Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

Previous | Next

Page 412
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra जघनमूल www.kobatirth.org जघनमूल (नपुं०) श्रोणिपूरी भाग, ऊरुस्थल। (जयो० १७/११३) जघनस्थली (वि०) नितम्बप्रदेश वाली (जयो० ० २४/२) जघनाघात (पुं०) श्रोणिपुर घात, नितम्बाघात । 'जघनैः श्रोणिपुरो भागैर्योसावाघातः' (जयो० वृ० २४ / ८४) " जघन्य (वि० ) [ जघने भव+यत्] सबसे पीछे अन्तिम । १. अधम, नीच, गिरा हुआ। २. व्रताहित अत्यन्त दुष्ट, पतित, क्षुद्रपरिणामी । 'सन्तोषयन् खट्टिको जघन्यः । (वीरो० १६/१६) ३. सर्वसाधारण लोग (दयो० वृ० ११८) जघन्य - अन्तरात्मा (पुं०) जिवभक्तगुण ग्रहण में अनुरक्त, आत्मनिन्दा से युक्त, अविरत सम्यग्दृष्टि । जघन्य - अन्तमुहूतः (पुं०) एक प्रमाण विशेष, एक समय अधिक आवली। जघन्य अपहृत (वि०) बाह्य साधनों से युक्त । जघन्यपदं (नपुं०) पतित पद जघन्यपात्र : ( नपुं०) शीलवान्, मिथ्यादृष्टि पुरुष, अविरत सम्यग्दृष्टि जीव, व्रतरहित व्यक्ति। 'व्रतेन रहित सुदृशं जघन्यम्' (सागार धर्मामृत ८/४४) 'जघन्यं शीलवान् मिथ्यादृष्टिश्च पुरुषो भवेत्। ( महापुराण २० / १४० ) 'अविरइसम्माइली जहणणपतं उ अक्खियं समये ।' जघन्यभाव: (पुं०) क्षुद्रभाव, दुष्ट परिणाम, बुरे विचार । जघन्यस्थिति (स्त्री०) एक समय प्रमाण वाली स्थिति । जघ्निः (वि०) आक्रमणकारी। जघ्नु (वि०) आक्रमण करने वाला, प्रहार करने वाला । जङ्गम् (नपुं०) जंग, अयस्क / लोह पर लगने जंग। जङ्गम (वि० ) [ गम् + यङ् + अच्] १. जीवित, चर, जीवधारी । चलायमान, हिलने-डुलने वाला। २. अपने बच्चे । निजमङ्गजमङ्ग जङ्गमं सहसोत्थापय धृष्ट। (जयो० १३/१५) जङ्गमप्रतिमा (स्वी०) अरिहंत प्रतिमा मोक्षगमनकाले 'एकस्मिन् समये जिनप्रतिमा जङ्गमा कथ्यते' (दर्शन० ३५ ) जङ्गलं (नपुं०) [गल्+यङ्+अच्] मरुधरा, मरुभूमि, मरुस्थल, जल से रहित प्रदेश, मारवाड परियात्रादि प्रदेश । जङ्गाल (नपुं०) मेढ़, बांध, सीमा, चिह्न जडुलं (नपुं०) ( गम् + यदुल] विष, जहर + जङ्घः (पुं०) जंघा, पिण्डली, टखने से लेकर घुटने तक का भाग । अबालभावतो जसे सुवृत्ते विलसनोः । (जयो० ३ / ४६ ) जङ्घा (स्त्री०) [ अन्य कुटिजं गच्छति अच्] जाप, पिण्डली | जङ्घाकारिक (वि०) धावक, हरकार, संदेशवाहक । ४०२ जठर- वह्निधर: जहाचारणा (स्त्री०) एक ऋद्धि विशेष, जिसके प्रभाव से पृथिवी के चार अंगुल ऊपर आकाश में घुटने मोड़े बिना बहुत योजन तक गमन करने में समर्थ कराने वाली ऋद्धि। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जात्राणं (नपुं०) जंघा रक्षक कवच, आज क्रिकेट खेल में जो पेड पहना जाता है। जङ्घासदृशी (वि०) जंघाओं के समान (जयो० वृ० ११/२० ) जहिल (वि०) [जङ्घा इलच्] प्रवाचक, फुर्तीला तीव्रगति वाला। जज् (अक० ) लड़ना, युद्ध करना। जद (अक०) जुट जाना, तत्पर होना । जटा ( स्त्री०) [जट्+अच्+टाप्] १. शाखा, जड़, २. शतावरी पादप ३. लम्बे बालों का झुण्ठ, आपस में चिपके हुए केश समूह | जटावीर : (पुं०) शिव । जटाधरः (पुं०) शिव । जटाजूट (वि०) जटाओं युक्त। जटाज्वाल (पुं०) दीपक, लैप। जटायुः (पुं०) [जटं संहनमायुः यस्य ] १. श्येनी और अरुण का पुत्र । २. एक पक्षी । जटाल (वि० ) [ जटा+लच्] जलाधारी, घुंघराले केशवाला। (सुद० ३/१४) जटि: (स्त्री०) गूलर पादप, संघात जटिन् (वि०) जटाधारी। जटिल ( वि० ) [ जटा+इलच्] १. जटाधारी । २. अव्यस्थित, कठिन व्याप्त ३. अभेद्य, सपना जटिल : (पुं०) सिंह | जठर (वि०) [जायते जन्तुर्गर्भो वास्मिन् जर अर ठान्तदेशः ] १. कठोर, सख्त, दृढ़ । जठरः (पुं०) उदर, पेडू, गर्भाशय, उदर मध्यभाग (जयो० १३/६०) जठर ज्वाला (स्त्री०) उर भूख, उदराग्नि जठर यंत्रणा ( स्त्री०) शूल, गर्भावास का कष्ट जठर यातना (स्त्री०) गर्भ पीड़ा। गठरव्यथा ( स्त्री०) उदरशूल । जठर वह्निः (स्त्री०) जठराग्नि जठर- वह्निधर: (पुं०) उदर । जठरवह्नि धरतीति जठरवह्निधरमुदरम् । (जयो० वृ० ९/३७) For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438