Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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गोधनं
३६५
गोमूत्रिका
गोधनं (पुं०) पर्वत।
गोपालकगृहं (नपुं०) गोपधाम। गोधिः (पुं) घड़याल।
गोपालपतिः (पुं०) ग्वाला। (दयो० ६१) गोधिका (स्त्री०) छिपकली।
गोपालिका (स्त्री०) गोपी, ग्वालिन, गायों को पालने वाली, गोधूमः (पुं०) १. गेहू, २. संतरा।
गोपी। गोधूलि (स्त्री०) सन्ध्या समय।
गोपिका (स्त्री०) ग्वालिन। (दयो०६५) गोधेन (स्त्री०) दूध देने वाली गाय।
गोपीतः (पुं०) खंजन पक्षी। गोधः (पु०) पर्वत. गिरि।
गोपुच्छं (नपुं०) गाय की पूंछ। गोनन्दी (स्त्रो०) सारस पक्षी। (मादा)
गोपुटिकं (नपुं०) नन्दी मस्तक। गोनसः (पुं०) सर्प विशेष।
गोपुत्रः (पुं०) वत्स, बछड़ा। गोनाथः (पुं०) १. सांड, बलिवर्द, २. ग्वाला, गोपाल। गोपुरं (नपुं०) ०नगर प्रवेश द्वार, मुख्य द्वार, पुरद्वार'। (जयो० गोनिवहः (पुं०) गो समूह। (समु० २/१९) अस्मत्क्रमौ ३/१०७) धैनुक। (जयो० ३/१०७)
गोनिवहार्जनाय, भवेत् पयः पातुमिनाभ्युपाय:। (समु० १/१९) गोपुर-मण्डलं (नपुं०) पुरद्वाराग्रभाग, नगर प्रवेश द्वार का गोपः (पुं०) १. गोप, गोपाल। (दयो० ५५) २. गुप्त, रक्षक। | मुख्य हिस्सा। ३. प्रभा, कान्ति, दीप्ति।
गोपुरीष (नपुं०) गोबर। गोपतिः (पुं०) १. गोपाल, ग्वाला। बैल हांकने वाला। २. सूर्य। गोप्रकाण्डं (नपुं०) सांड, बलिवर्द।
'गवां किरणानां पशूनां वा पतिरेप सूर्यः' (जयो० वृ० गोप्रचारः (पुं०) गोचरभूमि, चरगाहा क्षेत्र। ८/७) चक्रवर्ती-मृदुलदुग्धकलाक्षरिणी स्वतः, किमिति गोप्रवेशः (पुं०) गोधूलि बेला। गायों के लौटने का समय। गोपतिगौरुदिता यतः। (जयो० ९/७१) गोपतेश्चक्रवतिनो गोब्ल (स्त्री०) [गुप्+तृच्] संरक्षक। गौरेव गौर्वाणीरूपाः धेनु,' (जयो० वृ० ९/७१)
गोप्तरि (वि०) संरक्षक, प्रतिपालक। नि:साधनस्य चार्हति गोपतुजः (पुं०) ग्वाले का लड़का। (सुद०४/१९) आकर्पताब्जं गोप्तरि सत्यं निर्व्यसना भूस्ते। (जयो० ८/९३)
च सहनपत्रं तेनेकदा गोपतुजैकमत्र। (सुद० १/१९) गोबरः (पुं०) गौतम गणधर का स्थान। (वीरो० १४/४) गोपनिलयः (नपुं०) आभीर गृह, अहीरों का घर। 'गोपानां गोभृत् (पुं०) पर्वत, गिरि। निलयान गृहान्' (जयो० वृ० २१/५०)
गोभक्षिका (स्त्री०) गोबर मक्खी। गोपपतिः (पुं०) ग्वाला, धेनुरक्षक'गोपपतिनृपवरो जयकुमारः। गोमंडलं (नपुं०) गो समूह, व्रज मंडल। (वीरो० १९/५९) (जयो० ३/१०७)
गोमतल्लिका (स्त्री०) उत्तम गाय, सीधी गाय। गोपपशुः (पू) यज्ञीय गाय।
गोमथः (पुं०) ग्वाला। गोपधामः (पु.) गोपालक गृह। (जयो० १२/११)
गोमयः (पुं०) गोबर, गोपुरीष। (जयो० १७/५७) गोमयेन गोपबधूः (स्त्री०) ग्वालिन।
खलु वेदिलिम्पन प्रायकर्म लभतामितो जनः। (जयो० गोपबलकः (पुं०) ग्वालों के लड़के।
२/७८) गोपयोषितं (नपुं०) गोपांगनाओं के मुख। गोपयोषितां गोपीनां | गोमयोपित (वि०) गोबर से लिपि हुई। गोमयेन धेनुशकृतोपहितवदनं मुखं तत्खलु प्रस्फुटाः' (जयो० २१/५४)
माच्छादितमास्यं मुखं यस्याः सा पक्षे गौश्चन्द्रमास्तस्य गोपवरः (वि०) गोपों में श्रेष्ठ। 'करं पुनर्गापवरं स आर्यः' मया लक्ष्या, उपहितमास्यं यस्या सा। (जयो० वृ० १०/७३) (सुद० ४/२२)
गोमांस (नपुं०) गाय का मांस। (वीरो० १५/५७) गोपाङ्कित् (वि०) वाक्य परम्परा। (वीरो० ११/१)
गोमायुः (पुं०) गीदड़, मेंढक! (दयो० ९६) गोपायनं (नपुं०) [गुप्त आय्+क्त] प्ररक्षित, सुरक्षित। गोमुखं (नपुं०) वाद्य यन्त्र। गोपाल (पुं०) ग्वाला। (दयो० ५३)
गोमूत्रं (नपुं०) गाय का मूत्र। गोपालक (वि.) गायों का पालन करने वाला। (जयो० गोमूत्रिका (स्त्री०) छन्द विशेष। रमयन् गमयत्वेष वाङ्मये १२/११२) गवीश्वर-जयो० वृ० २५/६३)
समयं मनः। न मनागनयं द्वेषधाम वा सभयं जनः। (वीरो०
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