Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 377
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौपिका ३६७ ग्रहचिन्तकः गौपिका (स्त्री०) गोपी, ग्वालिन। गौप्तेयः (पुं०) वैश्य पुत्र। गौर (वि०) शुभ्र, धवल, श्वेत। उज्जवल (जयो० १/१०) गौरा (स्त्री०) श्वेत, धवल। गौरपरिणामा (स्त्री०) गौरी। (जयो० वृ० २२/६७) गौरवं (नपुं०) महत्त्व, श्रेष्ठ, उत्तम, आदर, सम्मान। प्रभुत्व (जयो० १/३८) गुणावबोधप्रभव हि गौरवम् 'गौरवमेतिरात्रिः' (वीरो० ९/३२) गौरवकारि (वि०) महत्त्वपूर्ण। (वीरो० ४/५९) गौरवप्रकाशकः (वि०) महत्त्व उद्घाटन करने वाला। (जयो० २/७१) गौरवरूपता (वि०) गुरुत्व, भारीपन, अत्यधिक। (जयो० वृ० २०/७१) गौरववन्दक (वि०) महत्त्व को देने वाली वन्दना। आत्म महत्त्वशाली वन्दना। गौरवाढ्य (वि०) १. गौरव करता हुआ। २. गौ-रवाढ्य-आवाज करता हुआ सांड। गौरवेण महत्तयाढ्यो युक्तस्ततोरवाढ्यो नादयुक्तोऽकर्को गौवृषभ इव सन् भवन्' (जयो० वृ०७/११२) 'मदान्धो गौरवाढ्यः सन्नर्कस्तस्थौ ततोऽमुतः' गौरविणिः (वि०) गौरवशालिनी। (जयो० २८/५८) गौराकः (पुं०) अंग्रेज। सितरुचो गौराङ्गाः 'अंग्रेज' इति नाम्ना प्रसिद्धास्तेषां समाजः समूह इतो भारतदेशान्निति निर्गच्छति स्वदेश गच्छति। (जयो० वृ० १८४८१) गौरिका (स्त्री०) कुमारी कन्या। गौरिलः (पुं०) [गौर+इलच्] सफेद सरसों। गौरी (स्त्री०) [गौर ङीष्] १. गौरी, गौरवर्णा गिरिजा वा। (जयो० १५/९२) २. पार्वती, शिवप्रिया। (जयो०१६/१४) ३. गौरीनामप्सराश्च (जयो० २२/६७) ४. बालस्वभावा (जयो० वृ० १२/३) गौरीकृत (वि०) १. शुक्लकृत, २. पार्वतीपने को प्राप्त। __ गौरीति वा कृतं पार्वतीस्वरूपतः (जयो० १/१५) गौरीकान्तः (पुं०) शिव, गिरीराज। गोरीगुरुः (पुं०) हिमालय पर्वत। गौरीपट्टः (पुं०) श्वेत पट। गौरीपुत्रः (पुं०) कार्तिकेय। गौरीललितं (नपुं०) हरताल। गौरीदृशी (वि०) पार्वती तुल्य। (जयो० ११/८२) गौलक्षणिकः (पुं०) शुभ लक्षण। गौल्मिकः (पुं०) सेना की टुकड़ी। गौशितिक (वि०) सौ गोत्रों का स्वामी। ग्रन्थ् (अक०) टेढ़ा होना, झुकना। ग्रन्थः (पुं०) [ग्रन्थ्+ल्युट्] १. गांठ, गुच्छा, झुण्ड, लच्छा। २. ग्रथित करना, गूथना। ग्रथ्यतेऽनेनास्मादस्मिन्निति वाऽर्थ इति ग्रन्थः''विप्रकीणार्थग्रथनाद् ग्रन्थः' आदूरियाणमुवएसो गंथो' १. बांधना, गूंथना, रचना, बनाना, प्रबन्ध, काव्य (जयो० १/४) ग्रन्थकर्तृ (वि०) रचनाकार, प्रबंधकार, काव्य प्रणेता। (जयो० ७/२३) ग्रन्थकर्ता (वि०) काव्यकार, रचनाकार, काव्य प्रस्तोता। ग्रन्थकर्ताऽऽचार्यस्तेन कृतः सन्निवेशो रचना। (जयो० वृ० १/१७) ग्रन्थकर्तृरुद्देश्यभावः (पुं०) अनुयोग भाव। ग्रन्थकारः (पुं०) रचनाकार, लेखक। ग्रन्थकृत् (पुं०) रचनाकार। ग्रन्थकृति (स्त्री०) अक्षरात्मक काव्यकृति, ग्रन्थरचना। ग्रन्थकुटी (स्त्री०) पुस्तकालय। ग्रन्थविस्तरः (पुं०) विस्तारशैली भाष्य पद्धति। ग्रन्थसन्धिः (स्त्री०) पुस्तक अंश, रचना अध्याय। ग्रन्थारम्भः (पुं०) परिग्रह व्यापार, संचय प्रवृत्ति की क्रिया। ग्रन्थारम्भमये गेहे कं लोकं हे महेङ्गिता (जयो० १/११०) ग्रन्थिः (स्त्री०) १. पर्व, सन्धि, पोर। 'पर्वेति अवयवसन्धिम्रन्धिर्वा' (जयो० वृ०३/४०) २. गांठ, गुच्छा, समूह। ३. राग-द्वेष परिणाम। ग्रन्थिकः (पुं०) दैवज्ञ, ज्योतिषी। ग्रन्थित (वि०) सन्धियुक्त। ग्रन्थिन् (पुं०) ग्रन्थ पढ़ने वाला ज्ञानी, पण्डित। ग्रन्थिमा (वि०) ग्रथन किया हुआ, गूथा गया। ग्रन्थिल (वि०) जटिल, कठोर, गांठ युक्त। ग्रस् (अक०) निगलना, ग्रहण करना, भक्षण करना। ग्रसनं (नपुं०) निगलना, भक्षण करना, गले उतारना। ग्रस्त (भू०क०कृ०) निगला हुआ, लेना, समेटना, थमना, स्वीकार करना, धारण करना। ग्रहः (पुं०) पकड़ना, ग्रहण करना। ग्रहकल्लोलः (पुं०) राहु। ग्रहपतिः (स्त्री०) ग्रहों की अवस्था। चन्तकः (पुं०) ज्योतिषी, दैवज्ञ, नैमित्तक। For Private and Personal Use Only

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