पुं०) छायाधारी, एक मात्र छाया वाला। अंश
छायानपातगतिः (स्त्री०) छाया के पीछे नहीं चलना, पुरुष छात्रदर्शन (नपुं०) निकला गया नवनीत, एक दिन का निकाला अपनी छाया के पीछे नहीं चलता। गया नैनू, मक्खन।
छायापथः (पुं०) पर्यावरण। छात्रा (स्त्री०) शिष्याः
छायाभृत् (पुं०) चन्द्र, शशि। छादं (नपुं०) [छद्+णिच+घञ्] छप्पर, छत।
छायामानः (पुं०) चन्द्र। छादनं (नपुं०) १. आवरण, आच्छदन, ढकना, प्रवारण आदि। छायामित्रं (नपुं०) छाता, आतपत्र, छतरी।
(जयो० वृ० २३/२८) अनुभूतवृत्तिता छादनम् छायामृगधर (पुं०) चन्द्र, इन्दु, शशि। प्रतिबन्धहेतुसन्निधान्। संवरण, स्थगन। २. परिधान, वस्त्र, छायायन्त्रं (नपुं०) धूपधड़ी, काल बोधक यन्त्र। आंचल, ३. पत्र।
छायावन्त (वि०) छाया युक्त, छायावान् छाया से सहित। छादनकर्मन् (नपुं०) आच्छादन क्रिया, संवरण क्रिया।
(वीरो० २२/२९) छायावन्तो महात्मानं पादपा इव भूतले। छादन वस्त्रं (नपुं०) अञ्चल, आंचल, चुन्नी। (जयो० १७/४३) (वीरो० २२/२९) छादयितुं (हे०कृ०) गोप्तम् (जयो० १३/४३) ढकने के लिए, छायाविहीन (वि०) अच्छाय, परछाई रहित। आच्छादन के लिए।
छाली (स्त्री०) बकरी, अजा (जयो० ११/३२) (जयो० वृ० छादित (वि.) प्रसारित, आच्छन्न, आवृत, ढका हुआ, प्रवारित। १११/३)
(जयो० २७/२८) छाया-छादित-सरणो गुणेन विविनश्रियः छिः (स्त्री) [छो+कि] गाली, अपशब्द। श्रीमान् (जयो० १/८९)
छिक्का (स्त्री०) छींग, झींकना। छाद्यिकः (पुं०) [छान्+ठक्] धूर्त. ठक, कपटी।
छिछी (स्त्री०) घृणित शब्द।
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