Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 384
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घोरस्मरः ३७४ चक्रः घोरस्मरः (पुं०) प्रवल काम। स एव घोरस्मर भागयुग्मतामहो (समु० ४/३०) घोरा (स्त्री०) श्रवण, चित्रादि नक्षत्र की गति। घोलः (पुं०) [घुर्+घञ्] तरल, घुला हुआ पदार्थ। घोषः (पुं०) [घुष्+घञ्] घोषणा, उद्घोष, ध्वनि, कोलाहल, १. आहीर वाली। घोषणा (स्त्री०) सूचना, ढिंढोरा, राजाज्ञा। घोषणापत्रं (नपुं०) सूचना पत्र, आदेश पत्र। घोषकः (पुं०) अहीर, अभीर। घोषका अभीरानृपस्य (जयो० वृ० २१/५८) 'आगताश्च दधिभाजनादिभिर्घोषकान्' घोषणं (नपुं०) [घुष्+ ल्युट्] उच्चारण, ध्वनि, निनाद। घोषकोला (स्त्री०) कुल्हड़ा, कद्दू। घोषयित्नुः (स्त्री०) हलकारा, ढिंढोरा। घोषवती (स्त्री०) वीणा विशेष। घोषवल्ली (स्त्री०) कुल्हड़ा, कद्दू। (जयो० वृ० २१/५२) घोषा (स्त्री०) सौंफ। न (वि०) विनाशक, घातक, विध्वंसक। घ्रा (सक०) सूंघना, सुगंध लेना। घ्राण (भू०क०कृ०) सूंघा। घ्राणं (नपुं०) नाक, नासिका। घ्रायतेऽनेनेति घ्राणम्। घ्राणनिरोधः (पुं०) सुगंध रहित। घ्राणेन्द्रिय (नपुं०) घ्राण इन्द्रिय, तीसरी इन्द्रिय। घ्रातिः (स्त्री०) सूंघने की क्रिया। चक् (अक०) १. तृप्त होना, संतुष्ट होना, २. प्रतिरोध करना। चकवी (स्त्री०) कोककुटम्बिनी (दयो० २/६) चकारः (पुं०) चवर्ग। (जयो० १/४८) चकित (वि०) [चक्र+क्त] आश्चर्य युक्त, विश्मय जन्य, प्रकम्पित, भयभीत, भीरु, आशंका युक्त। चकितं (अव्य०) भय से, आश्चर्य से, विश्मय से। चकोर: (पुं०) चकोरपक्षी, चकवा, चन्द्रमा की किरणें ही जिसका आधार है। (समु० ४/२०) 'मुनीश! सच्चारुचकोरचन्दमः' जीवंजीव पक्षी-चकोरैः जीवंजीवैः पक्षिभिः 'जीवंजीवश्चकोरकः' इत्यमरः (जयो० वृ० १८/६) चकोर चक्षुः (स्त्री०) जीवंजीव नयन, चंचल नयन, चकोर पक्षी की तरह नेत्र। 'सुदर्शन त्वञ्च चकोर-चक्षुषः' (सुद० ३/४१) चकोरदृक् (नपुं०) चंचल नेत्र, चकोर नयन, जीवंजीव। (जयो० १८/२३) (सुद०७४) तव चैष चकोरदृशोऽवश्यं च कौमुदाप्तिमयः' (जयो० ६/११२) 'चकोरस्य दृशाविव' (जयो० वृ० ६/११२) चकोरलोचना (स्त्री०) चकोराक्षी। (जयो० १५/९८) चकोरसमा (वि०) चकोर सदृश। (जयो० ६/६४) चकोराक्षी (स्त्री०) चकोरलोचना। 'चकोरस्य अक्षिणी यस्याः सा चकोराक्षी सा बाला।' (जयो० वृ० ६/८९) चकोरी (स्त्री०) खञ्जनिका। (दयो० ५३) पुरा तु राजीवदृशः किलोरी चकार राज्ञो दृगियं चकोरी। (जयो० ११/२) चक्की (स्त्री०) घरघट्टी ०पीसनी-'चक्की' ति लेक भाषयाम् । (जय ७८५) चक्रं (नपुं०) १. पहिया, चाक, गोलाकार अस्त्र, वृत्त, मण्डल। चक्रश्च कृत्रिमं चक्रे चक्रिणो दिग्जये जयम्' (जयो० ७/४१) चक्र सैन्ये रथाङ्गेऽपि आम्रजालेऽम्भसांभ्रमे। कुलाकृत्यनिष्पत्तिभाण्डे राष्ट्रास्त्रभेदयोः।। इति विश्वलोचनः।। (भक्ति-वृ. ६) २. सेना, समूह, रथाङ्ग, आम्रजाल, रथाङ्गः चक्र। (जयो० वृ० १/१९) ३. प्रांत, जिला, राष्ट्र, ग्राम समूह। ४. कुम्हार का चाक। अन्यातिशायी रथ एकचक्रो रवेरविश्रान्त इतीमशक्रः। तमेकचक्रं च नितम्बमेनं जगज्जयी संलभते मुदे नः। (जयो० ११/२२) 'सुप्रसिद्धमेकं चक्रं परिमण्डलं' (जयो० वृ० ११/२२) * समूह (जयो० २/१२१) चक्रः (पुं०) हंस पक्षी, चकवा। चः (पुं०) चवर्ग का प्रथम व्यञ्जन, इसका उच्चारण स्थान तालु है। च-चकार (जयो० वृ० १/४७) चः (पुं०) [चण् चि+उ] चन्द्र, कच्छप। चास्य चन्द्रमस्। (जयो० २५/८६) च (अव्य०) १. और, तथा, अन्तिम शब्द, (सुद० २/१८, २/४८) में प्रयुक्त होने वाला, दो या दो से अधिक के बीच में प्रयुक्त अथवा या आदि का बोधक। २. निश्चय, अवधारण, निर्धारण। 'निघर्षकुण्डी न च तुण्डिकेत्यरं' (जयो० ५/७८) ३. पादपूर्ती (पादपूति के रूप में च का पादपूरणे) (जयो० ३/११५) (जयो० ७/९२, २७/१) प्रयाग-गुप्तिभागिह च कामवत्तु-नः पक्षवाति च शीतरश्मिवत्पुनः। (जयो० ३/१५) 'गदितं च वचोऽदः' (जयो० ४/५०) इस वाक्य में च पादपूर्ति के लिए है। For Private and Personal Use Only

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