Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

Previous | Next

Page 423
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जह्य ४१२ जातिकुमुसनगं जह्य (वि०) छोड़ने योग्य। (सुद० ४/४२) स्थिति। जातानां जन्मवतां बालकानां गीतिं जातनां पदार्थानां जह्नकन्या (स्त्री०) गंगा। (जयो० ६/३३) गीति स्पष्टीकरण। (जयो० वृ० १८/५१) जा (सक०) जाना, पहुंचना, ग्रहण करना, उत्पन्न होना। जातकाम (वि०) आसक्त। (जयो० २/११) जातु (सुद०९४) प्राप्त होना, (जाति-सुद० जातपक्ष (वि०) पंख निकलने वाला। १०४) जायते- (जयो० २/१४) जातपाश (वि०) बंधन वाला, बेड़ी युक्त। * समझना, ज्ञात होना। (जयो० १/१) बुधो विपदे जातु। जातप्रत्ययः (वि०) विश्वास करने योग्य। (सुद०८९) जातमन्मथ (वि०) कामरसक्ति को प्राप्त, प्रेमभाव को प्राप्त जाकियव्वा (स्त्री०) सत्तरस नागार्जुन की पत्नी। (वीरो० हुआ। १५/३८) जातमात्र (वि०) सद्योजात, तत्काल उत्पन्न। जागरः (पुं०) [जागृ+घञ्] १. जागना, सचेत रहना। २. जातरूप (वि०) सुन्दर, उज्ज्वल जन्म का रूप, दिगम्बर रूप, कवच, बख्तर। निर्ग्रन्थ रूप, नग्न रूप। (जयो० २८/४) जागरणं (नपुं०) [जागृ+ ल्युट्] जागना, सचेत रहना, सतर्कता। जातरूपधर (वि०) दिगम्बर रूप धारी। जागरा (स्त्री०) [जागृ+अ+टाप्] जागरण, सचेतनता। जातवेदः (पुं०) वह्नि, अग्निा जागरित (वि०) [जाण+क्त] सचेत हुआ, जागा हुआ। जाता (भू०क०कृ०) उत्पन्न हुई। 'रतिरिव रूपवती या जाता' जागरितृ (वि०) जागरणशील, प्रबुद्धशील, निन्द्रा विमुक्त। (सुद० १/४१) सतर्क, सचेत। जातिः (स्त्री०) [जन्+क्तिन्] जन्म, उत्पत्ति। (जयो० १२/६१ जागर्तिः (स्त्री०) जागरण, सचेतता। प्राप्ति (सम्य ५२) १. गोत्र, परिवार, कुल, वंश, वर्ग, जागुडं (नपुं०) [जगुड+अण] केसर, जाफरान। समुदाय। २. वर्ग विभाजन-मनुष्यजातिरेकैव नामकर्मोदजाग (अक०) जागना, सचेत रहना। योद्भवा। वृत्तिभेदा: हि तभेदाच्चातुर्विध्यमिहा श्नुते। (हित० जाघनी (स्त्री०) [जघन+अण। डीप्] १. पूंछ, २. जांघ। संपादक वृ० २०) ३. जायफल, ४. अंगीठी, ५. श्रेणी, जागतिः (स्त्री०) उत्थान, विकास। (जयो० ५/७०) वर्ग, प्रकार, भेद। ६. छन्द की एक विशेषता। ७. चमेली जाङ्गल (वि०) जंगली, अनाड़ी, असम्भ, वर्बर। पुष्प, मल्लि । (जयो० वृ० ३/७५) ८. जिनवचन--जाति जाङ्गलः (पुं०) तीतर पक्षी, बटेर। श्री जिनवाचमेव निगदेद्यस्याः प्रमादाद्यति रात्मानं प्रति वेत्ति जाङ्गलं (नपुं०) विष, जहर। सत्कुलमथोद्योगं गुरोः सम्प्रति।। उस श्री जिनवाणी को ही जालिः (पुं०) विषवैद्य। जाति कहते हैं, जिसके प्रसाद से यति आत्मा को जानते जाङ्घिकः (पुं०) [जङ्घा ठञ्] १. दूत, २. ऊँट। हैं और गुरु का उद्योग समीचीन कुल है। मिथ्या उत्तर देने जाजिन् (पुं०) [जज्+णिनि] योद्धा, सैनिक। का नामजाठर (वि०) उदरवर्ती, पेट सम्बन्धी। * मिथ्योत्तर यातिः यथाऽनेकान्त विद्विषाम्। जाठरः (पु०) पाचनशक्ति। * जाति: मातृसमुत्था-माता के वंश से जाति का प्रादुर्भाव। जाड्यं (नपुं०) [जड+ष्यञ्] १. जडता, निष्क्रियता, मूर्खता, 'मातृपक्षो जातिः' माता का पक्ष (वीरो० १७/२६) आलसीपना। (वीरो० ९/१८) २. शीतलता, जाड़ा- (वीरो० * जीवादि का सादृश्य परिणाम 'जातिजीवानां सदृश९/१८) परिणाम:' (धव० ६/५१) जात (भू०क०कृ०) १. जन्म लिया गया, पैदा किया हुआ, उगा * भेदकल्पना आचारमात्रभेदेन जातीनां भेदकल्पनम्। हुआ, निकला हुआ। २. उद्भूत, उत्पन्न 'ततश्च रजकी * साधर्म्य और वैधर्म्य से प्रत्यवस्थान होना। जाता' (सुद० ४/२८) ३. नियुक्त (जयो० १२/११५) जातिकथा (स्त्री०) निन्दा या प्रशंसा को उत्पन्न करने वाली जात: (पुं०) पुत्र। कथा। उत्पत्ति सम्बंधी कथा। जातं (नपुं०) प्राणी, जन्तु, जीवधारी। जातिकुसुमं (नपुं०) चमेली का पुष्प। जातगीतिः (स्त्री०) कुण्डलीक करणनीति उत्पन्न करने की | जातिकुमुसम्रगं (नपुं०) मल्लिमाला। (जयो० वृ० २०/९५) For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438