Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 372
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गृहज: www.kobatirth.org गृहज: (पुं०) भृत्य, नौकर, घर में उत्पन्न, भृत्य के लिए 'गृहजात' शब्द का प्रयोग । गृहाजातः देखो ऊपर। गृहजातिका ( स्त्री०) धोखा, कपटभाव । गृहज्ञानिन् (नपुं०) मूर्ख, जड । गृहती (स्त्री०) १. वीथिका, २. चबूतरा, चौपाल । गृहतटीपंक्ति (स्त्री०) मार्गोपमार्ग, वीथिका । (जयो० वृ० १९/८३) गृहदेवता ( स्त्री०) इष्ट देव, अधिष्ठात्री देव, कुलदेवता । गृहदेविका ( स्त्री०) १. कुलदेवी, २. गृहस्त्री । गतो विवेक्तुं निजमित्युपायादुपासनायां गृहदेविकायाः । (जयो० १६ / ४ ) गृहदेहली (स्त्री०) घर की चौखट, गृह की देहली। गृहनमनम् (नपुं०) वायु, पवन, हवा । गृहनाशन: (पुं०) अरण्यक कापोत । गृहनीड: (पुं०) गौरेया, चिड़िया । गृहपति: (पुं०) गृहस्थ, गृहस्वामी, ग्रामकूट, ग्राम मुखिया । गृहपाल : (पुं०) गृहसंरक्षक | गृहपोतकः (पुं०) घर का भाग, गृह का एक हिस्सा, भूखण्ड । गृहप्रवेश: (पुं०) विधिवत् गृह में प्रवेश करना । गृहबभ्रुः (पुं०) पालतू नेवला । गृहबलिः (स्त्री०) आहूति । गृहभुज् (पुं०) काक, कौवा । गृहभङ्गः (पुं०) प्रवासी, यात्री । गृहभूमि : (पुं०) वास्तुस्थान । गृहभेदिन् (वि०) गृहभेदक, घर की कमी का निरीक्षक । गृहमणि: (स्त्री०) दीपक । गृहमाचिका (स्त्री०) चमगादड़ । गृहमेधिन् (वि०) गृहस्थ, श्रावक, व्रती श्रावक । गृहमृग: (पुं०) कुत्ता, श्चान। गृहमेध: (पुं०) गृहस्थ । गृहमेधिन् (पुं०) गृहस्थ । गृहयन्त्रं (नपुं०) गृह उपकरण । गृहवाटिका ( स्त्री०) गृह बगीची । गृहवित्त : (पुं०) गृह स्वामी । गृहशुकः (पुं०) पिंजरे का तोता, पालतू शुक। गृहसंवेशक : (पुं०) व्यवसायिक भवननिर्माता, स्थपति। गृहस्थः (पुं०) गृही, घर पर रहने वाला। (जयो० वृ० १/२२) 'गृह अगारं तत्र तिष्ठन्तीति गृहस्था:' नित्यनैमित्तकानुष्ठानस्थो गृहस्थ:' ( जैन०ल० वृ० ४/८) ३६२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृहिणी गृहस्थता (वि०) गृहस्थ अवस्था । कौमारमत्राधिगमय्यं कालं विद्यानुयोगेन गुरोरथालम् । मिथोऽनुभावात्सहयोगिनीया गृहस्थता स्यादुपयोगिनी या । ( वीरो० १८/३३) सत्त्वषे मैत्री गुणिषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु तदर्तितोदम्। साम्यं विरोधिष्वधिमग्य जीयात् प्रसादयन् बुद्धिमहो निजीयाम्। (वीरो० १८/३३) गृहस्थराज : (पुं०) सुगेही, सद्गृहस्थ । (जयो० १८ / २) गृहस्थवर्ग: (पुं०) गृहस्थ समूह। सत्कारो गृहस्थवर्णस्याद्यं कर्त्तव्यं किं' (दयो० वृ० ५८ ) गृहस्थ - शिरोमणि (पुं०) अरारिराङ्, अगारराज, गृहस्थ का अग्रणी मनुष्य। (जयो० वृ० २/१३९) * मुखिया । गृहस्थाश्रमः (पुं०) गृहस्थजीवन, गृहस्थ स्थान। (जयो० वृ० २ / ६९ ) जयो० दय काव्य में आश्रम के चार भेद किए हैं - १. वर्णि, (ब्रह्मचर्याश्रम) २. मेहि (गृहस्थाश्रम ), ३. वनवासि ( ग्रहस्थाश्रम) वानप्रस्थाश्रम और ४. योगि (सन्याश्रम) (जयो० ११७) को गेहि एवं सदनाश्रम भी कहा जाता है। सत्कन्यंका प्रददता भवता प्रपञ्चे दत्तस्त्रिवर्गसहितः सदना श्रमश्चेत् । (जयो० १२/१४२ ) त्रिवर्गलहितः सदनाश्रमो गृहस्थाश्रम एव। (जयो० वृ० १२/१४२) गृहस्थाचार्य: (पुं०) बृद्धजन, गुरुजन, श्रेष्ठजन। (जयो० १२/९७) गृहागतातिथि: (नपुं०) अभ्यागत, घर में समागत जन। (जयो० वृ० ३ / ११६) गृहाक्ष: (पुं०) झरोखा, खिड़की। गृहाङ्गणं (नपुं०) घर का खुला स्थान, आंगन। (दयो० ६९) गृहाश्रमः (पुं०) गृहस्थाश्रम । गृहस्थान, घर परिकर । बुद्धि विधाने च रमां वृषक्रमे समादधाना विबभौ गृहाश्रमे ' (वीरो० ५/४०) 'ध्यानसिद्धिर्गृहाश्रमे' (सम्य० ११६ ) गृहिन् (वि०) गृहस्थ, गृहस्थाश्रम, 'स्यात् पर्वव्रतधारणा गृहिणां ' (दयो० ७६) गेहमेकमिह भुक्तिभाजनं पुत्र तत्र धनमेव साधनम् । तच्च विश्वजन सौहृदाद् गृहीति त्रिवर्गपरिणामसंग्रही (जयो० २ / २१) गृही, कामश्च धनं च धर्मश्च तेषां कर्मणि तेषु सम्प्रति मिथः । यस्माद् गृहिणोऽखिला अञ्चलाः कर्दमे पङ्के सन्ति। (जयो० वृ० २ / १९ ) गृहीजन: (पुं०) गृहस्था । (सम्य० १ / ३४ ) गृहिणी ( स्त्री० ) [गृह + इनि + ङीप ] गृह स्वामिनी, पत्नी, भार्या, गृहलक्ष्मी। (जयो० वृ० १२ / ९१) गेहिनीतिज्ञ । गृहिणी कौलीन्यादिगुणालंकृता पत्नी । For Private and Personal Use Only

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