Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

Previous | Next

Page 333
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra क्रियागुक्षि www.kobatirth.org धर्माधिककर्तृत्वममी दधाना बाह्यं क्रियाकाण्डमिताः स्वमानात् (वीरो० १८/४९) क्रियागुक्षि (स्त्री०) क्रियापद, कविरचना (जयो० ७/२) क्रियाद्वेषिन् (पुं०) पक्षपात । क्रियानयः (पुं०) क्रिया की प्रधानता । 'यः उपदेशः क्रियाप्राधान्य' । क्रियानिर्देश: (५०) साक्ष्य गवाही। क्रियापदं (नपुं०) ०कवि रचना पाटव ०क्रियावाचक, ०क्रियागुप्ति (जयो० ७/२) क्रियापारगमी (वि०) परिश्रमशील । क्रियायोगः (पुं०) क्रिया के साथ सम्बन्ध । क्रियारुचिः (स्त्री०) ज्ञान, दर्शन, चरित्र आदि के प्रति रुचि । क्रियावश: (पुं०) क्रिया का प्रभाव। क्रियावाचक (वि०) कर्म को प्रकट करने वाला। क्रियावाचिन् (वि०) क्रिया से बना हुआ शब्द । क्रियावादिन् (पुं०) क्रियावादी, कर्ता के बिना क्रिया सम्भव नहीं है, इसलिए उसका समवाय आत्मा में है, ऐसा कहने वाले जैनदर्शन में ३६३ मत हैं, उनमें क्रियावादी मत भी है। 'क्रिया अस्तीत्यादिकां वदितुं शीलं येषां ते क्रियावादिनः । ' (जैन०ल०३७८) 'क्रियां जीवादिपदार्थोऽस्तीत्यादिकां वदितुं शीलं येषां से क्रियावादिनः' (जैन०ल०३७८ ) क्रियाविधिः (स्त्री० ) कर्म करने का नियम, कार्य पद्धति । क्रियाविशाल (नपुं०) तेरहवें पूर्व का नाम, जहां लेखन विधि की व्याख्याएं हों। जहां संयम क्रिया, छन्दक्रिया और विधानादि का सभेद वर्णन हो। 'किरियाविसालो इ-गय-लक्खण- छंदालंकार-सेढत्थी पुरिस- लक्खणादीणं वण्णणं कुणई' (जय०५०२/४८) क्रियाविशेषणं (नपुं०) १. क्रिया की विशेषता प्रकट करने वाला शब्द । २ विधेय विशेषण। क्रियासंक्रान्तिः (स्त्री०) अध्यापन, शिक्षण, दूसरों को शिक्षा देना। - ३२३ क्री (सक०) खरीदना क्रय करना, मोल लेना। क्रीड (सफ०) खेलना, मनोरंजन करना, घूमना। 'क्रोडे मुहुर्वारम्वार वेल्लति क्रीडति' (जयो० वृ० १३/९०) क्रीड (पुं०) [क्री+पञ्] खेल, किल्लोल, उमंग, आमोद, प्रमोद, क्रीडकः (पुं० ) [ क्रीड्+घञ् स्वार्थे कन् ] खेल, उत्साह, उमंग (दयो० ८३) उत्साह | क्रीडनं (नपुं० ) [ क्रीड + ल्युट् ] खेलना, मनोरंजन करना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोड: क्रीडनक: (पुं०) खेल साधन । क्रीडनकतं (पुं०) खेल साधन, क्रीडास्कन, खिलौना सत्यवस्तुपरिबोधने विशो भान्ति क्रीडनकतो यतः शिशोः। (जयो० २ / ३०) 'क्रीडनकान्येवेति क्रीडवकत:' (जयो० वृ० २/३०) क्रीडनवकारक (वि०) क्रीड़ा को करने वाला मदारी, बाजीगर, नट (जयो० वृ० २५/५) क्रीडा (स्त्री० [क्रीड्+अ+टाप्] खेल, आमोद प्रमोद, उत्साह, उमंग, किलोल, हंसी। क्रीडाकर (वि०) क्रीडा करने वाला। (जयो० वृ० १६ / १५ ) क्रीडागृह (नपुं०) आमोदकक्ष, खेलस्थान क्रीडानुरक्त (वि०) क्रीडा में तत्पर । (दयो० ८३) क्रीडापर (वि०) क्रीडा युक्त, क्रीडा में तत्पर, खेल में लगा हुआ । 'वयस्यवर्गेण समं कदापि क्रीडापरेणेदमुदन्तमापि' (समु० १ / ३१ ) क्रीडारलं (नपुं०) मैथुन कामकेलि । क्रीण् ( सक०) खरीदना, क्रय करना । 'यः क्रीणाति समर्प मितीदं विक्रीणीतेऽवश्यम्' (सुद० ९१ ) क्रुञ्चः (पुं०) जलकुक्कुटी, बगुला । क्रुध् (अक० ) ०क्रोध करना, ०कोप करना ०क्रोधित होना । 'दग्धं क्रुधा कामधनुर्हरण' (जयो० ११/६७) + क्रुध् ( अक० ) ०चिल्लाना, रोना, ०चीखना ० विलाप करना । कुष्ट (वि० ) [ क्रुश्+क्त] चिल्लाया हुआ पुकारा हुआ। क्रूर (वि० ) ० निर्दय, ०निष्ठुर, कठोर, व्दारुण, ०भयंकर, ० अनिष्टकारी। For Private and Personal Use Only क्रूरकर्मन् (नपुं०) रक्त रंजित । क्रूरकृत् (वि०) निर्दय, निर्मम क्रूरकोष्ठ (वि०) मृदुता का अभाव । क्रूरगंध: (पुं०) दुर्गन्ध । क्रूरदृश (वि०) कुदृष्टि वाला । क्रूरलोचनं (नपुं०) कुपित दृष्टि । क्रेतृकुलं (नपुं० ) ग्राहकं (जयो० १३/८७) क्रेतु (पुं०) क्रेता, खरीरदार । क्रोञ्चः (पुं०) [कुञ्च+अच्] १. एक पक्षी, २. पर्वत विशेष । क्रोडः (पुं०) [क्रुड +घञ्] १. अङ्क, गोद, वक्षस्थल, छाती, सौना। २. गर्त, गट्ठा। 'पितरौ तु विषेदतुः सुतां न तथाऽऽजन्मनिजाङ्कवर्द्धिताम्' (जयो० १३/२२) 'अड्डे फोडे यशोविशिष्टं' (जयो० वृ० ३ / २३) 4

Loading...

Page Navigation
1 ... 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438