Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 340
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षीण-कषायः ३३० का अर्थ नष्ट हो जाना भी है। (सम्य० ११५) 'क्षीणा | क्षीरधात्री (स्त्री०) ०धाय, दाई मां, दूध पिलाने वाली। क्षीरं अभावनापन्नाः' (जैन०ल०३९२) धारयति दधाति या सा क्षीरधात्री-स्तनपायिनी-(मूला० वृ० अस्तमित-'क्षीणा क्षापास्तमितमप्युततारकाभिः।' (जयो० ६/२८) १८/२१) क्षीरधिः (पुं०) दुग्धसागर, अशक्त-'क्षीणं वीक्ष्य विजेतुम्भुपगतः स्फीतो नरत्वं प्रति' क्षीरनिधिः (पुं०) दुग्धसागर। सागर, नीरधि, ०समुद्र। (वीरो० २२/३३) क्षीरनीरं (नपुं०) प्रगाढ़ता, एकरूपता, गाढालिंगन। क्षीण-कषायः (पुं०) कषाय रहित, सभी प्रकार के मोह का क्षीरपः (पुं०) शिशु, बच्चा, दूध पीने वाला बच्चा। व्यदेश। (सम्य० १४९) 'क्षीणा कषाया तेषां ते क्षीणकषायाः। क्षीरभाति (वि०) दुग्ध से भरे हुए। 'वत्सेन क्षीरभरितस्तनताद्रव्यकर्माणां कषाय-वेदनीयानां विनाशात्तन्मूला अपि मुद्यानमालेव वसन्तेन प्रफुल्लभावं' (दयो० ५४) भावकषायाः प्रलयमुपगता इति क्षीणकषाया, इति भण्यन्ते' क्षीरवारिः (पुं०) दुग्ध समुद्र। (भ०आ०टी० २७) मोह का अत्यन्त क्षय-द्वादश क्षीरविकृतिः (स्त्री०) जमा हुआ दूध। गुणस्थानवर्ती-'उपशमश्रेणिविलक्षणेन क्षपक श्रेणिमार्गेण क्षीरवृक्षः (पुं०) [पुं०] बड़, गूलर, ऊमर, कठूमर, पाकर निष्कषाय-शुद्धात्म-भावना-बलेन क्षीणकषायाः मधूक वृक्षा द्वादश-गुणस्थानवर्तिनो भवन्तिा' (वृहद, द्रव्य०सं०७३) क्षीरशरः (पुं०) मलाई, दूध की मलाई। क्षीणता (वि०) कृशता, शक्तिहीन। 'परोपकारः परस्मायनुग्रह क्षीरसमुद्र (पुं०) क्षीर सागर। (जयो० १/८, ९) बुद्धिः सर्वं उत्तरोत्तरं क्षीणतामवाप्तः' (वीरो० १/३३) क्षीरसारः (पुं०) मक्खन। क्षीणधन (वि०) निर्धन, गरीब, धन रहित, रंक। क्षीरसवी (स्त्री०) एक ऋद्धि विशेष, जिस ऋद्धि के प्रभाव क्षीणपाप (वि०) पाप से विमुक्त। से आहार दुग्ध परिणत हो जाते हैं। अथवा जिसके प्रभाव क्षीणपुण्य (वि०) पुण्य का अभाव। से मुनि वचन सुनते ही मनुष्य या तिर्यंच के दु:ख शान्त क्षीणमोह (वि०) मोह क्षय को प्राप्त। पृथक्त्वाय वितर्कस्तु यः हो जाते हैं। सुखोत्पादक वचन। (जयो० व१०१९/८०) श्रेणावात्मरागयोः। क्षीणमोहपदे तस्मैएकत्वायाधुनात्मः।। 'णमो खीरसवीणं तु गण्डमालादिदारणम्। (जयो० १९७०) (सम्य० १४८) मोहस्य तु क्षये जाते क्षीणमोहं प्रचक्षते। क्षीणमोह नामक गुणस्थान-'स मोहं पातयामास समोऽहं क्षीरादः (पुं०) शिशु, दूध पीता बच्चा। जिनपैरिति। अनुभूतात्म-सार्मथ्योऽय्यनु भूतदयाश्रयः।। क्षीराब्धिः (पु०) दुग्धसागर, क्षीरनिधि, उदधि। आत्म-सामर्थ्य येन स मोह। (जयो० २८/१९) क्षीरानं (नपुं०) खीर, दूध एवं चावल से बना तरल पदार्थ। पातयामास क्षीणमोहनामक गुणस्थानं प्राप्तवानिति' (जयो० क्षीरान्नस्थाली (स्त्री०) खीर की थाली। 'तावतेकत्र स्थाने वृ० २८/१९) ___ क्षीरान्नस्थाली सम्पन्ना सती दृष्टिपथमायसा। (दयो० १७) क्षीबता (वि०) उन्मत्तता, पागलपन। (जयो० ७/१७) क्षीरिका (स्त्री०) [क्षीर+ठन्। टाप्] दूध से निर्मित पदार्थ। क्षीरः (पुं०) [घस्यते अद्यसे घस्+ईरन्] दूध, दुग्ध (जयो० क्षीरिन् (वि०) [क्षीर+ इनि] दूध देने वाली। ३/७) क्षीरोदपूरः (पुं०) क्षीर सागर का पूर। (सुद० १२/११) क्षीरं (नपुं०) दुग्ध, दूध। क्षीव (अक०) मतवाला होना, उन्मत्त होना। क्षीरजः (पुं०) चन्द्र, शशि। क्षीव (वि०) [क्षीव्+क्त] उत्तेजित, मदोन्मत्त। क्षीरजा (स्त्री०) लक्ष्मी। क्षु (सक०) क्षींकना, खांसना। (क्षौति) क्षीरनीरं (नपुं०) गुण-दोष। पानी और दूध। 'क्षीर-नीर क्षुज्जय (वि०) भूख जीतने वाला। शब्दाभ्यामत्र गुण-दोषौ गृह्येते।' (जयो० वृ० ३/७) क्षुण्ण (भू०क०कृ०) [क्षुद्+क्त] कूटा हुआ, कुचला हुआ। क्षीरतनयः (पुं०) चन्द्र। क्षुत् (नपुं०) [क्षुद+क्विप्] १. छींक। २. छुधा, ०क्षुधा, भूख। क्षीरतनया (स्त्री०) लक्ष्मी। (त०वा०९/९) क्षीरदुमः (पुं०) अश्वत्थवृक्ष। क्षुतं (नपुं०) [क्षु+ क्त] छींक। For Private and Personal Use Only

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