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क्षेत्रकरः
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क्षेत्रस्तवः
क्षेत्रकरः (पुं०) कृषक, किसान, खेतिहर।
क्षेत्रप्रमाणं (नपुं०) अंगुलादि का अवगाहन। 'अंगुलादि ओगा-- क्षेत्र-कायोत्सर्गः (पुं०) कायोत्सर्ग सेवित क्षेत्र, दोषों से रहित । हणाओ खेत्तपमाणं प्रमीयन्ते अवगाह्यन्ते अनेन शेषद्रव्याणि क्षेत्र।
इति अस्य प्रमाणत्वसिद्धः' (जय० ध० १/३९) क्षेत्रकारक (वि०) क्षेत्र विशेष में करने वाला।
क्षेत्रफलं (नपुं०) गुणन फल, लम्बाई-चौड़ाई का प्रमाण। क्षेत्रकृत (वि०) क्षेत्र में करने योग्य, क्षेत्र में की जाने वाली। विवक्षित क्षेत्र की परिधि को उसके विस्तार के चतुर्थ भाग क्षेत्रगणितं (नपुं०) रेखागणित, ज्यामिति।
से गुणित करने पर जे प्रमाण आता है, वह क्षेत्रफल क्षेत्रगत (वि०) क्षेत्र में जाने वाला।
कहलाता है। 'वासो तिगुणो परिही वास-चउत्थाहदो दु क्षेत्रचतुर्विंशति (स्त्री०) भरतादि चौबीस क्षेत्र।
खेत्तफलं। (त्रिलोकसार १७) क्षेत्रचरणं (नपुं०) क्षेत्र का आचरण।
क्षेत्रभक्तिः (स्त्री०) क्षेत्र का विभाजन, खेत का सीमांकन। क्षेत्रचारः (पुं०) क्षेत्र गमन। 'क्षेत्रे चारः क्रियते यावद्वा क्षेत्रं । क्षेत्रभूमिः (स्त्री०) धान्य उपज की भूमि, योग्य भूमि, उर्वर चर्यते स क्षेत्राचारः। (जैन०ल० ३९६)
भूमि। क्षेत्रजात (वि०) क्षेत्र में उत्पन्न।
क्षेत्रमङ्गलं (नपुं०) उत्तमोत्तम गुणों का स्थान, केवलज्ञान, क्षेत्रज्ञ (वि०) क्षेत्र स्वरूप को जानने वाला, आत्म स्वरूप का निर्वाणस्थान।
ज्ञाता। क्षेत्रं स्वरूपं जानातीति क्षेत्रज्ञः।' (धव० १/१२०) क्षेत्रमासः (पुं०) क्षेत्र की प्रधानता वाला मास। क्षेत्रज्ञानं (नपुं०) विवेक, प्रदेश/स्थान ज्ञान।
क्षेत्ररक्षा (स्त्री०) खेत की रक्षा। (वीरो० २/१३) क्षेत्रत (वि०) प्रदेशों में अवगाहित।
क्षेत्रलोकः (पुं०) अनन्त प्रदेश का स्थान। उर्ध्व, अध् और क्षेत्रधर्म (नपुं०) आकाश रूप क्षेत्र का आत्म स्वभाव।
तिर्यक् लोक का स्थान। क्षेत्रपतिः (पुं०) भू स्वामी, भूमिधर। (दयो० ४७)
क्षेत्रवर्गणा (स्त्री०) क्षेत्र के विकल्प। क्षेत्रपदं (नपुं०) पवित्र स्थान, उचित पद, उत्तम मार्ग। क्षेत्रविद् (वि०) खेत का विशेषज्ञ, कृषक, किसान। १. क्षेत्र क्षेत्रपरावर्तः (पुं०) क्षेत्र परावर्तन, क्षेत्र परिवर्तन।
मर्मज्ञ, विशेषज्ञ। क्षेत्रपरार्वनं (नपुं०) क्षेत्र परावर्त, समस्त लोक को अपना क्षेत्र क्षेत्रविमोक्षः (पुं०) विमोक्ष युक्त स्थान। जिस क्षेत्र में मुक्ति कर लेना।
को प्राप्त किया गया। क्षेत्रपल्योपमं (नपुं०) काल विशेष।
क्षेत्रवृद्धिः (स्त्री०) सीमातिक्रमण, अधिक क्षेत्र को स्थान क्षेत्रपाल: (पुं०) देवों की एक जाति प्रबन्धकर्ता।
बनाना। 'अभिगृहीताया दिशो लोभावेशादाधिक्याभिसम्बन्धः क्षेत्रपुरुषः (पुं०) क्षेत्र का आश्रय लेने वाला व्यक्ति। । क्षेत्रवृद्धिः। (तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक ७/३०) क्षेत्रपूजा (स्त्री०) पूजनीय स्थान, तीर्थंकर जन्म, दीक्षा, कैवल्यादि | क्षेत्रव्यतिरेकः (पुं०) व्याप्त क्षेत्र में स्थित नहीं होना। अन्य का स्थान/पवित्र स्थान की पूजा।
क्षेत्र में स्थित होना। क्षेत्रप्रतिक्रमणं (नपुं०) जीव परिहार युक्त प्रदेश में प्रतिक्रमण। क्षेत्रशुद्धिः (स्त्री०) क्षेत्र की शुद्धता।
'क्षेत्राश्रितातीचारान्निवर्तनं क्षेत्रप्रतिक्रमणम्' (मूला०वृ० क्षेत्रसमवायः (पुं०) क्षेत्र की समानता। जंबूद्वीप, सर्वार्थसिद्धि, ७७/११५)
अप्रतिष्ठान नरक और नन्दीश्वरद्वीपस्थ प्रत्येक वापी का क्षेत्रप्रतिसेवना (स्त्री०) निषिद्ध क्षेत्र में गमन। 'द्रोण्यादिगमनं समान रूप से एक लाख योजन प्रमाण। 'सरिसाणि एसो क्षेत्रप्रतिसेवना' (भ० आ० ४५०)
खेत्तसमवाओ' (जयो० ध०१/१२४) क्षेत्रप्रतिसेवा (स्त्री०) निषिद्ध क्षेत्र में गमन। | क्षेत्रसमाधिः (स्त्री०) क्षेत्र प्राधान्य में समाधि। 'अननुज्ञातगृहभूमिगमनम्।' (भ०आ० ४५०)
क्षेत्रसंयोगः (पुं०) प्रसिद्ध क्षेत्रों का संयोग। क्षेत्रप्रत्याख्यानं (नपुं०) अयोग्य या अनिष्ट क्षेत्र का त्याग। क्षेत्रसंसारः (पुं०) जीव और पुद्गलों का परिभ्रमण स्थान।
'अयोग्यानि वानिष्ट प्रयोजनानि संयमहानि संक्लेशं वा क्षेत्रसामायिकं (नपुं०) अपने स्थान पर राग-द्वेषादि न करना, संपादयन्ति क्षेत्राणि तानि त्यक्ष्यामि इति क्षेत्रप्रत्याख्यानम् क्षेत्र पर समभाव रखना। (भ०आ०टी०११६)
क्षेत्रस्तवः (पुं०) तीर्थंकरों के जन्म, निर्वाण आदि के स्थान
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