Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 336
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षणिक ३२६ क्षपक परिहारकोऽब्द: क्षणास्थितेस्तद्विनिवेदिशब्द:। (जयो० क्षत्रियः (पुं०) [क्षत्रे राष्ट्रे साधु तस्यापत्यं जातौ वा] शास्त्रोपजीवि, २६/८९) कल्याणकारक प्रवृत्ति युक्त, शक्ति संपन्न। 'अस्तु क्षणिक (वि०) [क्षण+ठन्] क्षणस्थायी, चिरकाल तक नहीं सर्वजनशर्मकारणं जीविका भुजभुवोऽसिधारकम्। निर्बलस्य रहने वाला। (जयो० वृ० ६/७५) बलिना विदारणमन्यथा सहजकं सुधारणम्।। (जयो० २/११२) क्षणिकनर्मन् (नपुं०) क्षणिक विनोद। क्षणिकनर्मणि निजयशोमणि 'क्षतात् त्रायन्ते ते क्षत्राः परिपरित्राणकरा क्षत्रिया' (वीरो० मसुलभं च जहातु। (सुद०८९) १/३९) 'परित्राणाय बाहुभ्यां सम्मदाद्रणपरैहिं निघृणैः क्षणिकवादः (पुं०) सौगत दर्शन का एक वाद, एक विचारधारा, प्रस्फुरिदिवगतसङ्गरव्रणैः। सुष्ठु-शौर्य रससंम्मितैस्तदा रेजिरे जिसमें वस्तु को प्रतिक्षण बदलने वाला माना जाता है। परिधृता उरश्छदाः। (जयो० ७/९४) 'क्षणिकं नाम सुगतमतं' (जयो० ५/४२) यतमानान्दृढ़ाशयान्। क्षत्रिया इति संज्ञात: निजगाद महाशयः।। क्षणिकत्व (वि०) क्षण चमत्कारित्व, 'दृष्टिरेव लभते क्षणिकत्वम्' (हित०सं०८) स्वीय-बाहुबलगर्विता भुजास्फोटनेन (जयो० ५/४२) परिवर्तिस्वजाः। सम्बभूवुरधियो: सदोजसो बद्धसन्नहनका क्षणिन् (वि०) [क्षण इनि] अवकाश रखने वाला। २. क्षणस्थायी। किलकैशः।। (जयो० ७/९१) क्षणोत्तरः (पुं०) क्षणानन्तर। (वीरो० ५/२) 'शस्त्रोपजीविनः क्षत्रिया:। (जयो० २/१११) क्षणोदभवः (पुं०) क्षण में उत्पन्न, काल युक्ता (जयो० क्षत्रिय-जीविका (स्त्री०) क्षत्रियों की आजीविका। 'क्षत्रियस्य २/७९) असिधारणं जीविकाऽस्ति।' (जयो० वृ०२/११२) क्षत (वि०) [क्षण क्त] १. घायल, क्षति ग्रस्त, पतित। २. | क्षत्रियता (वि०) क्षत्रियपना। चतुष्पदेषूत खगेष्वगेषु वदन्नहो चोट ग्रस्त, काटा गया। ३. व्रण (जयो० ६/९३) क्षत्रियान्धमेषु। विकल्पनामेव दधत्तदादिमसौ निराधार क्षतकासः (पुं०) खांसी, क्वास। वचोऽभिवादी।। (वीरो० १७/२७) क्षतजं (नपुं०) रुधिर, रक्त, पीप। (जयो० ८/९) क्षत्रिय-बुद्धिः (स्त्री०) क्षत्रिय बुद्धि वाले, महावीर, अन्तिम क्षतयोनिः (स्त्री०) कौमार्यच्युता तीर्थंकर। (वीरो० १४/४७) क्षप्त-विक्षत (वि.) घाव जन्य, क्षतिग्रस्त, चोट जन्य। क्षत्रियवर्णः (पुं०) क्षत्रिय वर्ण। क्षतवृत्तिः (स्त्री०) दरिद्रता, जीविका से रहित। 'धवलो यशसेत्यनेकवर्णः क्षत्रियवर्णे किलावतीर्णः' (समु० क्षतव्रत (वि०) व्रत व्युत, व्रत में अतिचार लगाने वाला। ६/४१) क्षतशून्य (वि०) प्रतिमा हानि। (जयो० ५/९३) क्षत्रियाणी (स्त्री०) [क्षत्रिय ङीष] क्षत्रिय जाति की स्त्री। क्षतान्वित (वि०) व्रण युक्त। (जयो० ६/९३) क्षत्रियी (स्त्री०) [क्षत्रिय ङीष्] क्षत्रियाणी, क्षत्रिय नारी। क्षतिः (स्त्री०) [क्षण, क्तिन्न घाव, चोट, बाधा, हानि, क्षत्रियेश्वर-वरः (पुं०) क्षत्रिय राजा। 'यः क्षत्रियेश्वर-वर ०हास, न्यूनता। क्षय 'सम्यक्त्वमाद्यक्षतितो विभाति'। परिधारणीयः। (वीरो० २२/२६) जैन धर्म प्रवर्तक तीर्थंकर (सम्य० १३२) क्षत्रिय थे। क्षत्रिय दूसरों की दुःख से रक्षा करते थे। ऐसा क्षत्तृ (पुं०) [क्षद् + तृच्] १. मूर्तिकार द्वारपाल, सारथि। २. क्षत्रिय धर्म व्यापारी वैश्यवर्ग के हाथों में आया। जैन धर्म दासी पुत्र। प्राणिमात्र का हितैषीधर्म है, इसे लोकधर्म या राजधर्म क्षत्रः (पुं०) [क्षण क्विप्] ०अग्रगण्य, अधिराज्य, शक्ति, होना चाहिए था, पर वह एक जाति या सम्प्रदाय वालों प्रभुता, सामर्थ्य। २. नक्षत्र-(जयो० वृ०५/२७) ३. क्षत्र-जो का धर्म माना जा रहा है, यह बड़े दु:ख को बात है। तीर्थंकर भगवान के ऊपर छाते के रूप में सुशोभित होते क्षत (वि०) प्रशान्त, सहिष्णु, विनम्र, विनीत, क्षमाशील। हैं। तीन क्षत्र युक्त सिंहासन। क्षप् (अक०) १. उपासना करना, २. संयमी होना, आराधना क्षत्रत्राणकः (पुं०) ढाल, रक्षा कवच! (जयो० २७/२७) करना। ३. (सक०) क्षय करना-'इत्येव मोहं क्षपयन्नशेष' क्षवत्राणकारः (पुं०) रक्षा कवच, छाल, छाता। (भक्ति० ३१) क्षत्रप (वि०) क्षत्रियों का शिरोमणि। (जयो० २२/३३) | क्षपक (वि०) चरित्र मोहनीय को क्षय करने वाले साधु। १. For Private and Personal Use Only

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