Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 403
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूतः ३९३ चेतभु चूतः (पुं०) १. आम्रतरु, २. कामदेव। चूलिकाङ्गं (नपुं०) गणनाभेद-चौराशीलाख नयुतौ का एक चूतं (नपुं०) गुदा। चूलिकाङ्ग। चूतकः (पुं०) आम्रतरु। चूतकरस्याम्र वृक्षः (जयो० १०/११७) | चूष् (सक०) पीसना, चूसना! चुचूष सद्यश्चतुरस्तमत्यादरेण चूतदार (वि०) आम्रदायिनी। (जयो० १२/१२७) चूतोचितकं सूदत्या। (जयो० १६/३८) चुचूषास्वादितवान् चूतोचित (वि०) आम्र सदृश। चूत इवोचितश्चूतोचितः (जयो० (जयो० वृ० १६/३८) १६/३८) चूषणं (नपुं०) [चूष+ ल्युट्] चूसना, चोखना। (जयो० १२/१२७) चूरचूरा (स्त्री०) चूरमा, वाटी का शर्करा युक्त चूरा। (जयो० चूषा (स्त्री०) १. चूसना, २. मेखला, ३. चमड़े की तंग। वृ० ६/१२) चूष्यं (नपुं०) [चूष्+ष्यत्] चूसने योग्य पदार्थ। चूर्ण (सक०) पीसना, चूर्ण करना, मसलना, रगड़ना। चेकितानः (नपुं०) शिव। चूर्णायाञ्चकार (जयो० वृ० ७/१०८) चेटः (पुं०) [चिट्+अच्] विट, भृत्य। चूर्णः (पुं०) चून, आटा. सुगन्धित द्रव्य, चन्दन चूरा। चूर्णस्य चेटकः (पुं०) चेटक राजा, वैशाली राजा। वैशल्या भूमिपालस्य पिष्टविशेषस्य (जयो० वृ० १६/४६) चूर्णो यव-गोधूमादीनां चेटकस्य समन्वयः पूर्वस्मादेव वीरस्य मार्गमाढौकिसक्तुकणिकादि। नोऽभवत्।। (वीरो० १५/१९) चूर्णं (नपुं०) चूना, खड़िया, सेटक। चेटिका (स्त्री०) सेविका, दासी, चेटी। (जयो० वृ० १२/१११) चूर्णकः (पुं०) सत्तू, आटा, चूना। (सुद० १५/१९) विवाहित पत्नी के अतिरिक्त रखी हुई चूर्णकार (वि०) चूना बनाने वाला। अन्य स्त्री। पत्नी पाणिगृहीता स्यात्तदन्या चेटिका मता।। चूर्णखण्डः (पुं०) रेत समूह, कंकण। (लाटी सं०) चूर्णनं (नपुं०) [चूर्ण+ल्युट्] कुलचना, पीसना। चेटी (स्त्री०) दासी, सेविका। (सु० ९२) इत्युक्ताऽथ गता चूर्णदोषः (पुं०) आहार उत्पादन के दोष। चेटी श्रेष्ठिनः सन्निधिं पुनः। (सुद० ७७) चूर्णपारदः (पु०) सिंदूर, अबीर। चेतकोऽपि (अव्य०) कोई भी चेतना (वीरो० १९/४२) (सम्य० चूर्णपिण्डः (पुं०) भोज्य वस्तु की प्राप्ति। १३४) चूर्णमुष्टिः (स्त्री०) चूर्ण की मुष्टि। 'वशीकारकचूर्णमष्टिः' चेतन (वि०) सजीव, जीवित, अन्त:करण, मन, आत्मा, सचेत। (जयो० १६/४६) चूर्णस्य पिष्टाविशेषस्य मुष्टिरिव मोहनाय चेतनकः (पुं०) चेतनता, ज्ञानात्मक, प्रज्ञा, ज्ञान, बुद्धि। (वीरो० जयेत्। (जयो० वृ० १६/४६) १४/२६) (जयो० २५/५५) चूर्णिः (स्त्री०) [चूर्ण इन्] चूरा, चूर्ण किया गया। चेतनत्व (वि०) चेतनता। चूर्णिका (स्त्री०) [चूर्ण+ठन्+टाप्] सत्तू, पिसा हुआ धान्य। चेतना (स्त्री०) ज्ञान, संज्ञा, बुद्धि, मति, प्राण, तत्व। (सुद० अतिसूक्ष्माऽतिस्थूल-वर्जितं मुद्ग-माष-राजमाष-हरि १९) विचार-'इहास्या इति चेतनाऽ भवत्। (समु० २/१४) मंथ-कादीनां दलनं चूर्णिका (त० वा० ५/२४) (सम्य० १४३) चूर्णित (वि०) चूर्ण किया गया, पीसा गया, चूर-चूर किया गया। चेतनात्मन् (पुं०) विचारभृत। (जयो० २४/१८) चूलः (पु०) केश, बाल। चेतस् (नपुं०) [चित्+असुन्] १. चेतना, चित्त ज्ञान, २. मन, चूला (स्त्री०) चोटी, शिखर, कूट, छत, गृह का ऊपरी भाग, आत्मा, हृदय। (सुद० १०३, जयो० ३/१) अन्त:करण पर्वतशृंखला। २. धूमकेतु शिखा। (जयो०४/४४) ३. विचार, चिन्तन, मनन। वाढं चेत्त्वमिहासि चूलिका (स्त्री०) १. चोटी, शिखर, ऊपरी भाग। (दयो० १८, कुत्सितमतिर्युक्ता क्षतिस्ते तदा। (मुनि० १४) को जानाति वीरो० २/११) २. अनुयोग-ग्रन्थ के सूचित अर्थों की कदा तदेतु विलयं तस्मात्स्वतश्चेद् भवेत् (मुनि० १११) विशेष प्ररूपणा प्राकृत में विश्लेषण। जाए अत्थपरूवणाए हृदय (जयो० ३/५४) कदाए पुव्वपरूविदत्थम्मि सिस्साणं णिच्छमो उप्पजदि सा चेतदा (वि.) चैतन्यता, आत्म भावत्व। (जयो० वृ० १/२२) चूलिया त्ति होदि। (धवल) ११/४०) २. गणना भेद, ३. चेतपततः (पुं०) चित्त रूपी पक्षी। रेखा (जयो० १२/५) 'मस्तकचूलिकाभ्यदारैः' (जयो० १२/५) चेतभु (पुं०) प्रेम। For Private and Personal Use Only

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