Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 381
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घनागमः ३७१ घातिवनं घनागमः (पुं०) वर्षा समय, वर्षर्तुः। (जयो० २३/३६) घनाङ्गलं (नपुं०) एक प्रमाण विशेष, प्रतरांगुल को दूसरे सूच्यंगुल से गुणित करने पर जो प्रमाण आता वह घनाङ्गल कहलाता है। 'घणे घणंगुलं लोगो' (ति०प० १/१३२) घनाघनः (पुं०) प्रगाढ़ मेघ, सघन मेघ, महामेघा (सु०वृ० ११५) घना निविडा ये घनाघना मेघाः। (जयो० २४/१९) घनाच्छनं (नपुं०) सघन आच्छादन, प्रगाढ़ आवरण। तत्र तल्पे नभः कल्पे घनाच्छादनमन्तरा। (सुद० ७८) घनात्ययः (पुं०) मेघों की समाप्ति। घनान्तः (पुं०) मेघ इति श्री। घनान्तरः (पुं०) मेघों से आवृत, मेघाच्छन्न । घनान्त राच्छन्नपयोजबन्धु रिवाबभौ स्वोचितधाम सिन्धुः। (वीरो० ६/९) घनान्धकारः (पुं०) प्रगाढ़ सम, अत्यधिक अन्धकार, घनघोर घटा। अनारताक्रान्तघनान्धकारे भेदं निशा-वासरयोस्तथारे' (वीरो० ४/२५) घनापित (वि०) पुञ्जीभूत (जयो० १/२३) निविडता, प्रगाढ़ता। (जयो० २४/४५) घनामयः (पुं०) खजूर वृक्षा घनाश्रयः (पुं०) अन्तरिक्ष, पर्यावरण। घनिष्ठ (वि०) प्रगाढ, निविड। 'छायां सुशीतलतलां भवतो घनिष्ठां'। घनीभावः (पुं०) प्रगाढ़ता का भाव। (जयो० १०/९९) घनोपल: (पुं०) ओले हिमरुण। (जयो० २४/२७) घनोघः (पुं०) मेघ समूह। (सम्य० ४४) घनोदयः (पुं०) वर्षाकाल, वर्षा ऋतु। 'घनानामुदयो यत्र तं । वर्षाकालमिति' (जयो० वृ० २२/२) २. घनोऽतिशयरूप उदयो यस्य' (जयो० वृ० २२/२) घरट्टः (पुं०) [घर सेकं अट्टति अतिक्रामति-घर+अट्ट अण्] चक्की , खरांस, घराट। घर्घर (वि०) [घर्घरा+क] गरगर शब्द करने वाला, गड़गड़ाने वाला, कलकल शब्द करने वाला। घर्धरः (पुं०) कलकल ध्वनि। घर्घरा (स्त्री०) घुघरूओं की ध्वनि। घर्घरिका (स्त्री०) [घर्घर+ठन्+टाप्] एक वाद्य यन्त्र। घर्धरितं (नपुं०) घुरघुराना। धर्मः (पुं०) [घरति अङ्गात्-घृ+मक्] ताप, गर्मी। गर्मी धूप। (जयो० ११) सूर्यस्य घर्मत इहोत्थितमस्मि पश्य वाष्पीभवद्यदपि वारिजलाशयस्य। (वीरो० १९/४३) घर्मजन्य (वि०) ग्रीष्मता युक्त, गर्मी उत्पादक। (जयो० २६/५६) धर्मसत्ता (वि०) गर्मी, उष्णता (जयो० ११/४४) घर्ष (सक०) रगड़ना, घर्षण करना, चूरा करना, पीसना। घर्षः (पुं०) रगड़, पीसना। घर्षणं (नपुं०) पीसना, चूरा करना। १. मैथुन नियन घर्षणं गजिते खे इति वि' (जयो० २३/२६) घस् (सक०) खाना, भोजन करना, निगलना। घस्मर (वि०) [घस्+क्मरच्] खाऊ, पेटू, अधिक खाने वाला। घस्र (वि०) [घस्+रक्] हानिकारक, दु:खयुक्त। घाटः (पुं०) [घट्+अच्] ग्रीवा का पिछला भाग। घाणी (स्त्री०) कोल्हू। (समु० १/५) घाण्टिक (वि०) घंटी बजाने वाला। घातः (पुं०) [ह्र+णिच्+घञ्] ०हानि, नुकसान, ०प्रहार, ०नाश, ०आघात, संहार। (सुद० ४/२६) ०संघात 'असत्य वक्तुर्नर के निपातश्चासत्यवक्तुः स्वयमेव घातः।' (समु० १/९) घातक (वि०) संहारक, नाशक, प्रहारक। घातकरा (वि०) संहारक, घात करने वाला, प्रहार करने वाला। 'परघातकरः करोऽस्य चास्य' (जयो० १२/६४) घातचन्द्रः (पुं०) अशुभ राशि पर स्थित चन्द्र। घाततिथिः (स्त्री०) अशुभ चन्द्र तिथि/दिन। घातन (वि०) [ह्न+णिच्+ ल्युट्] संहारक, हत्या करने वाला। घातनं (नपुं०) संहार, प्रहार, घात। घातपरायणः (पुं०) विध्वंस करने में कुशल, हानि करने में प्रवीण। 'एकः सहजसौहार्दी परो घातपरायणः' (दयो० ६२) घातसत्त्वस्थानं (नपुं०) एक गणतीय स्थान, बन्ध सदृश अष्टांक और अर्थक के मध्य में अधस्तन ऊर्वक से अनन्तगुणा और उपरिम अष्टांक के अनन्तगुणा हीन होकर जो सत्त्वस्थान अवस्थित होता है। घातिकर्मन् (नपुं०) घात/क्षय/क्षीण किए जाने वाले कर्म। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय ये चार कर्म केवलज्ञान, केवलदर्शन, सम्यक्त्व या चरित्र तथा वीर्य रूप गुणों से घात किए जाते हैं। घातिन् (वि०) [ह्र+णिच्+णिनि] घात करने वाला, नष्ट करने वाला, घातक, संहारक। (समु०८/८) (सम्य० ४८) घातिप्रकृतिः (स्त्री०) घातक प्रकृतियां। (वीरो० १२/३८) घातिवनं (नपुं०) घातियां कर्म रूप वन। (भक्ति० ३२) For Private and Personal Use Only

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