________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
क्षेत्रातिक्रमः
www.kobatirth.org
का स्तवन । 'कैलाशसम्मेदोर्जजन्त पावा- चम्पा नगरादिनिर्वाण क्षेत्राणां समवसृतिक्षेत्राणां च स्तवनं क्षेत्रस्तवनः । (मूला०वृ० ७०४१)
क्षेत्रातिक्रमः (पुं०) क्षेत्र का अतिक्रमण । व्रती को लगने वाला दोष, जो व्रती क्षेत्र का अतिक्रमण करता है, वह क्षेत्रातिक्रम अतिचार जन्य होता है।
क्षेत्राधिपतिः (पं०) क्षेत्रपति (दयो० ९७)
-
क्षेत्राधिदेवता ( पुं०) क्षेत्रपाल ।
क्षेत्रानुगामी (वि०) क्षेत्र में अनुगमन करने वाला। अवधिज्ञान अपनी उत्पत्ति के क्षेत्र से अन्य क्षेत्र में स्वामी के जाने पर उसके साथ रहता है, नष्ट नहीं होता है। 'स्योत्पन्नक्षेत्रादन्यस्मिन् क्षेत्रे हिरतं जीवमनुगच्छति। (गो० जी०३७२) क्षेत्राननुगामी (वि०) अपने क्षेत्र से अन्य क्षेत्र में स्वामी के
साथ नहीं जाना, किन्तु वहीं पर नष्ट हो जाना। 'यत्क्षेत्रान्तरं न मच्च्छति स्वोत्पन्न क्षेत्रे एव विनश्यति भवान्तरं गच्छतु
मा वा तत्क्षेत्राननुगामि' (गो०जी० ३७२ ) क्षेत्रानुपूर्वी (स्त्री०) परिचित क्षेत्र की अवगाहना। क्षेत्रानुयोगः (पुं०) क्षेत्र विवरण, स्थान की व्याख्या । क्षेत्राभिग्रह: (पुं०) क्षेत्र नियम क्षेत्र परिधि क्षेत्रार्यः (पुं०) काशी, कौशल आदि देशों में उत्पन्न । 'क्षेत्रार्याः काशी - कौशलादिषु जाताः (त०वा० ३/३६) जो पन्द्रहकर्म भूमियों तथा भरतक्षेत्र के वर्तमान साढ़े पच्चीस देशों में उत्पन्न या क्षेत्रगत चक्रवार्तियों की उत्पत्ति स्थान । क्षेत्रावग्रह: (पुं०) क्षेत्र आधिपत्य, प्रदेश पर विचार | क्षेत्राहार : ( पुं०) क्षेत्र में आहार का उपभोग । क्षेत्रिक (वि०) खेत से सम्बंध रखने वाला। क्षेत्रिक: (पुं०) कृषक, किसान, खेतहर क्षेत्रोज्झित (पुं०) क्षेत्र की वस्तुओं का परित्याग । क्षेत्रोत्तर (५०) उत्तरदिशादिगत क्षेत्र
क्षेत्रोत्सर्गः (पं०) क्षेत्र में उत्सर्ग, क्षेत्र का त्याग। क्षेत्रोपक्रमः (पुं०) क्षेत्र/ खेत बनाने का क्रम, खेत का परिष्कार। क्षेत्रोपसम्पत् (पुं०) क्षेत्रोचित नियम की वृद्धि। 'यस्मिन् क्षेत्रे संयम तपोगुणशीलानि यमनियमादयश्च वर्द्धन्ते तस्मिन् वासो यः सा क्षेत्रोपसम्पत्।' (मूला०वृ० ४/१४१) क्षेप (पुं० ) [ क्षिप् घञ्] डालना, पहनाना 'चिक्षेप कण्ठे मृदु पुष्पहारम् ।' (वीरो० ९५/१४) रजांसि चिक्षेप निधाय पङ्के' (जयो० १/५३) २. समय बिताना, व्यतीत होना, कालक्षेप | 'सानन्दमेष प्रकार कालक्षेपं लयाऽऽमा खलु
३३३
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क्षेमविधिः
भूमिपाल: । (समु०२ / २९) ३. अपमान, आक्षेप, दुर्वचन, दोष । ४. अहंकार, घृणा अनादर ।
क्षेपक (वि० ) [ क्षिप् + ण्वुल् ] डालने वाला, भेजने वाला, घुमाने वाला ।
क्षेपणं (नपुं० ) [ क्षिप् + ल्युट् ] ०फेंकना, ०पहनाना, ०डालाना, ० बिताना।
क्षेपणकर्ती (वि०) क्षेपणी, डालने वाला (जयो० ० ३/८९ ) क्षेपणि: (स्त्री०) चम्पू, नाव खेने की पतवार । क्षेपणी देखो ऊपर
क्षेपणी (वि०) बरसाने वाली, डालने वाली । 'स्रजं मालां क्षिपतीति क्षेपणी क्षेपणकर्ती (जयो० वृ० ३/८९) क्षेपणीय (वि०) अर्पणीय, समर्पणीय, डालने योग्य, पहनाने
योग्य। 'कण्ठभागेऽर्पणीयं क्षेपणीयम्' (जयो० वृ० ४/३२) क्षेपात्मक (वि०) आरोहणात्मक, पहनाने योग्य। 'सदस्यदः शीलित
मेव माला क्षेपात्मकं ज्ञातवतीव वाला (जयो० १७ /१२) क्षेम (वि०) १. कुशल, २. प्रसन्न, सुखी, ३. उदार, हर्ष युक्त,
४. शुभ (जयो० ३ / २६) ५. विधिपूर्वक रक्षण करना । ६. शान्ति ७ रक्षा सुरक्षा (वीरो० १८ / १५) 'क्षेमं च लब्ध- पालन- लक्षणम्' (जैन०ल० ४०३)
क्षेम: (पुं०) शान्ति, आराम, कल्याण ।
क्षेमंकर (वि०) शान्ति स्वभाव वाला, रक्षक प्रवृत्ति वाला। मंगलकारक, उपकारक ।
क्षेमंकर (पुं०) क्षेमंकर नाम विशेष
क्षेमकथा ( स्त्री०) शान्तिकथा कुशल समाचार 'कोकोक्तिभिः कृतक्षेमकथा' (जयो० १४/४८) क्षेमस्य कथा क्षेमकथा | (जयो० वृ० १४/४८)
क्षेमकर्मी (वि०) मंगलकारी, इष्टकारक |
For Private and Personal Use Only
क्षेम-क्षेम (वि०) बाह्यलिंग युक्त साधु का मार्ग। * लज्जाजनक क्षेमपूर्ण: (पुं०) शान्तिपूर्ण
क्षेमपूर्णता (वि०) कुशलता 'कुशलता क्षेमपूर्णतास्ति।' (जयो० ३/३४)
क्षेमपृच्छा (स्त्री०) कुशलता की जिज्ञासा । 'अथो पथापाततया
तथापि न क्षेत्रपृच्छाऽनुचितास्तुतापि । (जयो० ३ / २६ ) 'क्षेमस्य कुशलस्य नवेति जिज्ञासा' (जयो० वृ० ३/२६) क्षेमप्रश्नं (नपुं०) कुशल क्षेम पूछना। क्षेमप्रश्नानन्तरं ब्रूहि
कार्यामित्यादिष्टः प्रोक्तवान् सागरार्यः । ' (सुद० ३/४५) क्षेमविधिः (स्त्री०) सुरक्षा विधि योगास्य च क्षेमविधेः प्रमाता विचारमात्रात्समभूद्विधाता। (वीरो० १८/१५)