________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उपमानुप्रासालंकारः
२१३
उपयोगशुद्धिः
उपमानुप्रासालंकारः (पुं०) उपमा और अनुप्रास अलंकार | उपयाचित (वि०) [उप+याच्+क्त] प्रार्थित, निवेदक, प्रार्थना (जयो० २८/८०)
करने वाला, अभीष्ट सिद्धि का इच्छुक। उपमा संविलितोऽर्थान्तरन्यासः (पुं०) उपमा से युक्त अर्थान्तर । उपयाचितक (वि०) निवेदन करने वाला, निवेदक, याचका
न्यास 'संश्रयेत् कथमैकं साऽवस्थातुं स्थानभूषणा' निराश्रया उपयाजः (पुं०) [उप+यज्+घञ्] यज्ञ शब्द, यज्ञमंत्र, यज्ञतन्त्र। न शोभन्ते वनिता हि लता इव। अर्थात् जिसका अनुकूल उपवानं (नपुं०) [उप+या+ल्युट्] पहुंचना, समीप जाना, पति भूषण है वह सुलोचना अपने आश्रय रूप में किस निकटस्थ होना। अद्वितीय पति का सहारा ले? कारण स्त्रिया लताओं की उपयुक्त ( भू० क० कृ०) १. उचित, योग्य, सही, समीचीन. तरह आश्रय विहीन होकर कभी सुशोभित नहीं हुआ श्रेष्ठ, उत्तम। उपयोगी (जयो० २/४४) 'कमेक-उपयुक्तपति करती है। 'वनिता हि लता इव' में उपमा के साथ अन्य संश्रयेत्' (जयो० वृ० ३/६५) अर्थ भी है।
उपयुक्तकारिन् (वि०) विचारशील वाला, उचित कार्य करने उपमाश्लेष: (पं०) उपमालङ्कार और श्लेष दोनों ही एक साथ। वाला। (जयो० वृ० १२/१७) इक्षप्टिरिवैपाऽस्ति प्रतिपर्वरसोदया।
उपयुक्तपतिः (पुं) उत्तमपति, मनोनुकूल पति। (जयो० वृ० ३/६५) अङ्गान्यनगरम्याणि क्वास्या यान्तूपमां ततः।। (जयो० उपयुक्तिन् (वि०) ०मनोनुकूल, समीचीनता से युक्त। (सुद० ३/४०)
२/४२) कः सौम्यमूर्तिति जयेति सूक्ती शुक्ती शुभे उपमिति (स्त्री०) [उप+मा+क्तिन्] सादृश्यता, समानता, त्वत्कवलोपयुक्ती (जयो० ५/१०२)
एकरूपता, तुल्यता। उपमान के द्वारा निगमित उपसंहार उपयोक्त्री (वि०) उपयोग वाली, स्थित होने वाली। 'ऋषयोऽस्मि उपमालङ्कार।
शयोभयोपयोक्त्री' (जयो० १२/३) उपमेय (सं०कृ०) [उप+मा+यत्] समानता करने योग्य, उपयुज् (सक०) १. सुनना. श्रवण करना। २. बोलना, कहना।
सादृश्यता योग्य, तुल्यता योग्य, तुलनीय। सुकृतैकपयोरशेराशेव सत्यमेवोपयुज्जाना सन्तोषामृतधारिणी। (सुद० ४/३३) सुरसा तया। पदयोऽपि चेज्जितः पद्भ्यां पल्लवे पत्रता उपयुज्य (सं०१०) सुनकर, श्रवणकर। 'एतदुक्तमुपयुज्य तदाथ' कुतः। (जयो० ३/४४) इसमें सुलोचना उपमेय है, वह (जयो० ४/४१) सुरसा है इसलिए पुण्य रूप समुद्र की वेला की तरह | उपयोगः (पुं०) [उप+युज्+घञ्] १. सेवन करना, प्रयोग सुन्दर है। उपमान समुद्र है।
करना, काम लेना। २. सम्पर्क, ३. आसन्नता, ४. उपयन् (भूतकालिक प्रयोग) होना, प्राप्त होना। 'सोऽव्येवं संयोग-(सुद० १०२) 'यतो यत्रोपयोगस्तत्रैव दातव्यम्' वचनेन कम्पमुपयन्' (सुद० ७/६७)
(जयो० १२/१७) 'किन्तुउपयोगो नहि शुद्ध एव (सम्य० उपन्यतृ (पुं०) [उप+यम्। तृच] पति।
१०९) 'उपयोगस्तथाशुद्धः स तत्रैवास्तु वस्तुत:।' (सम्य० उपयन्त्र (नपुं०) छोटा यन्त्र, उपकरण।
१४२) ५. परिणाम विशेष, भावविशेषः, आत्मपरिणाम। उपयमः (पुं०) [उप-यम्+अप] विवाह, पाणिग्रहण।
रूपादि६. विषयग्रहण-व्यापार। ७. आत्मा का चैतन्यानुवर्ती उपयमनं (नपुं०) [उप+यम् ल्युट्] १. पाणिग्रहण, विवाह। २. परिणाम। 'प्रतीत्योत्पद्यमान: आत्मनः परिणाम उपयोगः। प्रतिबन्ध, रोक, अनुशासन।
(धव० १/२३६) 'युज्यन्त इति योगाः, योजनानि वा जीव उपया (अक०) प्राप्त होना, हो जाना, उपलब्ध होना। 'यो व्यापार रूपाणि योगा अभिधीयन्ते' उपयुज्यन्त इति उपयोगाः
मदित्वमुपयाति स धन्यो नास्ति' (जयो०२/१२९) 'भूत्वा जीव-विज्ञानरूपाः' (पं०सं०१/३) सन्तापमुपयान्त्यमी' (सुद० पृ० १२७) 'मांसमुपयन्मृत्यु उपयोग-भेदः (पुं०) उपयोग के भेद 'उवओगो णाण-दसणं समापद्यते' (सुद० १२७)
भणिदो। (प्रव०सं०२/६२) उपयाचक (वि०) [उप+याच्+ण्वुल] प्रार्थी, भिक्षुक, आशार्थी, उपयोग-वर्गणा (स्त्री०) उपयोग/सम्प्रयोग का विकल्प, उपयोग याचक, मांगने वाला।
के स्थान। उपयाचनं (नपुं०) [उप+ याच्+ ल्युट्] निवेदन, प्रतिवेदन, प्रार्थना, | उपयोगशुद्धिः (स्त्री०) चित्त की सावधानी। 'प्राणिपरिहरणमांगना।
प्रणिधान-परायणत्वम्' (भ० आ० टी० ११९)
For Private and Personal Use Only