Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 401
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिरकार ३९१ चीरं चिरकार (वि०) दीर्घकालीन, दीर्घसत्री, परम्परागत। चिरकारिक (वि०) दीर्घकालीन, दीर्घसूत्री। चिरकारिन् (वि० । प्राचीनतम्, बहुत समय का। चिरकालः (पुं०) बहुत समय, प्राचीन काल, दीर्घसमय, लम्बा अन्तगल। चिरकालिक (वि०) चिरकाल से चला आया, बहुप्रतीक्षित। चिरकालीन् (स्त्री०) बहुत समय से समागत। (मुनि० ३०) चिरजात (वि०) पूर्व में उत्पन्न, बहुत समय से उत्पन्न हुआ। चिरक्षुधित (वि०) बहुत भूखी, बहुत क्षुधा वाली। (दयो० २०) चिरञ्जीव (वि०) दीर्घायु वाला। चिरजीविन् (वि०) दीर्घजीवी। चिरटंकारः (पुं०) लम्बा उद्घोष। चिरतपस्वी (वि०) अधिक तप वाला। चिरदानं (नपुं०) ०अत्यधिक दान उचित दान, ०अपरिमित वस्तु का देना। चिरदानी (वि०) अत्यधिक दान देने वाला। चिरध्यानं (नपुं०) बहु समय तक ध्यान। चिरनमन् (वि०) अधिक नम्रशील, प्रणतभाव। चिरपरिचित (वि.) बहुत समय से परिचय वाला। चिरपाप (वि०) अधिक पाप, पाप की बहुतायत। चिरपुण्यं (वि०) उचित पुण्य, शुभभाव की अधिकता। चिरपुष्पः (पुं०) बकुल का फूल। चिरभ्रान्तिः (स्त्री०) चिरकालीन भ्रान्तियां, बहुत समय के भ्रम। (मुनि० ९०) स्वाध्यायः परमात्मबोध दियादेक उश्चिरभ्रान्तिहत्। (मुनि० ३०) चिरहिन् (पुं०) गधा, गर्दभ। चिररज (वि०) दोर्घ कालोन रज युक्त, दीर्घकालीन कर्म युक्त। चिररजनी (स्त्री०) लम्बी रात। चिरत्न (वि०) [चिरे भव:-चिर+त्न] पुराना, प्राचीन।। चिरन्तन (वि०) [चिरम् ल्युट्-तुट् य] पुराना, पुरातन, प्राचीन। चिरविप्रोषित (वि०) दीर्घ समय से बाहर रहने वाला, प्रवासी। चिरसंचित (वि०) बहुत समय से संगृहीत, चिरोच्चत। (जयो० वृ० १/७५) चिरसुप्त (वि०) बहुत समय से सोया हुआ। (दयो० ३०) चिरस्थ (वि०) चिरस्थायी, बहुत समय तक रहने वाली। चिरस्थायिन् (वि०) चिर समय तक रहने वाली, स्थायी, टिकाऊ दृढ़। (जयो० ६/७५) चिरायुस् (वि०) लम्बी आयु/उम्र वाला। चिरारोधाः (पु०) अधिक रोग, दृढ़ घेरा, चक्राकार रोक। चिरिः (पुं०) तोता। चिरोच्चित (वि०) चिरसंचित, बहुत समय से संगृहीत! चिरेण बहुकालेन उच्चिता, संगृहीतोऽसि:। (जयो० वृ० १/७५) चिर्भटी (स्त्री) [चिर+भट् अच् डीप्] ककड़ी, भटकचरिया। चिल् (सक०) वस्त्रधारण करना, परिधान पहनना। चिलमीलिका (स्त्री०) १. जुगनू, २. विद्युत, ३. चमकीला हार, गले का आभूषण। चिलाति (पुं०) राजा, कोटिवर्ष के स्थान का राजा (वीरो० १५/२०) चिल्ल् (अक०) ढीला होना, शिथिल होना। चिल्लः (पुं०) चील, गृद्ध पक्षी। चिल्लिका (स्त्री०) [चिल्ल्+इन्+कन्+टाप्] झींगुर। चिह्न (नपुं०) [चिह्न+अच्] अंक (जयो० वृ० ६/२१) लांछन, निशान, पहचान, प्रतीक, लक्षण, संकेत, इंगित, आकार। चिह्नकारिन् (वि०) चिह्न लगाने वाला, दाग लगाने वाला। डराबना। चिह्नधर (वि.) लक्षण धारी। चिह्नपत्रं (नपुं०) चिह्न युक्त पत्र, मुद्रित पत्र। चिह्नलोकः (पुं०) आकार, संस्थान, द्रव्य, गुण और पर्यायों के आकार। जं दिलै संठाणं दव्वाण गुणाण पज्जयाणं च। चिण्हलोगं वियाणाहि अणंतजिणदेसिदं (मूला० ७/५०) चिह्नितं (वि०) लांछित, लक्षण वाला, पहचान वाला, मुद्रांकित, संकेतित। चीच्चा (भू०) चीत्कार करने लगा चीच्चीत्कार-(भूतकालिक)-चीत्कार करने लगे। (जयो० ८/५) चीत्कारः (चीत्+कृ+घञ्) भयंकर गर्जन, तीव्र गर्जना, अधिक कोलाहल, विशेष क्रन्दन। स्फीत्कारचीत्कारपरम्। (जयो० २७/१८) चीत्कृत (वि०) चिंघाड़ वाला। अथो रथानामपि चीत्कृतेन छन्नः प्रणाद: पटहस्य केन। (जयो० ८/२३) चीनः (पुं०) [चि+नक्-दीर्घ:] चीन देश। चीनांशुकं (नपुं०) चीन में निर्मित वस्त्र। चीनाकः (पुं०) [चीन अक्+अण] कपूर। चीरं (नपुं०) १. वस्त्र, परिधान, कपड़ा। (सुद० २/११) (वीरो० ३/४१) २. धजी, चिथड़ा, फटा कपड़ा। ३. वल्कल। ४. चारलड़ी वाला हार। ५. दर्पण, सीसां For Private and Personal Use Only

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