Book Title: Bruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: New Bharatiya Book Corporation

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Page 325
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केवलं ३१५ केशकीट: केवलं (अव्य०) सिर्फ, मात्र, पूर्ण रूप से। उसे केवल व्यतिरेकी कहते है। ‘पक्षवृत्तिर्विपक्षव्यावृत्तः केवलज्ञानं (नपुं०) ज्ञान का एक भेद, पांच ज्ञानों में अन्तिम सपक्षरहितो हेतुः केवलव्यतिरेकी' (न्यायदीपिका ९०) ज्ञान। (तसू०१/९) 'साक्षात् परिच्छेदककेवलज्ञानम्' | केवलान्वयी (वि०) विपक्ष रहित, जो हेतु पक्ष और सपक्ष में (धव० १/३५८) १. पदार्थ परिच्छेदक ज्ञान, २. निरपेक्ष तो है, किन्तु विपक्ष में नहीं रहता है, वह केवलान्वयी जान-'केवलमसहायमिन्द्रियालोकमनस्कारनिरपेक्षम्' (धव० कहलाता है। -'पक्ष-सपक्ष-वृत्तिर्विपक्षवृत्तिरहित: १/१९१) ३. युगपत् सर्वार्थ विषयक ज्ञान 'सकल ज्ञानावरण केवलान्वयी' (न्यायदीपिका ८९) परिक्षय विजृम्भितं केवलज्ञानं युगपत्सर्वार्थ विषयम्' | केवलालोकः (पुं०) केवलज्ञान का प्रकाश। सुमुहोऽभिक(अष्ट०२/१०१ केवलणाणावरणक्खएण समु प्पण्णं णाणं लितलोको रविरिव वा केवलालोकः।' (वीरो० ४/४७) केवलणाणं' (धव० १४/७) 'केवलणाणावरणक्खजायं केवलावरणं (नपुं०) केवलज्ञान पर आवरण। केवलं' (स०१/५) केवलि-अवर्णवादः (पुं०) ज्ञान एवं दर्शन से भिन्न कथन केलवज्ञानावरणं (नपुं०) अतिशय ज्ञान का आवरण-'जिससे __ करना। 'कवलाभ्यवहारजीविनः केवलिन इत्येवमादेवचनं लोक और अलोकगत सर्व तत्त्वों के प्रत्यक्ष दर्शक और केवलिनामवर्णवाद:' (स०सि०६/१३) अतिशय निर्मल केवलज्ञान का आवरण करता है। केवलिन् (वि०) [केवल+इनि] अकेला, एकमात्र, १. परम केवलज्ञानावरणीयं (नपुं०) केवलज्ञान पर आवरण करने तत्त्व का पक्षपाती। वाला। केवलणाणस्स आवरणं जं कम्मं तं केवलणाणावरणीयं | केवलिमरणं (नपुं०)केवली का निर्वाण। 'केवलिणं मरणं णाम।' (धव० १३/२१३) | केवलिमरणम्' (जैन०ल०३७२) केवलतः (अव्य०) [केवल-तसिल्] मात्र, केवल, एकमात्र, | केवलिमायी (वि०) केवलियों के प्रति अवर्णवाद की भावना। निज स्वरूप का संवेदन। निज स्वरूप 'स्वावभास: 'केवलिणं केवलिष्वादरवानिव यो वर्तते, तदर्चनायां तु केवलदर्शनम्' (धव० ६/३४) तिकाल-विसय-अणंत- मनसा तु न रोचते, स केवलिनां मायावान्' (भ०आ०टी० पज्जय-सहिद-सगरूव-संवेयणं' (धव० १०/३१९) केवल १८१) दर्शनावरण के क्षय से उत्पन्न-'केवल दसणावरणक्खएण केवलिसमु रातः (पुं०) केवलि के आत्मप्रदेश मूल शरीर संप्पणं दसणं केवलदसणं' (धव० १४/१७) युगपत् सामान्य से निकलना। 'आत्मप्रदेशानां बहिः समु द्घातनं केवलिसमु विशेष प्रकाशक (परमात्म पु०टी० १६१। द्घात:' (त० वा० १/२०) दंड-कवाड-पदर-लोग-पूरणाणि केवलदर्शनावरणीयं (नपु०) केवल दर्शन को आच्छादित केवलिसमु द्घादो णाम' (धव० ७/३००) करने वाला। 'केवलदसणस्स आवरणं केवलदसणावरणीयं' - केवलिराट् (पुं०) केवलिराज। 'चक्रायुधः केवलिराट् स तेन' (धव० १३/३५६) 'केवलमसपत्न, केवलं सद्दर्शनं च (समु० ५/३०) केवलदर्शनं, तस्य आवरणं केवलदर्शनावरणीयम्' (धव० केवली (वि०) केवलज्ञानी, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, जिन। ६/३३) शेषकर्मफलापेक्षः शुद्धो बुद्धो निरामयः। केवलबोधनं (नपुं०) केवलज्ञान का बोध/अनुभव। (सुद ९७) सर्वज्ञः सर्वदर्शी च जिनो भवति केवली। केवलबोधनपात्री (वि०) केवलज्ञान के बोध का अधिकारी। घातिकर्मक्षयादाविर्भूतज्ञानाद्यतिशयः केवली' (त० वा० ६/१३) (सुद० ९७) केवलमस्यातीति केवली, सम्पूर्ण ज्ञानवानित्यर्थ' 'सव्वं केवलबोधभृते (भू०क०कृ०) अतीन्द्रिय ज्ञान को प्राप्त हुआ। केवलकप्पं लोगं जाणंति तह य पस्संति। केवलणाण (जयो० १८/५५) चरित्ता तम्हा ते केवली होति।। (मूला ०७/६७) केवलभृत् (भू०क०कृ०) १. केवलज्ञान को धारण करता केशः (पुं०) [क्लिश्यते क्लिशनाति वा क्लिश्+अन्] केश, हुआ। (जयो० वृ० १८/५५) २. के-वल-भृत-सूर्य में बाल-'मालिन्यमेतस्य हि केशवेशे, (वीरो० २/४०) दृढ़ता को धारण करता हुआ (जयो० हि०१८/५५) केश-कर्मन् (नपुं०) केश सज्जा, केश प्रसाधन। केवलव्यतिरेकी (स्त्री०) केवलपक्ष में रहना, जो हेतु विपक्ष केश-कलापः (पुं०) केश समूह, बालों का ढेर। से व्यावृत होकर सपक्ष से रहित विपक्ष में नहीं रहता है, | केशकीटः (पुं०) जूं। For Private and Personal Use Only

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