Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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खनिज
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खनिज (वि०) खान, खदान से खोदकर निकाल गया पदार्थ । खनिजसंपत् (पुं०) खनिज सम्पत्ति, भूगर्मीय संपदा । खनित्रं (नपुं०) कुदाली, खुर्पा, गैंती, खंता। खनिवसति (स्त्री०) खान खोदने का निर्णय । खपदं (नपुं०) विमान, देव यान देवतामनुबभूव गुदा बैडूर्यनाग्नि खपदे शुभभावैः । (समु० ५ / १५ )
पुर।
खपुरं (नपुं०) विद्याधर नगर, गन्धर्व खपुर (पुं० ) [ खं पिपति उच्चतया ख+पृ+क] १. सुपारी का वृक्ष। २. भद्रमोथा, ३. बाघनखा ।
खपुष्य (नपुं०) आकाश कुसुम, असम्भव या अनहोनी घटना
'भूतं तथा भावि खपुष्पवद्वा निवेद्यमानोऽपि जनोऽस्त्वसद्वाक्। (वीरो० २०/६) जो कार्य हो चुका या आगे होने वाला है, वह आकाश कुसुम के समान असद् रूप है। 'खपुष्पमथवा शृङ्गं खरस्यापि प्रतीयते' (सम्य० ११६) खपुष्पैः कुरुते मूढः स वन्ध्या सुतशेखरम् (सम्य० ११६) खर (वि० ) [ खं मुखनिलमतिशयेव अस्ति अस्य-ख-र अथवा खमिन्द्रियं राति -ख-रा+क] 'खरस्य दुष्ट लोकस्य कठोरवस्तुनश्चारि संशोधक' (जयो० १७५२) १. कठोर, कर्कश, ठोस, सख्त, तेज, प्रखर । २. तिक्त, चरपरा । ३. हारिकारक, पीड़ाजनक। ४. क्रूर, निष्ठुर, दुष्ट (जयो० १७ / ५२ ) ५. ग्रीष्म, गर्मी । ६. तीव्र 'कम्पितास्तु खरदण्डभावतः (जयो० ७०६०)
खर (पुं०) गर्दभ, गधा 'खपुष्यमथवा खरस्यपि प्रतीयते' (सम्य० ११६)
खरकर (पुं०) सूर्य, दिनकर
खरकालः (पुं०) ग्रीष्मकाल, गर्मी का समय। 'वसुन्धरायास्तनयान् विपद्य निर्यान्तमारात्खरकालमद्य।' (वीरो० ४/११)
खरकुटी (स्त्री०) १. गर्दभों का अस्तबल २. नाई की दुकान, क्षौर कर्मशाला।
खर कोण (पुं०) १. चकोर पक्षी, २. तीतर |
खर कोमल (पुं०) ज्येष्ठ मास ।
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खरखुराघातः (पुं०) तीक्षण शफायात। (जयो० ३ / ११०)
खर- क्वाण: (पुं०) १. चकवा पक्षी ।
खर- गृहं (नपुं०) गर्दभ शाला | खर - गेहं ( नपुं०) गर्दभ शाला । खरणम् (वि०) तीखी नाक ।
खर- दण्डं (नपुं०) कमल, पद्म ।
खर-दण्डभावः (पुं०) तीव्र ताडन भाव। सम्प्रसीद कुरु फुल्लतां कम्पितास्तु खर- दण्ड-भाव: । (जयो० ७/६०)
यतः
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खरपालः (पुं०) काष्ठपात्र ।
खरमञ्जरी (स्त्री०) अपामार्ग ।
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खरध्वंसिन् (वि०) कर्कशता को नष्ट करने वाला । खरनादः (पुं०) गर्दभ नाद, खरध्वनि । खरपात्रं (नपुं०) लोह पात्र ।
खरप्रयुक्तिः (स्त्री०) तीक्ष्ण प्रयोग (जयो० २४ )
खपरिका
खरमरीचि (पुं०) सूर्य, प्रभाकिरण । (जयो० १८/६०) खरयानं (नपुं०) गर्दभ यान, गधों के द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी। खर - रुचिः (स्त्री०) १. खल की प्रीति। २. सूर्य (जयो०
१६ / ६८ ) (जयो० २२ / ३३) 'खलस्य रुचिः प्रीतिः ' खर- रुचिरः (पुं०) तीक्ष्ण किरण, सूर्य (सुद० १०४) खरशब्दः (पुं०) गर्दभ शब्द, गधे की ध्वनि। खरशाखा (स्त्री०) गर्दभशाला।
खरस्वरा ( स्त्री०) अरण्य में उत्पन्न चमेली। खरादी (स्त्री०) शस्त्रचिकित्सक, काष्ठरञ्जक। (जयो० २७/३७) खरारि: (पुं०) दुष्ट, दुर्जन (जयो० १७ / ५२ ) खरिका ( स्त्री० ) [ खर्+ न्+टाप्] पिसी हुई कस्तूरी । खरिन्ध (वि०) गधी का दुग्ध पीने वाली । खरी (स्त्री० ) [ खर+ ङीष् ] गधी, गर्दभी । १. करञ्जिका (जयो० *}
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खरु (वि०) १. श्वेत, २. मूर्ख, ३. अश्व घोड़ा, ४. दंत - खरुर्दशन
ईशेऽश्वे' इति वि० (जयो० १६/५७) ५. गर्व, घमण्ड । खर्ज् (सक०) पीड़ा देना, दुःख उत्पन्न करना । १. व्याकुल करना, २ . खुजलाना। (जयो० २/४ )
खर्जनं (नपुं०) [खर्ज् + ल्युट् ] खरोचना, खुजलाना। खर्जिका (स्त्री०) रोग विशेष ।
खर्जुः (स्त्री० ) [ खर्ज् + उन्] खरोंच । १. खजूर का पादप । २. आकवृक्ष।
खर्जुरन् (नपुं० ) [ खर्ज् + उरच्] चांदी, रजत। खर्जू (स्त्री० ) [ खर्ज् + ऊ] खाज, खुजली
खर्जूर: (पुं०) १. खजूर, २. वृश्चिक, बिच्छु । (जयो० वृ० २४/५०)
खर्जूरं (नपुं०) रजत, चांदी
खर्जूरवेध: (पुं०) ज्योतिष का एक योग ।
खर्जूरवृक्षः (पुं०) खजूर वृक्ष, निश्रेणि। (जयो० वृ० २४/५ ) खर्जूरी (स्त्री०) खजूर वृक्ष ।
खर्परः (पुं०) १. खप्पर, भिक्षा पात्र, खोपड़ी । २. चोर, ३. छाता । खरिका (स्त्री०) [खर्पर अच्छी कन्+टाप्] अंजन
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