Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 332
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कौसुम्भक-भाजनं ३२२ क्रियाकाण्डः कौसुम्भक-भाजनं (नपुं०) कुसुम्भ से भरे हुए पात्र। (जयो० क्रमशः (अव्य०) [क्रम्+शस्] क्रमानुसार, एक सा, एक ८/२७) 'निम्नानि गन्धर्वशकैः कृतानि यत्राथ कौसुम्भक- मात्रा में। क्रमशः सकलै रथात्मनस्तकमारुढतया निपातनम्' भाजनानि। (जयो० ८/२७) (समु० २/२४) कौसृतिकः (पुं०) [कुसृति+ठक्] ठग, छली, २. बाजीगर, क्रमयुगं (नपुं०) युगानुसार। (समु०५/२) बदमाश। क्रमविचारकरी (वि०) क्रमशः विचार करने वाला। कौस्तुभः (पु०) [कुस्तुभी जलधिस्तत्र भवः] एक रत्न, जो क्रमविक्रम (पुं०) क्रम से पराक्रम को प्राप्त। वक्षस्थल की शोभा बढ़ाने कला होता है। (वीरो० ७/११) क्रमागत (वि०) क्रम से आया हुआ। 'क्रमशः आगतः क्रमागतः' क्रूय् (अक०) चूं चूं शब्द करना। (जयो० वृ० २१/७५) क्रमात्-क्रम से--'कुत्सितेषु सुगतादिषु क्रकचः (पुं०) [क्र-इति कचति शब्दायते-क+कच-अच्] क्रमाद्धा' (जयो० २/२६) आरा। क्रमिक (वि०) [क्रम्। ठन्] उत्तरोत्तर, क्रमानुसारी। २. परंपरागत, क्रकचच्छदः (पुं०) केतकी तरु। आनुवंशिका क्रकचपनः (पुं०) सागौन वृक्षा क्रमुः (पुं०) [क्रम् उ] सुपारी तरु। क्रकचपादः (पुं०) छिपकली। क्रमेल: (पुं०) [क्रम् एल्+अच्] ऊँट। उपवेशयति स्म तद्गतः क्रकरः (पु०) [क्र इति शब्द कर्तुं शीलमस्य-क्र+कृ+अच्] सहसा सादिवर: क्रमेलकम्' (जयो० वृ० १३/७३) आरा। क्रमेलकः (पुं०) ऊँट। क्रतुः (पुं०) [कृ+क्तु] १. यज्ञ, शक्ति । क्रयः (पुं०) [क्री+अच्] खरीद। क्रतुराज् (पुं०) यज्ञ स्वामी। क्रयणं (नपुं०) [क्री+ल्युट्] खरीदना, क्रय करना। क्रथ् (अक०) क्षति पहुंचाना. चोट करना, मार डालना। क्रयलेख्यं (नपुं०) दानपत्र, विक्रय पत्र। क्रथनं (नपुं०) [क्रथ+ ल्युट्] वध, हत्या। क्रयविक्रयः (पुं०) व्यापार, व्यवसाय। क्रथनकः (पुं०) [क्रथ+कन्] उष्ट्र, ऊँट। क्रयिक (वि.) व्यापारी, व्यवसायी। क्रन्द् (अक०) चिल्लाना, रोना। क्रन्दनं (नपुं०) विलाप, रुदन। क्रव्य (वि०) बिक्री योग्य, बिकाऊ। क्रम् (सक०) जाना, पहुंचाना। क्रव्यं (नपुं०) कच्चा मांस। क्रमः (पुं०) [क्रम्+घञ्] अनुक्रम, गति, कदम, पग। 'भवतः क्रशिमन् (नपुं०) [कृश्+इमनिच] कृश, दुर्बल, क्षीण। सान्निध्यमस्मिन् क्रमे' (सुद० ११३) 'रागादयः क्रमात्' क्राकचिकः (पुं०) [क्रकच+ठक्] आराशक। (सुद० १३५) क्रान्त (वि०) निस्सृत, निकला, गया हुआ। क्रमः (पुं०) शक्ति, बल। 'क्रमः शक्तौ परिपाट्याम्' इति क्रान्तः (पुं०) अश्व, घोड़ा। * आंदोलन। वि०' (जयो० २३/३६) * परिपाटी, परम्परा। क्रान्तिः (स्त्री०) १. गति, प्रगमन। २. अग्रभूत, पादगमन। ३. क्रमकृत् (वि०) किलानुकी पंक्ति में चलते हुए। अभिभूत करने वाला। 'पिपीलिकाली-क्रमकृत्-प्रशस्तिः' (जयो० ११/३३) क्रायक (वि०) क्रेता, खरीरदार, व्यापारी, व्यवसायी। क्रमणः (पुं०) [क्रम् ल्युट्] १, पाद, पैर, पग, २. अश्व, घोड़ा। क्रिमिः (स्त्री०) कीड़ा, कीट। क्रमणं (नपुं०) १. कदम। २. अतिक्रमण, उल्लंघन। क्रिया (स्त्री०) १. ०कार्यपद्धति, प्रक्रिया, २. रचनाधर्मिता, क्रमणान्वयः (पुं०) आक्रमण। 'प्रदोषसिंहक्रमणान्वयानां' (जयो० ३. ०उपचार ४, ०क्रियागति-व्यवसाय, ५. कृत्य, चेष्टा, १५/२८) कृते आक्रमणेऽन्वयः क्षुब्धरूपतया' (जयो० ६. श्रम ७. ०आचरण, ८. ०कर्म। ९. द्रव्य की पर्याय। वृ० १५/२८) पाणिग्रहणात्मिक क्रिया। (जयो० १/६७) क्रमतः (अव्य०) [क्रम्। तसिल्] क्रमश:, उत्तरोत्तर, क्रमानुसार। क्रिया-कलापः (पुं०) कार्यकलाप, रीति-रिवाज। क्रमदित्स (वि०) पंक्तिशः क्रमशो दित्सा। (जयो० १२/११८) क्रियाकारः (पुं०) अभिकर्ता, कार्यकर्ता। क्रमरोधः (पुं०) सीमातिक्रमण का निषेध। (जयो० २१/७५) | क्रियाकाण्डः (पुं०) विधि विधान, कार्य की विधि, बाह्य विधि। For Private and Personal Use Only

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