Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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चरणसमीप:
चरणसमीप (पुं०) चरणभक्त (जयो० कृ० २४/४७) चरणसेवा (स्त्री०) सेवा शक्ति विनम्र प्रणाम। चरण स्पर्श: (पुं०) पादसमन्वय, चरणसम्पर्क। (जयो० वृ० १/१०५)
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चरणारविंदं (नपुं०) चरण-कमल (दयो० १/५१) पद-पंकज (जयो० वृ० १ / ९२) तेषां श्री चरणारविन्दभजनं कुर्या: किलात्मन्वरम् (मुनि० २५)
चरणाविंदभजनं (नपुं०) पद पंकज में नमन । चरणारविंदयुगलं (नपुं०) पद पङ्कज द्वय (जयो० ० १/९२) चरणार्चनं (नपुं०) चरणों में नमन ( मुनि० १६ ) चरणामृतं (नपुं०) चरण प्रक्षालन । चरणानुयोग (पुं०) १. पादारविंद प्रसाद (जयो० ० १/२२) २. चारित्र बोधक विधान का शास्त्र । चारित्रवार्द्ध (जयो० वृ० १९ / २७) चरणादिस्तृतीय स्यादनुयोगो जिनोदितः । यत्र चर्याविधानस्य परा शुद्धिरुदाहता।। (जैन०ल० ४३४ ) चरजीव (पुं०) प्रसजीव (जयो० ० २ / १२८ ) चरदन्त ( वि०) पाप का विनाशक, दम्भ नाशक । चरस्य दम्भस्य पापाचारस्य दुष्टान् लेशान् चरद-भक्षयतविनाशयत्।
चरन (पुं०) दूत, संदेशवाहक (जयो० ३/१४४) (जयो० वृ० १२/३)
चरम (वि०) (चर्-अमच्] अन्तिम, पश्चात्वर्ती (वीरो० १४ / २) अन्त में प्रभासनामा चरमो गणीशः श्रीवीरदेवस्य महान् गुण सः । (वीरो० ४४ / १२ )
चरमकालः (पुं०) अन्त समय ।
चरमपौरुषः (पुं० ) अन्तिम पुरुषार्थ, मोक्ष पुरुषार्थ (जयो०
वृ० १२/९)
चरमभाव: (पुं०) उत्कृष्ट भाव, विशुद्धभाव।
चरमशरीरं (नपुं० ) ० वज्रवृषभ नाराच संहनन युक्त शरीर । • रत्नत्रय आराधक का शरीर ।
चरमसमय: (पुं०) अन्तिम समय ।
चरमाचल: (पुं०) ० अस्ताचल पर्वत । ०परिश्चम गिरि । चरमादिः (पुं०) पश्चिमी गिरि
चरमावस्था ( स्त्री० ) अन्तिम अवस्था ।
चरमेस (वि०) अन्तिम भागवाला ।
चरमेस-ग्रीवकः (पुं०) अन्तिम ग्रैवेयक, देवलोक की ग्रैवेयक पर्याय। (समु० ५ / १६) चरसकः (०) चरस, चर्मपात्र (जयो० २/१६)
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चर्च्
चराचर: (पुं०) चर- सजीव और अचर स्थावर जीव। (सम्य० ७/३२) (मुनि० १३) (वीरो० वृ० ३/२७) चल-अचल अचला निश्चलापि चराचरे (जयो० १/९४) चराचरमिदं सर्व स्वामिस्ते ज्ञानदर्पणे प्रतिविम्वतमस्तीति श्रद्धाति न कः पुमान्।। (समु० ७/३२)
चराश्चर (वि०) १ चरणशील, गमन युक्त (जयो० ८/३८) २. आचरण करने योग्य:
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चरिः (स्त्री०) जन्तु, प्राणी ।
चरिका ( स्त्री०) हाथी घोड़े का मार्ग ।
चरितं (भू०क०कृ) घटित, उदाहत्य अनुष्ठित (जयो० ९५५) १. ऊबाया, व्याप्त, प्राप्त ज्ञात, प्रस्तुत । २. गया हुआ, घुमाया गया।
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चरितं (नपुं०) १ चरित्र, आचरण, मृत्य, कर्म, व्यवहार, अभ्यास । २. जीवनी, आत्मकथा, ऐतिहासिक विवरण । चरित कथा ( स्त्री०) साहसिक कथा, आत्मकथा प्रेरक
कथा ।
चरित-चित्रणं (नपुं०) जीवन परिचय | चरितधर (वि०) आचरण युक्त।
चरितनायकः (पुं०) प्रेरक नायक । (जयो० वृ० ५/२७) चरितार्थ (वि०) सफल, अभीष्ट दायक कार्यान्वित सम्पन्न,
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समाप्त।
चरित्रं ( नपुं० ) [ चर इत्र] १. आचरण, व्यवहार, स्वभाव, कर्म, अनुष्ठान । हरेश्चरित्रं कृतकं सभीति तस्यानुकूलास्तु कुतः प्रणीति। (जयो० १/३५) २. कर्तव्य, नियम। (सम्य० ५)
चरित्रचर (वि०) चारित्रधारक आचरणशील स्त्रीकुर्वन्विभवं भवस्य सुतरामेतच्चरित्रचर |
चरित्रमोहः (पुं०) चारित्रमोहकर्म । (जयो० ११०) (मुनि० २५)
चरित्रवेदनं (नपुं०) चरित्र का अनुभव, चरित्र का ज्ञान। 'या पुराजन्मचरित्रस्य वेदनेऽपि' (जयो० २३/८३) चरिष्णु (वि० ) [ चर्+इष्णुच् ] ० गमनशील, ०संचारशील, परिभ्रमणशील, इधर-उधर गमन करने वाला। (जयो० ५/१०१) उरोजसम्भूतिमगान्मुहुर्वा तनुं चरिष्णुः सदृशोऽप्यपूर्वाम् (जयो० ११/४)
चरुः (नपुं०) नैवेद्य जल-चन्दन- तन्दुलकुसुमस्रक् चरुणि दीपशिखायाः । (सुद० ७२)
चर्च (सक०) १. पढ़ाना, अभ्यास करना, अनुशीलन करना,
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