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चाय
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चारुफला
सुवर्णस्य रुचिरिव रुचिः। (जयो० वृ० १४/२४) २. चम्पक पुष्प कान्ति। चम्पकपुष्पाणां दाम माला रुचिं (जयो० वृ०
१४/२४) चाय (सक०) १. निरीक्षण करना, पहचानना, देख लेना। २.
पूजा करना। चारः (पुं०) [चर्+घञ्] १. घूमना, परिभ्रमण करना। २.
गति, मार्ग, प्रगति। (सम्म० २२) संचार (वीरो० २/१) चारकः (वि०) [चर्+णिच्+ण्वुल] भेदिया, ग्वाला, दूत। १.
अश्वारोही, सवार। २. चारको बन्धनगृहम्-बन्धनगृह।
बन्दीगृह। चारण: (पुं०) [चर् + णिच्+ ल्युट्] भ्रमणशील, तीर्थयात्री १.
नर्तक, भांड, स्तुतिपाठक (जयो० वृ० ३/१७) गन्धर्व, गवैया, भाट। २. ऋद्धि विशेष। चरणं गमनम् तद् विद्यते
तेषां ते चारणा:' चारणऋद्धिः (स्त्री०) अतिशय गमनशील ऋद्धि, जिसके
प्रभाव से साधु अतिशय युक्त गमन समर्थ होते हैं।
'अतिशायिचरणसमर्थाश्चारणा:' चारणार्द्धिक (वि०) चारण ऋद्धिधारी (समु० ४/१८) चारतीर्थः (पुं०) दूतशिरोमणि। (जयो० ७/६२) चारदृक् (पुं०) गुप्तचर, दूत। चारा गुप्तचरा एव दृष्टिः ।
(जयो० वृ० २३/३) चारित्रं (नपुं०) १. आचरण, शुद्ध विचार, विशुद्ध आचरण,
(सम्य० ८४) मोह-क्षोभ रहित आत्मा का परिणाम। पुण्य-पाप का परिहार, विरतिभाव। चरन्त्यनिन्दितमनेति चरित्रं क्षयोपशमरूपम्, तस्य भावश्चारित्रम्। (जैन०ल० ४३७) २. सच्चरित्रता, ख्याति, रीति, अच्छाई, उचिताचरण सदाचरण, विशिष्ट आचार। ३. पञ्चाचार रूप में प्रसिद्ध चरित्र, ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार और
वीर्याचार। चारित्रधर्मः (पुं०) प्राणातिपातनिवृत्ति रूप धर्म। चारित्रपण्डितः (पुं०) पञ्चविध चारित्र में से किसी एक में प्रवीण। चारित्रबालः (पुं०) चारित्र से रहित प्राणियों को चारित्रबाल
कहा जाता है। चारित्रशक्तिः (स्त्री०) चारित्र स्तवन, विशुद्धाचरण का गुणगान।
पश्चाचार में चारित्राचार भी एक भक्ति का रूप है। जो महावती, समितिपालक, गुप्तियों से गुप्त पञ्चविध चारित्र के धारी होते हैं, उनके चारित्रगुणों की भक्ति चारित्रभवित है। (भक्ति संग्रह वृ० ७-९०)
चारित्रमोहः (पुं०) चारित्र मोहनीय कर्म। (सम्य० १२०) चारित्रमोहनीय (वि०) चारित्र मोह वाला जो बाह्य और
आभ्यन्तर क्रियाओं की निवृत्तिरूप चारित्र को मोहित
करता/विकृत करता है। चारित्रवार्द्धिः (स्त्री०) चरणानुयोग की वृद्धि। (जयो० १९/२७) चारित्रविनयः (पुं०) समिति, गुप्ति आदि में प्रयत्नशील रहना,
चारित्र का श्रद्धान करना, इन्द्रिय एवं कषाय के व्यापार का निरोध करना। इन्द्रिय-कपायाणां प्रसर निवारणं इन्द्रिय कषाय-व्यापारनिरोधनं इति चारित्राविनयः।' (कार्तिकेयानुप्रेक्षा
टी०४६६) चारित्रसंवरः (पुं०) चारित्र का संवरण, चारित्र में लगने वाले
नवीन कर्मों को रोकना। चारित्राचारः (पुं०) पापक्रिया की निवृत्ति रूप परिणति।
हिंसादिनिवृत्ति परिणतिश्चारित्राचार:। (भ० आन्टी० ४१९)
'पापक्रियानिवृत्ति-परिणतिश्चारित्रचारः' (भ०अ०टी०४६) चारित्राराधना (स्त्री०) तेरह प्रकार के विशुद्ध चारित्र का
आचरण, इन्द्रियसंयम और प्राणि असंयम का परित्याग। चारी (वि०) विचरणशील। 'स्वभावतः सद्विभवाय चारी। (जयो०
२७/१) चारु (वि०) रमणीय, मनोहर, सुन्दर, निरोग। (सुद० १२१)
(जयो० वृ० १/६९) एकोऽस्ति चारुस्तु परस्य सा रुग्दारिद्रयमन्यत्र धनं यथारुक् (सुद० १२१) २. प्रगल्भ, प्रतिष्ठित, अभीष्ट, प्रिय, मनोज्ञा 'वचश्च चारु प्रवरेषु तासां' (जयो० १६/४४) ३. उत्तम-मुनीशः सच्चारुचकोर
चन्द्रमस् (समु० ४/२०) चारुकुचः (पुं०) उन्नत कुच, उभरे हुए कुच। 'चारु कुचौ
यस्या सा' (जाये०वृ० १२/१२१) चारुघोण (वि०) सुन्दर नाक वाला। चारुतर (वि०) आत्मकल्याण से युक्त। ततः सदा चारुतरं
विधातुं विवेकिनो हृत्सततं प्रयातु। चारुदत्तः (पुं०) नाम विशेष। (वीरो० १७/२) (सुद० १२१) चारुदर्शनं (नपुं०) प्रियदर्शन, लावण्यावलोकन। चारुदृष्टिः (स्त्री०) चंचल दृष्टि, चपल दृष्टि। चारुधारा (स्त्री०) शची, इन्दाणी चारुनेत्र (वि०) चंचलनेत्र, सुन्दर दृष्टि वाणी। चारुपरिवेशः (पुं०) सुन्दर प्रसाधन, अच्छे परिधान, रमणीय
वस्त्राभूषण। चारुफला (स्त्री०) अंगुर लता।
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