Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation
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खगपति
३३५
खट्टा
खगपति (पुं०) १. सूर्य, २. गरुड़।
खचित (वि०) [खच्+क्त] चित्रित, लिखित, जटित, भरा खगमः (पुं०) पक्षी।
हुआ, मिश्रित, संयुक्त, परिपूरित। (जयो० १२/१३०) खगवती (स्त्री०) पृथ्वी, भूमि।
(जयो० ६/८१) लावण्य खचित देहो (जयो० ६/८१) खगसत्त्वं (नपुं०) उत्तम ग्रह, उत्तम राशि।
लावण्येन-सौन्दर्येण खचितः परिपूर्णो देहो यस्य सः' खगसानुमति (पुं०) विद्याधर पर्वत। (जयो० २३/५१) खच्चरः (पुं०) गधे या घोड़े के संयोग से उत्पन्न पशु। खगाग्रणी (स्त्री०) विद्याधर प्रमुख, खगानां विद्यावतां (जयो० खज् (सक०) मंथन करना, मथना, बिलोना, आंदोलित करना। ७/८९)
खजः (पुं०) मथानी, बिलौनी। खगाधियः (पु०) गरुड़।
खजकः मथानी, बिलौनी। खगावली (स्त्री०) बाण पंक्ति (जयो०८/३३) 'खगानां खजपं (नपुं०) [खज्+कपन्] घृत, घी। बाणानामावली'
खजलः (पुं०) १. तुषार, पाला, ओसकण। २. मेघजल। खगासनः (पुं०) विष्णु।
खजाकः (पुं०) [खज+आक] पक्षी। खगुण (वि०) गुण हीन।
खजालिका (स्त्री०) [खज्+अ+टाप] खजा, खजाज डी खगेन्द्रः (पुं०) विद्याधर। (जयो० वृ० २३/७९)
कन्+टाप्] कड़छी, चम्मच। खगेश्वरः (पुं०) विद्याधर। (समु०६/२५) 'नाम्नाऽतिवेगस्य खजित (वि०) बिलोचित, मथित। खगेश्वरस्य।
खंज (अक०) लंगड़ाना, रुक रुककर चलना। खगोलः (पुं०) आकाशमण्डल। (जयो० ८/२२)
खंज (वि०) [खञ्ज+अच्] विकलांग, लंगड़ा। खगोलविद्या (स्त्री०) आकाश मण्डल के गृह-नक्षत्रादि का | खंजक (वि०) लंगड़ाने वाला। ज्ञान, ज्योतिष विद्या।
खंजकारि (वि०) लंगड़ाने वाला। खग्रासः (पुं०) पूर्ण सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण।
खञ्जनः (पुं०) [खच्+ ल्युट] चकोर पक्षी, शरद और शीतकाल खङ्गः (पुं०) तलवार, असि। (वीरो० १/३५, १/७)
में दिखाई देने वाला पक्षी। (सुद० ११५) श्री जिनेन्द्रो खङ्गधारण (वि०) तलवार धारण करने वाला। (जयो० १/७) रूपाश्रयतु सखञ्जनम्। (मुनि० ३४) 'सुखञ्जनः संलभते खङ्गप्रहारः (पुं०) असि प्रहार। (वीरो० १/३५)
प्रणश्यत्तमः' (वीरो० १/३) खङ्गमुद्रा (स्त्री०) असिमुद्रा। दाहिने हस्त की मुट्ठिबांधकर | खञ्जनरतिः (स्त्री०) गुप्त रति क्रिया।
तर्जनी अंगुली के फैलाने की मुद्रा। 'दक्षिणकरेण मुष्टिं खञ्जनासनं (नपुं०) एक गुप्त आसन। बद्धवा तर्जनी मध्ये प्रसारयेदिति खङ्गमुद्रा। (निर्वाण काण्ड खञ्जनिका (स्त्री०) चकोर के सदृश पक्षी चकोरी, खजनपक्षी। ३१)
(जयो० ११/२) खङ्गिन (पुं०) गेंडा, प्रसिद्ध वन्यप्राणी। (जयो० २१/२४) खंजरीटः (पुं०) [ख+ऋ+कीटन] चकोर पक्षी। खङ्गिन् (वि०) कृपाणधारी। (जयो० वृ० २१/२४)
खञ्जलेखः (पुं०) [खन्+लिख+घञ्] खंजन पक्षी, चकोर। खङ्करः (पुं०) [ख कृ+खच्] अलक, बालों की लट। खटः (पुं०) [खट्+अच्] १. कफ, २. हल, ३. कुल्हाड़ी। खच (अक०) आगे आना, प्रकट होना, पुनर्जन्म होना। खटकः (पुं०) [खट्+ कन्] अर्द्धमुंद हस्त। खच् (सक०) १. बांधना, जकड़ना, जड़ना। २. मिलाना, पूर्ण खटिका (स्त्री०) [खट्+अच्+कन्+टाप्] खड़िया। १. क्षीणा, होना, भरना। (जयो० ६/८१)
कठिनी। (जयो० ६/१०५) खचनं (नपुं०) अंकित करना।
खटिकारेखा (स्त्री०) क्षीण रेखा। (जयो० ६/१०५) खचमस् (पुं०) चन्द्र, शशि।
खटक्किका (स्त्री०) खिड़की। खचरः (पुं०) १. सूर्य, रवि, चन्द्र। २. ग्रह नक्षत्र, मेध। ३. खटिनी (स्त्री०) [खट्+ इनि+ङीप्] खड़िया। राक्षस।
खट्टन (वि०) [खट्ट+ल्युट्] ठिंगना, कद में छोटा। खचरा (वि०) दुष्ट, दुर्जन।
खट्टनः (पुं०) ठिंगना व्यक्ति। खचारी (वि०) आकाशगामी।
खट्टा (स्त्री०) [खट्ट अच्+टाप्] खाट। (दयो० ८९)
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