Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 427
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनेन्द्रमूर्ति प्रतिष्ठा ४१६ जिह्वालिहू जिनेन्द्रमूर्ति प्रतिष्ठा (स्त्री०) जिनमूर्ति को प्रतिष्ठा। (जयो० | जिनेशः (पुं०) जिनेश्वर (भक्ति० २४, सुद० ७४) २/३१) जिनेशदेवः (पुं०) जिनप्रभु (वीरो० १४/२४) जिनार्चनः (पु०) जिनपूजा। (सुद० २/४०) (सुद० ३/३७) जिनेशवाच (पुं०) जिनवचन। (भक्ति० ४९) जिनस्य अर्चन जिनपूजनम् (जयो० वृ० ३/८३) जिनेश्वरः (पुं०) जिनेन्द्र, अर्हत्, भगवान, वीतरागी प्रभु, जिनार्चनाथ (पुं०) जिनेन्द्र देव। (सुद०) तीर्थंकर। जिनार्थ (वि०) जिनेन्द्र देव के निमित्त। (सुद०५/१) जिनेशिन् (पुं०) जिनेन्द्र प्रभु युक्त। (जयो० १२/७२) जिनानुशयः (पुं०) जिनचिन्तन। (जयो० २/३६) जिनोक्त (वि०) जिनदेव द्वारा कथित। (सम्य ७२) जिनाश्रमः (पुं०) जिनालय, जिनमन्दिर। जिनस्याश्रमं मंदिर जिन्ना (पुं०) यवननेता, १९४७ से पूर्व का नेता। (जयो० इति (जयो० ९/५२) १८/८९) जिनास्थानं (नपुं०) जिनालय। (वीरो० १५/३९) जिवाजिवः (पुं०) चकोर पक्षी। जिनास्पदं (नपुं०) जिनालय। (वीरो० १५/४७) जिष्णु (वि०) [जि+गृस्लु] विजयी, जीतने वाला, विजेता। जिनराज (पुं०) जिनेन्द्र देव। (सम्य० १०९) 'पापाचारं जेतुमर्ह इरां' (जयो० वृ० २७/४०) 'इन्द्रस्येव जिनराजमुद्रा (स्त्री०) शिवप्रतिमा, (जयो० १९/१४. भक्ति० २०) । जयनशीलः' (जयो०८/३५) । जिनरूपता (वि०) निर्ग्रन्थ रूपता, दिगम्बरत्व। जिह्य (वि०) [जह्यति सरलमार्ग-हा+मन् सन्वत् अतोपश्च] जिनवाक्यसारः (पुं०) स्याद्वाद सिद्धान्त। भाष्ये निजीये । १. कुटिल, तिर्यग्, तिरछा, टेढ़ा, वक्र, २. अनीतिपूर्ण, जिनवाक्यसारम्पतञ्जलिश्चैतदुरीचकार। तमाममीसांक नाम छली, कुटिलता युक्त। ३. मन्थर, आलसी। कोऽपि स्ववार्तिके भट्टकुमारिलोऽपि।। (वीरो० १९/१७) जिह्यं (नपुं०) झूठा, असत्यव्यवहार। जिनवाचक (नपुं०) जिनवाणी, वीतराग वाणी। जिह्यगतिः (स्त्री०) तिर्यगदृष्टि वाला, भैंगा, ऐचकताना। जिनवचनं (नपुं०) सर्वज्ञवाणी, वीतराग वाणी। (मुनि०१५) जिह्यमेहनः (पुं०) मेंढक, जिनवाणी (स्त्री०) जिनवचन। (जयो० १३/५८) जिह्ययोधिन् (वि०) युद्ध के प्रति उदासीन योद्धा, युद्ध से जिनालयः (पुं०) जिनमन्दिर। (जयो० १९/१४) विमुख होने वाला। जिनशासनं (नपुं०) जिनेन्द्र कथन, (जयो० १/२२) जिनदेव । जिह्यशल्य (पुं०) खदिर वृक्ष, खैर का वृक्ष। का अनुशासन। (सम्य० १५५) जिह्वः (ढे+ड द्वित्वादि) जीभ। (वीरो० वृ० १/७) जिनशान्तिः (पुं०) जिनदेव शान्ति प्रभु। जिह्वल (वि०) [जिह्वाला+क) जिभला, चटोरा। जिनसंग्रह (पुं०) जिनभगवान (भक्ति० ३४) जिह्वा (स्त्री०) [लिहन्ति अनया] रस जीभ, रसना। (जयो० जिनसद्मन् (नपुं०) जिनालय। (वीरो० १५/४ वृ० १/७) (मुनि० ३०) 'जिह्वया गुणिगुणेषु सञ्चरन्' जिनसेवकः (पुं०) शिवभक्ति। (भक्ति० २४) (जयो० ३/२) जिनाङ्कः (पुं०) जिनमुद्रा (वीरो० २/३५) जिह्वाग्रभागः (पुं०) १. रसातल, रसना का अग्रभाग, जीभ जिनागमः (पुं०) जिनशास्त्र, अर्हत्, कथित आगम, सूत्रग्रन्थ। का अग्रभाग (जयो० वृ० १/९७) २. रसातल- पातललोक स्वरूपाचरणं भेदविज्ञानं जिनागमे।। शुद्धोपयोगनामानि (जयो० वृ० १/९७) कथितानि जिनागमे।। जिह्वानिर्लेखनं (नपुं०) जीभ से खुरचना। जिनाज्ञा (स्त्री०) जिनादेश। (भक्ति० २८) (सम्य० १४३) जिह्वापः (पुं०) १. कुत्ता, २. बिल्ली, ३. व्याघ्रा जिनागमोक्त (वि०) जिनागमकथित। (जयो० १८५८) जिह्वामूलं (नपुं०) जीभ का मूल, रसना की जड़। जिनेन्द्रः (पुं०) जिनेश्वर, अर्हत्, भगवान्, वीतरागी प्रभु। जिह्वामूलीय (वि०) क और ख से पूर्व विसर्गध्वनि तथा कण्ठ (सम्य० १५३) (समु० १/४) ___व्यञ्जनों की ध्वनि का द्योतक शब्द। जिनेन्द्र देवः (पुं०) जिन। (वीरो० १३/१६) जिह्वारदः (पुं०) पक्षी। जीभ से शब्द करने वाला। जिनेन्ददेवार्चा (स्त्री०) जिनपूजा। (वीरो० १५/४९) जिह्वाल (पुं०) लालची। (जयो० सुद० १२८) जिनयज्ञमहिमा (स्त्री०) जिनपूजन का महत्त्व। (सुद० ११४) जिह्वालिहू (पुं०) जीभ से चाटने वाला कुत्ता, श्वान। For Private and Personal Use Only

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