Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 365
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुजाफलं ३५५ गुणगीता ऊपर बिन्दु से काला और शेष लाल वर्ण वाला। इसका * शौर्यादि गुण। (जयो० १/१०) वजन २-१/१५ ग्रेन १/४ ग्राम बराबर होता है। (जयो० * सूत्र, तन्तु धागा। (जयो० १/१०) २१/४८) भिल्लन्योज्झनलम्भने स सुमणिर्गुञ्जापि गुञ्जात्र * गुणोदयकाव्य आचार्य ज्ञानसागर रचित (जयो० १/२) भो! (मुनि० १४) 'परं गुञ्जा इवाभान्ति' (जयो० २/१४६) * प्रशंसा-'गुण प्रशंसा तामित' (जयो० १/९५) 'गुणानां गुञ्जाफलं (नपुं०) काञ्जीफल, 'काञ्जीफलयत् गुञ्जाफलवत्' शीलादीनां वृद्धिर्यथोत्तरमुत्कर्षप्राप्तिः' (जयो० वृ० १/९५) (जयो० वृ०६/३५) * सौन्दर्य-'गुणेन तस्या मृदुना निबद्धः'। (जयो० १/७१) गुञ्जारित (वि०) गुंजार युक्त। * क्षमादि विशेष (जयो० वृ० १/३२) गुञ्जिका (स्त्री०) गुञ्जाफल। घुघली, गुमुची। * शुभ्र गुण शुभैर्गुणैरर्जुन एव नान्य (जयो० १/१८) गुञ्जित (भू०क०कृ) [गुञ्ज+क्त] गुनगुनाना, मंद शब्द करना। * चाप, प्रत्यंचा -'भुवि महागुण-मार्गण-शालिना' (जयो० गुटिका (स्त्री०) [गु+टिक्+टाप्] गोली, गोला, पिण्ड। १/९८) गुणस्य ज्याया अधिकारेण (जयो० वृ० ६/६८) गुटी (स्त्री०) गुटिका, गोली। * गुण-रज्जु, रस्सी, सूत्र, धागा। (जयो० वृ० १/३२) गुडः (पुं०) [ गुड+क] शीरा, राब, इक्षु रस से निर्मित गुड़। * गुण-वैशेषिक मत में मान्य (जयो० वृ० २६/३२) येषां गुडाज्जातेव शर्करा (वीरो० २८/७) फाणि, मधुरं (जयो० मतेनाथ गुणः स्वधाम्ना। १२/७) * गुण-विषयसेवन-गुणो विषयसेवनं' (जयो० २/६८) गुडकः (पुं०) [गुड कन्] ०भेली, पिण्ड, गुड की पारी, * गुण-शौर्यादि (जयो० वृ० १/३१) परिया ०गुड से तैयार औषधि। * गुण-सन्धि विशेष। 'गुण एप् अदेङ्' (जयो० वृ० गुडपीठी (स्त्री०) गुड भेली। (वीरो० ५/वृ० ३०३) १/३) गुडलं (नपुं०) गुड से निर्मित। * द्रव्याश्रय-द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणा (सम्य० ५/४०) गडा (स्त्री०) [गुड टाप] कपास का पौधा। १. बटी. गोली। * वर्तना-काल-परिवर्तन (त० सू० ५/३९) गुडाका (स्त्री०) [गुड आ कै+क+टाप्] गुडयति संकोचयति * सामान्य-गुण का नाम सामान्य। (वृ० ८४) गुणाः देहेन्द्रियादीनि इति गुडः तमाकति प्रकाशयति ०तन्द्रा, शक्तिविशेषाः (त०भा० ५/३७) निन्द्रा, आलस्य। * सरिस-सदृश परिणाम-'सरिसो जो परिणामो अणाइणिहणे गुडागुडायनं (नपुं०) खांशी। हवे गुणो सो हि' (कार्ति० २४१) गुडेरः (पुं०) भेली, पिण्ड, परिया। गुणव (वि०) गुणन करने वाला। गुण (सक०) गुणा करना, उपदेश देना, निमंत्रण करना। गुणकार (वि०) गुणोत्पादक। (जयो० १६/८२) हितकर, गुणः (पुं०) १. स्वभाव, प्रकृति, प्रभाव, (जयो० १/२) २. लाभदायक, यथेष्ठ। परिणाम, फल, परिणति। (सुद० २/२) 'जिह्वा गुणि गुणकारिणी (वि०) गुणवती, गुणोत्पादिका, हितकारी, लाभकारी। गुणेषु सञ्चरञ्चेतसा' (जयो० ३/२) 'गुणिनां पूज्यपुरुषाणां (जयो० १६/८२) गुणेषु शीलेषु जिह्वया रसनया कृत्वा सञ्चरन्' (जयो० वृ० गुणकारित्व (वि०) गुणकारी, गुणज्ञता प्राप्त। ३/२) कुतोऽत्र भो रक्त-विरक्तनामभेदं गुणे वस्तुतयेतियामः। गुणकीर्तनं (नपुं०) गुण स्तवन। (जयो० ६/७०) (सम्य० १२३) गुणगत (वि०) गुणों को प्राप्त। (जयो० ६/३२) * रत्नत्रयगुण-ज्ञान, दर्शन, चारित्र। गुणगह्वरः (पुं०) गुणों की गम्भीरता। * पुद्गलगुण रूप, रस, गन्ध वर्णवंतः। (सम्य० ११) गुणगह्वरी (वि०) गुण गरिष्ठता, गुण की विशेषता। (सुद० * वस्तुगतध्रुवांश-'ध्रुवांशमाख्यान्ति गुणेति नाम्ना' (वीरो० ११७) रविप्रतीपश्च निशासु दीपः शमी स जीयाद् ७/१८) गुणगह्वरीपः। (सुद० ९/१) * स्वभाव, प्रकृति-'भूरञ्जनो यस्य गुणश्च देवा' (जयो० । गुणगानं (नपुं०) गुणस्तुति, गुणकीर्तन, गुण प्रशंसा। (सुद० १/३७) * सत्कर्म- (जयो० ११/१०) गुणगीता (स्त्री०) गुण परिपूर्णा, गुणवर्णन। 'गुणानां गीता ७०) For Private and Personal Use Only

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