Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

Previous | Next

Page 347
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra खनिज www.kobatirth.org खनिज (वि०) खान, खदान से खोदकर निकाल गया पदार्थ । खनिजसंपत् (पुं०) खनिज सम्पत्ति, भूगर्मीय संपदा । खनित्रं (नपुं०) कुदाली, खुर्पा, गैंती, खंता। खनिवसति (स्त्री०) खान खोदने का निर्णय । खपदं (नपुं०) विमान, देव यान देवतामनुबभूव गुदा बैडूर्यनाग्नि खपदे शुभभावैः । (समु० ५ / १५ ) पुर। खपुरं (नपुं०) विद्याधर नगर, गन्धर्व खपुर (पुं० ) [ खं पिपति उच्चतया ख+पृ+क] १. सुपारी का वृक्ष। २. भद्रमोथा, ३. बाघनखा । खपुष्य (नपुं०) आकाश कुसुम, असम्भव या अनहोनी घटना 'भूतं तथा भावि खपुष्पवद्वा निवेद्यमानोऽपि जनोऽस्त्वसद्वाक्। (वीरो० २०/६) जो कार्य हो चुका या आगे होने वाला है, वह आकाश कुसुम के समान असद् रूप है। 'खपुष्पमथवा शृङ्गं खरस्यापि प्रतीयते' (सम्य० ११६) खपुष्पैः कुरुते मूढः स वन्ध्या सुतशेखरम् (सम्य० ११६) खर (वि० ) [ खं मुखनिलमतिशयेव अस्ति अस्य-ख-र अथवा खमिन्द्रियं राति -ख-रा+क] 'खरस्य दुष्ट लोकस्य कठोरवस्तुनश्चारि संशोधक' (जयो० १७५२) १. कठोर, कर्कश, ठोस, सख्त, तेज, प्रखर । २. तिक्त, चरपरा । ३. हारिकारक, पीड़ाजनक। ४. क्रूर, निष्ठुर, दुष्ट (जयो० १७ / ५२ ) ५. ग्रीष्म, गर्मी । ६. तीव्र 'कम्पितास्तु खरदण्डभावतः (जयो० ७०६०) खर (पुं०) गर्दभ, गधा 'खपुष्यमथवा खरस्यपि प्रतीयते' (सम्य० ११६) खरकर (पुं०) सूर्य, दिनकर खरकालः (पुं०) ग्रीष्मकाल, गर्मी का समय। 'वसुन्धरायास्तनयान् विपद्य निर्यान्तमारात्खरकालमद्य।' (वीरो० ४/११) खरकुटी (स्त्री०) १. गर्दभों का अस्तबल २. नाई की दुकान, क्षौर कर्मशाला। खर कोण (पुं०) १. चकोर पक्षी, २. तीतर | खर कोमल (पुं०) ज्येष्ठ मास । - खरखुराघातः (पुं०) तीक्षण शफायात। (जयो० ३ / ११०) खर- क्वाण: (पुं०) १. चकवा पक्षी । खर- गृहं (नपुं०) गर्दभ शाला | खर - गेहं ( नपुं०) गर्दभ शाला । खरणम् (वि०) तीखी नाक । खर- दण्डं (नपुं०) कमल, पद्म । खर-दण्डभावः (पुं०) तीव्र ताडन भाव। सम्प्रसीद कुरु फुल्लतां कम्पितास्तु खर- दण्ड-भाव: । (जयो० ७/६०) यतः ३३७ खरपालः (पुं०) काष्ठपात्र । खरमञ्जरी (स्त्री०) अपामार्ग । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खरध्वंसिन् (वि०) कर्कशता को नष्ट करने वाला । खरनादः (पुं०) गर्दभ नाद, खरध्वनि । खरपात्रं (नपुं०) लोह पात्र । खरप्रयुक्तिः (स्त्री०) तीक्ष्ण प्रयोग (जयो० २४ ) खपरिका खरमरीचि (पुं०) सूर्य, प्रभाकिरण । (जयो० १८/६०) खरयानं (नपुं०) गर्दभ यान, गधों के द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी। खर - रुचिः (स्त्री०) १. खल की प्रीति। २. सूर्य (जयो० १६ / ६८ ) (जयो० २२ / ३३) 'खलस्य रुचिः प्रीतिः ' खर- रुचिरः (पुं०) तीक्ष्ण किरण, सूर्य (सुद० १०४) खरशब्दः (पुं०) गर्दभ शब्द, गधे की ध्वनि। खरशाखा (स्त्री०) गर्दभशाला। खरस्वरा ( स्त्री०) अरण्य में उत्पन्न चमेली। खरादी (स्त्री०) शस्त्रचिकित्सक, काष्ठरञ्जक। (जयो० २७/३७) खरारि: (पुं०) दुष्ट, दुर्जन (जयो० १७ / ५२ ) खरिका ( स्त्री० ) [ खर्+ न्+टाप्] पिसी हुई कस्तूरी । खरिन्ध (वि०) गधी का दुग्ध पीने वाली । खरी (स्त्री० ) [ खर+ ङीष् ] गधी, गर्दभी । १. करञ्जिका (जयो० *} For Private and Personal Use Only खरु (वि०) १. श्वेत, २. मूर्ख, ३. अश्व घोड़ा, ४. दंत - खरुर्दशन ईशेऽश्वे' इति वि० (जयो० १६/५७) ५. गर्व, घमण्ड । खर्ज् (सक०) पीड़ा देना, दुःख उत्पन्न करना । १. व्याकुल करना, २ . खुजलाना। (जयो० २/४ ) खर्जनं (नपुं०) [खर्ज् + ल्युट् ] खरोचना, खुजलाना। खर्जिका (स्त्री०) रोग विशेष । खर्जुः (स्त्री० ) [ खर्ज् + उन्] खरोंच । १. खजूर का पादप । २. आकवृक्ष। खर्जुरन् (नपुं० ) [ खर्ज् + उरच्] चांदी, रजत। खर्जू (स्त्री० ) [ खर्ज् + ऊ] खाज, खुजली खर्जूर: (पुं०) १. खजूर, २. वृश्चिक, बिच्छु । (जयो० वृ० २४/५०) खर्जूरं (नपुं०) रजत, चांदी खर्जूरवेध: (पुं०) ज्योतिष का एक योग । खर्जूरवृक्षः (पुं०) खजूर वृक्ष, निश्रेणि। (जयो० वृ० २४/५ ) खर्जूरी (स्त्री०) खजूर वृक्ष । खर्परः (पुं०) १. खप्पर, भिक्षा पात्र, खोपड़ी । २. चोर, ३. छाता । खरिका (स्त्री०) [खर्पर अच्छी कन्+टाप्] अंजन

Loading...

Page Navigation
1 ... 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438