Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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गुल्फः
३६१
गृहच्छिदं
गुल्फः (पुं०) टखना, घुटना। गुल्मः (पुं०) झाड़ी, झुरमुट, लता समूह। गुल्मिन् (वि०) [गुल्म+ इनि] लता समूह वाला। गुल्मी (स्त्री०) | गुल्म+अच्+ ङीष्] तम्बू। गुवाकः (पुं०) सुपारी का वृक्षा गुहु (सक०) ढकना, छिपाना, आच्छादित करना, गुप्त रखना। गुहः (पुं०) अश्व। गुहा (स्त्री०) गुफा, कन्दरा, बिल। शून्यागार-गुहा श्मशान
निलयप्रायो प्रतीतो मुदा' (मुनि० २९) गुहात्मक (वि०) दरीमय, गर्त सहित। भूरिदरीमय नाना
गुहात्मनोऽप्यस्ति' (जयो० वृ० २४/२०) गुहिन (नपु०) अरण्य, वन। गुहेरः (पुं० [गुह एरक] १. अभिभावक, २. संरक्षक। ३. ___ लुहार, अयस्ककार। गुह्य (सं०कृ०) गोपनीय, छिपाने योग्य, गुप्त एकान्तिक।
(समु० ) 'वमेर्विधौ यद्यपि वक्त्रमूह्य विरेचने किंतुतथैव
गुह्यम्' (जयो० २६७९) गुह्यभाषणं (नपुं०) गुप्त बात को प्रकट करना, सत्याणुव्रत में
लगने वाला दोष। गुह्यलम्पट: (पुं०) गुप्त लालची। 'गुप्तरूपेण विषयलोलुप:'
(जयो० वृ० २/३२) गू (स्त्री०) मल, विष्टा। गूढ (भू०क०कृ०) गुप्त, आच्छन्न, (सम्य० १२६, सुद०
१०२) गभीर, आवृत्त, छिपा हुआ। (जयो० ५/५१)
आच्छादित (जयो० १७/१७) गृढनीडः (पुं०) खंजनपक्षी। गूढपथः (पुं०) गुप्तमार्ग पगडंडी गृढपादः (पु०) सर्प। गूढपयोधरा (स्त्री०) नव वधू। (जयो० १४/५२) गृढपुरुषः (पुं०) दृत, गुप्तचर, भेदिया। गूढपुष्पकः (पुं०) वकुलतरु। गृढब्रह्मचारी (विc ) गुप्त रूप में ब्रह्म का आचरण करने वाला। गृढमार्गः (पुं०) गुप्तमार्ग, भूगर्भ। (जयो० २/१५४) गूढमैथुनः (पुं०) कौवा। गूढ रहस्यः (पुं०) गुप्त बातचीत। (जयो० १६/६२) गूढवर्चस् (पुं०) मेंढक गूढसाक्षिन् (पुं०) गुप्त साक्षी। गृढार्थः (पुं०) रहस्यपूर्ण अर्थ। (जयो० २१/८७)
गृथ् (पुं०) [गू+धक्] विष्ठा, मल। गून (वि०) विसर्जित मल। गूलर: (पुं०) एक फल, उदुम्बर फल। गूषणा (स्त्री०) अक्षिकृति। गृहनं (नपुं०) गुप्त, छिपाना, आच्छादन करना, प्रकट न
करना। तत्थं गृहणं किंचि कहणं भण्णइ। गृ (सक०) छिड़कना, तर करना। गृज्/गृञ् (अक०) गुर्राना, शब्द करना। गृञ्जनः (पुं०) [गृञ् + ल्युट्] १. गाजर, शलजम। २. गांजा। गृध् (सक०) गृद्ध होना, आसक्त होना, ललचाना। गृधु (वि०) [गृध्+कु] लम्पट, कामातुर। गृध्नु (वि०) [गृध्+क्नु] लोलुपी, लोभी, लालची, लम्पट। गृद्धिः (स्त्री०) आसक्ति। (सुद० १०२) गध्यं (नपुं०) लोभ, इच्छा, वाञ्छा, चाह। गृध्र (वि०) लोलुपी, लम्पटी। गृधं (नपुं०) पक्षी विशेष। गृष्टिः (स्त्री०) [गृह्णाति सकृतगर्भम्+ ग्रह+क्तिच्] वत्स देने
वाली गौ। ग्रस् (सक०) ग्रसना, निकालना। 'नृलोकमेषा असते हि पूतना'
(वीरो० ९/९) गृह (सक०) ग्रहण करना/गृह्णीयात् (सुद० ) गृह देखो ऊपर-पकड़ना, लेना। गृहं (नपुं०) घर, निवास, आवास, स्थान, भवन। गृह-कच्छपः (पुं०) कबूतर। गृहकपोतः (पुं०) पालतू कबूतर। गृहकरणं (नपुं०) गृहकार्य, गृह का कारण। गृहकर्मन् (नपुं०) १. गृहस्थकर्म, घर का कार्य। २. मूर्ति
रचना, जिनप्रतिष्ठा। गृहकलहः (पुं०) घरेलू कलह, घर के लोगों की आपसी
कलह। गृहकल्पः (पुं०) परिग्रहजन्य वेष। गृहकारकः (पुं०) गृह निर्माता। गृहकुक्कुटः (पुं०) पालतू मूर्गा। गृहकार्य (नपुं०) गृहस्थी का नाम। गृहकार्यनिमग्न (वि०) गृहस्थी के कार्य में निमग्न/लीन।
'गृहकार्ये रन्धनक्षोटनादौ निमन्नासीत्' (जयो० २२/३७) गृहाच्छदं (नपुं०) गृह की कमजोरियां, गृह में अशान्ति,
राजन्निरीक्ष्यतामित्थं गृहच्छिद्रं परीक्ष्यताम्। (सुद० १०८)
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