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कृष्णकर्मन्
कृष्णकर्मन् (वि०) दुष्ट चरित्र, दुराचारी । कृष्णकारकः (पुं०) पर्वतीय कौआ । कृष्णकाय (पुं०) भैंसा
कृष्णकाष्टं (नपुं०) कालागुरु, कृष्ण चन्दन की लकड़ी । कृष्णकोहल : (पुं०) जुआरी, द्यूतकार ।
कृष्णगतिः (स्त्री०) अग्नि, बह्नि, आग। कृष्णग्रीवः (पुं०) शिव, शंकर का नाम । कृष्णचतुर्दशी (स्त्री०) कृष्ण पक्ष की चोदश (सुद० २६ ) कृष्णत्व (वि०) नीलत्व, नीलकान्तियुक्त 'कृष्णत्वं नीलत्वं वा तस्य नीलकान्तयश्चासन् (जयो० वृ० ११/६९) कृष्णदेह: (पुं०) मधुमक्खी।
कृष्णपक्षः (पुं०) चन्द्रमास अंधेरी रात का पक्ष, बहुल पक्ष कृष्णपाक्षिक (वि०) १. कृष्णपक्ष सम्बंधी २. दीर्घ काल तक संसरण करने जीव अधिकतर संसारभाजनस्तु कृष्णापाक्षिकाः (जैन०ल०३६८)
कृष्णमुखः (पुं०) काले रंग का वानर
कृष्णमुखं (नपुं०) कृष्ण / काला मुख । कृष्णारूप: (पु० ) कृष्ण रंग (जयो० वृ० १/२५) कृष्णला (स्त्री०) गुजा (जयो० २१/४८, १/२५) कृष्णलेश्या (स्त्री०) एक लेश्या/ परिणाम जिसमें कृष्णत्व की अधिकता पाई जाती है 'खंजजणायणणिभा किण्हलेस्सा' (जैन००३६८)
कृष्णलेश्या भाव: (पुं०) कृष्णलेश्या का भाव, जो तीव्रतम निर्दय भाव होता है, वह कृष्णलेश्याभाव है। 'जो तिव्वतमो सा किण्हलेस्सा' (धव० १६/४८८) निर्दयो निरनुक्रोशो मद्यमांसादिलम्पटः । सर्वदा कदनासक्तः कृष्णलेश्यो मतो जन: । (पंच सं०१ / २७३ )
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कृष्णलोह (पं०) चुम्बक पत्थर
कृष्णवर्णः (पुं०) काला रंग। १. राहु २. शूद्र । कृष्णवर्णनामन् (पुं०) शरीरगत कृष्ण वर्ण नाम। जिस नामकर्म
के उदय से शरीरगत पुद्गल परमाणुओं का वर्ण काला हो। 'जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गलाणं किष्णवण्णो उप्पज्जदि तं किण्णवण्णणाम।' (धव० ६/७४) 'यस्य कर्मणा उदयन शरीरपुद्गलानां कृष्णवर्णता भवति तत्कृष्णवर्ण नाम (मुला० ० १२ / १९४ )
कृष्णवर्त्मन् (पुं०) १. अग्नि, आग। २. कृष्णं वर्त्म मार्गो नीति लक्षणोऽथ' (वीरो वृ०३/६)
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कृष्णवर्त्मत्व (वि०) धूमपना धूमत्वा २ कृप पथत्व (वीरो० कृष्णवत्मत्वमुते प्रतापवद्धि'
३/६)
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केकिता
कृष्णा ( स्त्री०) द्रोपति नाम) नदी (वीरो० ३/६) कृष्णागुरु (नपुं०) एन चन्दन विशेष (सुद० ७२) दशाङ्ग धूम को कृष्णागुरु चन्दन, कर्पूरादिक को मिश्रित करके बनाया जाता है (जयो० २४ /७९) कृष्णागुरुचन्दनकर्पूरादिकमय धूपदशायाः । ज्वालनेन कृत्वा सुवासनाग्रे जिनमुद्रायाः (सुद० वृ०७२)
कृष्णाचल: (पुं) रैवतक पर्वत का ऊपर नाम। कृष्णाजिनं (नपुं०) कृष्ण मृग का धर्म कृष्णायस् (नपुं०) लोहा, अयष्क । कृष्णाध्वन् (नपुं०) अग्नि, वह्नि । कृष्णावर्त्मन् (नपुं०) नारायण पद्धति। (जयो० २४ /७९) कृष्णाष्टमी (वि०) कृष्ण जन्म का अष्टमी। भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी।
कृष्णिका (स्त्री० ) [ कृष्ण+छन्+टाप्] काली सरसा, कृष्ण सरिसव।
कृष्णिमन् (पुं० ) [ कृष्ण+ इमनिच्] कालिमा, कालापन । कृष्णी (स्त्री० ) [ कृष्ण+ ङीप् ] कृष्णपक्ष की रात्रि । क्लुप् (अक० ) ० योग्य होना, ०अच्छा होना, उत्तम होना। कल्पते, कल्पसे ।
क्लृप्त (भू०क०कृ० ) [ क्लृप्+क्त] तैयार किया गया, सुसज्जित, उत्पन्न किया हुआ, उपार्जित आविष्कृत।
क्लृप्तवती (वि०) तैयार करती हुई (जयो० १४/४९) क्लृप्तिः (स्त्री०) [ क्लुप् क्तिन्] निष्पत्ति, उत्पत्ति, आविष्कार। क्लृप्ति- कला रसाल्य (वि०) नाना चेष्टा वाला (समु०
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क्लृप्तिक (वि०) [ क्लृप्त छन्] क्रय किया गया, मूल्य में खरीदा गया।
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केकय: (पुं०) एक देश विशेष, देश नाम। केकर (वि०) भेंगी अक्षि वाला, भेंगी दृष्टि वाला। केकरं ( नपुं०) भेंगी आंख ।
केकरी (स्त्री०) भेंगी आख ।
केका (स्त्री०) १. मयूर, २. मयूर शब्द । केकारवञ्चक्रुरित्यर्थः ' (जयो० पृ० ८/८)
केकारव: (पुं०) मयूर शब्द (जयो० ८/८) केकावल: (पुं०) (केका+वलच्] मोर, मयूर, शिखण्डि । केकिकुलं (नपुं०) मयूर समूह (सुद० ७४) केकिन् (पुं०) मयूर, मोर, शिखण्डि । 'शिखिण्डना के किनाम्' (जयो० ८/८)
केकिता (वि०) १. वह्निगत (जयो० वृ० १०/११२)