Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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जनघोषः
४०४
जनाश्रयः
जनघोष: (पुं०) जनता का स्वर, जन जन की पुकार। जनमतः (वि०) लोक अभिप्राय, लोगों की विचारधारा, जनादेश। जनचक्षुस् (नपु०) सूर्य, दिनकर।
जनमञ्चः (पुं०) जन समुदाय, लोक समूह। (जयो० ) जनगामः (पुं०) चाण्डाल।
जनमर्यादा (स्त्री०) सर्वमान्य रीति, लोक पद्धति, लोकधारा। जनता (स्त्री०) (जनानां समूह:] प्रजावर्ग, सर्वसाधारण जन। जनमान्य (वि०) सकल सम्मत, सर्व सम्मत, सभी लोगों द्वारा
(जयो० १२/५७) 'जनतायाः प्रजावर्गस्य मोदसिन्धुः' (जयो० मानी गई। (दयो० १/१४) ५/३४) भूरञ्जन (जयो० १)
जनमोदः (पुं०) लोक आमोद, जनता का परम हर्ष। जनतानन्दजनकः (पु०) जनता के आनन्द का आधार, प्रजा जनमेजयः (पुं०) एक नृप, राजा, हस्तिनापुर का अधिपति।
के आनन्द का हितैषी-'जनतायाः लोकसमूहस्य आनन्द जनयितृ (वि०) जन्म देने वाला, सृष्टिकर्ता।
जगतीत्यानन्दजनकः सम्मदकरः' (जयो० वृ० २/१४३) जनयित्री (स्त्री०) [जनयितृ+ङीष्] माता, जननी। जनतावशगा (वि०) प्रजा का हितैषी, प्रजा का मन-पसन्द। जनरञ्जनं (नपुं०) लोक हर्ष, जन आमोद। जनकसुतादिक
'जनताया वशगा भवनि यथा जनतायाः प्रसत्तिः स्यात्। वृत्तवचस्तु जनरञ्जनकृत्केवलमस्तु। (सुद० ८८) (जयो० वृ० ४/११)
जनवादः (पुं०) जनश्रुति, लोककथन, लोकापवाद। जनत्रा (स्त्री०) आतपत्र, छतरी, छाता।
जनव्यवहारः (पुं०) लोक प्रचलन, लोक व्यापार। जनदेवः (पुं०) नृप, राजा।
जनशीषः (पुं०) जन शिरोमणि। (जयो० ९/७५) जनधनं (नपुं०) प्रजाधन।
जनश्रुत (वि०) विख्यात। जननं (नपुं०) [जन ल्युट्] जन्म, उत्पत्ति, प्रसूति, प्रसव, जनश्रुतिः (स्त्री०) किंवदन्ती। सृजन, उत्पादन।
जनसङ्घट्टनं (नपुं०) जनसमूह, जनसमुदाया 'जनानां संघट्टनं जनन (वि०) उत्पन्न करने वाला, जन्मदाता। १. जीवन, समर्दोऽस्ति' (जयो० १३/१५) अस्तित्व, उदय।
जनसन्निवेशः (पुं०) जन समूह। (वीरो० १८/११) जन-नायकः (पुं०) नृप, राजा। विभूतिमत्त्व दधताऽप्यनेन जनसमुदायः (पुं०) १. कारक, छावनी, सैनिक पड़ाव महेश्वरत्वं जननायकेन। (जयो० ३/१३)
स्थान-'कटकं जनसमुदायं दधामि (जयो० वृ० १२/१२४) जननि: (स्त्री०) [जन्+अनि] माता, मां, अम्मा, अक्का, आई। २. स्वजनचक्र, सुजनचक्र (जयो० वृ० ६/४८) जननी (स्त्री०) १. माता (समु० ३/११) 'जनयति जनसमूहः (पुं०) १. लोक सम्प्रदाय। (दयो० १०) राज्ये
प्रादुर्भावयत्यपत्यमिति जननी' सन्तान को जन्म देने वाली संतुष्टस्य जनसमूहस्य (जयो० वृ० १/१९) २. व्रज (जयो०
स्त्री। २. करुणा, दया। ३. चमगादड़, ४. लाख, लाक्षा। वृ० ५/८) जननीजनतीय (वि०) मातृतुल्य धाय। (सुद० ३/२१)
जनसाक्षी (वि०) कहावत, किंवदन्ती। जन एव साक्षी ज्ञाताऽस्ति जननीमुदः (पु०) मातृचित्तविनोद। (वीरो० ५/४१) (जयो० ६/११८)
सुपल्लवाख्यानतया सदैवाऽनुभावयन्त्यो जननीमुदे वा। जनसेवी (वि०) जनता का सेवका (वीरो० १८/१२) देव्योऽन्वगुस्तां मधुरां निदानाल्लता यथा कौतुकसम्बिधाना।। जनातिग (वि०) असाधारण, असामान्य, अतिमानव। (वीरो० ५/४१)
जनापवादः (पुं०) लोक निन्दा, लोकापवाद। (जयो० १/६७) जनपदः (पुं०) १. राष्ट्र, नगर, साम्राज्य, राजधानी। २. जनाधार (पुं०) जनसमूह।
जनसमुदाय। देश का एक प्रदेश/हिस्सा। जनसाधारण, जनाधिपः (पुं०) नृप, राजा। प्रजा।
जनाधिनाथा (पुं०) राजा, अधिपति। जनपदिन् (पुं०) राजा, नगराधिपति।
जनान्तः (पुं०) शून्यस्थान, एकान्त निर्जन। जनप्रवादः (पुं०) जनश्रुति, जनवाद, लोकापवाद, किंवदन्ती। जनान्तिकं (नपुं०) गुप्त संवाद। जनप्रिय (वि०) लोक प्रिय, जन हितेच्छु, जन-पसन्द, लोक | जनार्दनः (पुं०) विष्णु। रंजन का धारक।
जनाकीर्णः (वि०) जनसमुदाय। जनभूमि (स्त्री०) नगर भूमि, वन भूमि। (जयो० १३/४२) | जनाश्रयः (पुं०) लोकाधार, जन सहारा, जनस्थान। (जयो०
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