Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 410
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छुरा ४०० जक्ष छुरा (स्त्री०) [छुर्+कटाप्] चूना, अरास। छुरिका (स्त्री०) [क्षुर+क्वुन्+टाप्] ०छुरी, चाकू, कृपाण पुत्री। (जयो० १४/५१) (वीरो० १/३६) छुरित (भू०क०कृ०) [क्षुर+क्त] खचित, जडित, आच्छादित किया। छुरी (स्त्री०) [क्षुर्+ङीष्] चाकू, छुरी। छद् (सक०) जलाना, चमकना, चमन करना। छर्दति, छर्दयति। छेक (वि०) १. शहरी, नागरिक। २. बुद्धिमान् नागर। छेकानुप्रास (पुं०) जहां एक ही बार वर्णों को आवृत्ति होती है या एक ही बार घटने वाली समानता। शिरीष-कोषादपि कोमले ते पदे वदेति प्रघणं तदेते। अस्माकमश्माधिकहीर वीरपूर्ण कुतोऽलङ्करुतोऽथ धीर।। (जयो० ३/२५) छेदः (पुं०) [छिद्+घञ्] काटना, १. तोड़ना, भंग करना, नाश करना। २. छिन्न, विराम, गतिरोध, ०समाप्ति, ०लोप, ०अभाव, ०खण्ड, ०टुकड़ा, ०भाग, हिस्सा, निराकरण। ३. अशुद्ध उपयोग। ४. अतिचार, दोष। ५. अवयवों अपनयन। कर्णनासिका दीनामवयवानामयनयन छेद:। (स०सि० ७/२५) ६. अहापन प्रव्रज्याहापनं छेद:। अपवर्तन, अपहार ७. छेद-प्रायश्चित्त, आलोचना का भी नाम है। अवस्थान का नाम भी छंद है। स्वस्थ भाव का च्युत होना भी छंद है। 'स्वस्थभावच्युत लक्षण: छेदो भवति।' (प्रव०सा०च० ३/१०) छेदगतिः (स्त्री०) छेद को प्राप्त होना ०छेदस्थान, निराकरण की अवस्था। छिन्नानां गति: छेदगतिः। (त०वा० ५/२४) छेदक (वि०) तक्षण, नाशक। नष्ट करने वाली। जन्म-जरा मृत्यु-रूप-सन्ताप-त्रितयोच्छेदकस्य जिनेन्द्र एव चन्द्र। (जयो० वृ० २४/७०) परस्य शत्रोस्तक्षकः छेदकश्च जायते। (जयो० वृ० ६/१०४) छेदनं (नपुं०) [छिद्-ल्युट्] १. खण्ड करना, विदीर्ण करना, नाश, घात, विनाश, विभक्त करना, विभाग करना, टुकड़े करना। २. अनुभाग, खण्ड, भाग, हिस्सा, अंश। छेदनं कर्मणः स्थितिघातः। छेदनक्रिया (स्त्री०) नाशक क्रिया, विनाशक बाधा। छेदवर्तिः (स्त्री०) संहनन विशेष, सेवार्त्त संहनन। छठा संहनन, जिसमें हड्डियां परस्पर छेद से युक्त हो, कीलों से भी सम्बद्ध न हो। वह प्रायः मनुष्यों के होता है और सदा तेलमर्दन आदि की अपेक्षा करता है। छेदस्पृष्टः (पुं०) छेदवर्ति संहनन, सेवार्त्त संहनन। छेदाहः (पुं०) प्राश्यचित्त विशेष, श्रामण्य अवस्था में कुछ अंश का छेद करना। छेदिः (पुं०) बढ़ई, सुधार, विश्वकर्मा। छमण्डः (पुं०) अनाथा छेलकः (पुं०) बकरा, धाग, अज। छैदिकः (पुं०) बेंत, दण्डा। छेदोपस्थापकः (पुं०) अट्ठाईस मूलगुणों में प्रमादयुक्त साधु। मूलगुणेसु पमत्तो समणो छेदोवट्ठावगो होदि। (प्रव० ३/९) छेदोपस्थापनं (नपुं०) व्रत विनाश पर पुन: विशुद्धि करना, चारित्र में दोष लगने पर पुन: महाव्रतों में स्थापित किया जाना। छेदोपस्थापना (स्त्री०) छेदोपस्थापन शुद्धि संयम। दोषों का उचित प्रतिकार। छो (सक०) काटना, खण्ड करना, विदीर्ण करना। छोटिका (स्त्री०) [छुट्+ण्वुल्+टाप्] चुटकी। छोटित (वि०) गिराने वाला, छोड़ने वाला। छोटित दोषः (पुं०) भोज्य सामग्री को गिराते हुए आहार करना। छोरणं (नपुं०) [छुट्+ ल्युट्] त्याग करना, छोड़ना। जः (पुं०) चवर्ग का तृतीय व्यञ्जन, इसका उच्चारण स्थान तालु है। जकार (जयो० वृ० १/५४) जः (पुं०) १. जन्म, उत्पत्ति, २. जनक, ३. विष्णु, ४. कान्ति, प्रभाव, आभा। ज (वि०) वंशज, कुलज, जन्मज, उद्भूत, उत्पन्न हुआ। समास के अन्त में या शब्द के अन्त में 'ज' लगने पर वह शब्द उत्पत्ति का बोध कराने लगता है। जैसे-वंश+ज-वंशज, वेश में उत्पन्न। वारिज-वारि में उत्पन्न होने वाला कमल। अण्डज-अण्डे से उत्पन्न। जकारः (पुं०) 'ज' वर्ण, जिसका उच्चारण स्थान तालु है। (जयो० १७/१८७) जकुटः (पुं०) १. मलयपर्वत, २. श्वान, कुत्ता। जक्षु (सक०) उपभोग करना, खाना। For Private and Personal Use Only

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